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Saturday, May 12, 2012

किसको घर कहता है पगल्रे


किसको घर कहता है पगले
दीवारें ही दीवारें
घास-फूस की छत है कहीं पर
ऊँची-ऊँची मीनारें.

तन से निकले प्राण पखेरू
काठी है तैयार खड़ी
फिर मखमल की सेज कहाँ
बस !अंगारे ही अंगारे.

जीवन भर का शोक मनाये
किसको इतनी है फुरसत
तीज-नहावन निपट गया फिर
नहीं सुनोगे चीत्कारें.

जो अपना घर कुरिया फूँके
वही हमारे संग चले
कोई कहता है यायावर
कोई कहता बंजारे.

दिल की अदला-बदली करके
हमने सारा जग जीता
नहीं माथ पर मुकुट हमारे
नहीं हाथ में तलवारें.

 एक नजर इधर भी : सियानी गोठ   http://mitanigoth2.blogspot.com

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

20 comments:

  1. बढ़िया गीत -
    दर्शन अध्यात्म और शायद वियोग -भी
    बहुत बहुत परिश्रम से-
    सुन्दर गीत पर
    एक तुच्छ टिप्पणी |

    बंजारा जारा गया, यायावर मर जाय |
    अमर आत्मा उड़नछू, पञ्च तत्व बिलगाय |

    पञ्च तत्व बिलगाय, दिवारों ने भरमाया |
    गगन पवन छिति आग, नीर से बनती काया |

    नश्वर है घर देह, ख़ुशी से भोगे कारा |
    रहे नहीं संदेह, गीत गा ले बंजारा ||

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  2. तन से निकले प्राण पखेरू
    काठी है तैयार खड़ी
    फिर मखमल की सेज कहाँ
    बस !अंगारे ही अंगारे.

    बहुत ही सुंदर भाव पुर्ण अभिव्यक्ति,बेहतरीन प्रस्तुति,....
    रचना बहुत अच्छी लगी,....निगम जी,....बधाई

    MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  4. वाह.........

    जीवन भर का शोक मनाये
    किसको इतनी है फुरसत
    तीज-नहावन निपट गया फिर
    नहीं सुनोगे चीत्कारें.

    बहुत गहन भाव उकेरे है कविता में...
    सादर.

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  5. प्रियवर अरुण कुमार निगम जी
    सस्नेह अभिवादन !
    नमस्कार !

    बहुत श्रेष्ठ गीत लिखा है आपने …
    दिल की अदला-बदली करके
    हमने सारा जग जीता
    नहीं माथ पर मुकुट हमारे
    नहीं हाथ में तलवारें

    मन जीत ले इतना प्यारा बंध है यह तो…
    वाह वाह !

    # भाभीजी के लिखे गीतों के लिए भी बधाई और आभार !
    ईश्वर से प्रार्थना है कि आप कवि युगल ऐसे ही सुंदर रचनाएं समाज को देते रहें …

    हार्दिक शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  6. दिल की अदला-बदली करके
    हमने सारा जग जीता
    नहीं माथ पर मुकुट हमारे
    नहीं हाथ में तलवारें.....बहुत खुबसूरत पंक्तियाँ.....

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  7. जीवन भर का शोक मनाये
    किसको इतनी है फुरसत
    तीज-नहावन निपट गया फिर
    नहीं सुनोगे चीत्कारें.
    यही तो है कटु यथार्थ!

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  8. जीवन भर का शोक मनाये
    किसको इतनी है फुरसत
    तीज-नहावन निपट गया फिर
    नहीं सुनोगे चीत्कारें... गूढ़ सच

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  9. सच्चाई से रूबरू कराती सुंदर रचना ....
    शुभकामनाएँ!

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  10. सच है एक दिन जब हम रुख़सत करेंगे तो सब यहीं धरा रह जाएगा।
    एक अच्छी रचना।

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  11. सुंदर गीत.
    सच्चाई को आइना.

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  12. तन से निकले प्राण पखेरू
    काठी है तैयार खड़ी
    फिर मखमल की सेज कहाँ
    बस !अंगारे ही अंगारे.
    बहुत ही प्यारा सशक्त गीत क्या कहने

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  13. जो अपना घर कुरिया फूँके
    वही हमारे संग चले
    कोई कहता है यायावर
    कोई कहता बंजारे.....यार्थार्थ को दर्शाती अभिवयक्ति.....

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  14. तन से निकले प्राण पखेरू
    काठी है तैयार खड़ी
    फिर मखमल की सेज कहाँ
    बस !अंगारे ही अंगारे.


    बहुत सुंदर ... सत्य को कहती सुंदर रचना ...

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  15. जीवन भर का शोक मनाये
    किसको इतनी है फुरसत
    तीज-नहावन निपट गया फिर
    नहीं सुनोगे चीत्कारें...

    सच्चाई की तस्वीर...बहुत सुंदर कविता.

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  16. क्या बात है...बहुत खूब!!

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  17. बहुत हि बढिया गीत .....जीवन का सत्य है

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  18. बढ़िया बारह मासी लिखी है |
    आशा

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