टेढ़ी - मेढ़ी पगडंडी पर , चला झूमता - गाता गाँव
कभी
छेड़ता बंसी की धुन,कजरी कभी सुनाता गाँव.
नित्य
भोर पंछी की कलरव से श्रम का आव्हान करे
गोधुलि
बेला, गायों के सँग, अब भी धूल उड़ाता गाँव.
चरर-मरर
आवाज रहट की, ओहो तत तत बैलों संग
तपत
-कुरू मिट्ठू से बोले , सबके सँग बतियाता गाँव.
सांझ
ढले मंदिर - परिसर में , रामायण को बाँचा करे
ढोल,मँजीरा शंख बजाकर, मन में भक्ति जगाता गाँव.
बच्चों
के सँग लुक्का- छिप्पी,गिल्ली- डंडा खेलता है
हू तू तू तू खेल कबड्डी , युवकों को उकसाता
गाँव.
बेटी
खेले गुड्डा गुड़िया , फुगड़ी, बिल्लस अंगने में
प्रौढ़-बुजुर्गों
की खातिर तो, चौसर रोज बिछाता गाँव.
जेठ दुपहरी खेतों में हल , चलते करमा गाते हुये
आता
जब आषाढ़ महीना , फसलें खूब उगाता गाँव
मेघ
- देवता दया करें तो, अनपूरना का वास रहे
वरना
आँसू पी पीकर के,अपनी प्यास बुझाता गाँव.
सावन
–भादों
, तीज- तिहारों, की मस्ती में झूमता है
क्वाँर महीना श्रद्धा-पूजा, अंतर्ज्योति जलाता
गाँव.
मने
दशहरा, शरद पूर्णिमा - घरों में मीठी खीर बने....
दीप
जला कर माह कार्तिक, दीपावली मनाता गाँव.
अगहन
पूस
जले अंगीठी ,तन को राहत मिले कहाँ
खलिहानों
में जाग जागकर,सारी रात बिताता गाँव
माघ चलत है पवन -बसंती , टेसू- सेमल फुलवा खिले
महुआ
से महके
महुआरी , मस्ती में मदमाता गाँव.
ब्याह
योग्य युवजन की खातिर, रिश्ते ढूँढे माता-पिता
राजी
दोनों पक्ष हुये तब
, बात वहीं ठहराता गाँव.
फसल
बिकी ,लक्ष्मी घर आई, फागुन
आया झूमा गाँव
फाग
, नँगाड़े, पिचकारी भर , होली रंग उड़ाता गाँव.
चैत मास शहनाई
बाजे, मंडप सजे , चली बारात
नई
नवेली दुल्हन लेकर , खूब आज इतराता गाँव.
फिर
आया बैसाख
महीना , महक गई है अमराई
मीठे-
मीठे आम रसीले, खाता और खिलाता गाँव.
कंकरीट
के वन में भटके , गैरों और बेगानों में
तुझे
शांति की राह दिखाता , हौले से मुस्काता गाँव
अब
भी तुमको
अपना लेगा , ममता का आँचल है गाँव
पथिक
चला आ, बाट जोहता,व्याकुल औ’ अकुलाता गाँव.
(ओबीओ महोत्सव में शामिल कविता)
अरुण
कुमार निगम
आदित्य
नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय
नगर, जबलपुर (म.प्र.)
बच्चों के सँग लुक्का- छिप्पी,गिल्ली- डंडा खेलता है
ReplyDeleteहू तू तू तू खेल कबड्डी , युवकों को उकसाता गाँव.
बेटी खेले गुड्डा गुड़िया , फुगड़ी, बिल्लस अंगने में
प्रौढ़-बुजुर्गों की खातिर तो, चौसर रोज बिछाता गाँव... बहुत याद आता है
चैत मास शहनाई बाजे, मंडप सजे , चली बारात
ReplyDeleteनई नवेली दुल्हन लेकर , खूब आज इतराता गाँव.
फिर आया बैसाख महीना , महक गई है अमराई
मीठे- मीठे आम रसीले, खाता और खिलाता गाँव.
अति सुंदर भाव पुर्ण अभिव्यक्ति ,...
MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
कच्ची मिट्टी पर पर पडी बारिश की पहली फुहार सी खुशबु आई आपकी रचना से......
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
सादर.
भावपुर्ण अभिव्यक्ति ......
ReplyDeleteगाँव-राँव की बारीकी से, वर्णन करते चले अरुण |
ReplyDeleteबाराहमासों के अलबेले, रंग ब्लॉग पर मले अरुण |
रहन-सहन संजीव कबड्डी, तीज और त्योहारों का-
जीव-जंतु मजदूर किसानों, पर लिखते हैं भले अरुण ||
जेठ दुपहरी खेतों में हल , चलते करमा गाते हुये
ReplyDeleteआता जब आषाढ़ महीना , फसलें खूब उगाता गाँव ..
वाह ... लाजवाब अरुण जी ... गाँव के रूप कों जीवंत कर दिया आपने इन पंक्तियों में ... मज़ा आ गया ...
kavita mein gaon ke sundar chhata bikher dee aapne.,...bahut achha laga..
ReplyDeleteBhopal mein rahkar bhi ham yahan se 15-20 KM door aksar jaan pahchal wale gaon walon ke yahan jate hain... bahut badiya lagta hai..
कंकरीट के वन में भटके , गैरों और बेगानों में
ReplyDeleteतुझे शांति की राह दिखाता , हौले से मुस्काता गाँव
अब भी तुमको अपना लेगा , ममता का आँचल है गाँव
पथिक चला आ, बाट जोहता,व्याकुल औ’ अकुलाता गाँव.
वाह, कितना सुंदर बारहमासी गीत,
गांवों की संस्कृति का विशद बखान करती हुई।
वाह ...बहुत सुंदर ... गाँव जैसे साकार हो गया हो ...
ReplyDeleteआँखों के सामने कविता पढ़ते पढते गांव का पूरा परिदृश्य था|
ReplyDeleteमजा आ गया गांव का चल चित्र देख कर
वाह क्या बात है!!!! बेहद उम्दा मन भावन पोस्ट... आभार
ReplyDeleteसुंदर आदरणीय अरुण भईया... .
ReplyDeleteइतना सुन्दर इतना मोहक, सच्ची में है मेरा गाँव।
स्वर्ग छोड़ उतर आया ज्यों, धरती में है मेरा गाँव॥
सादर।
कंकरीट के वन में भटके , गैरों और बेगानों में
ReplyDeleteतुझे शांति की राह दिखाता , हौले से मुस्काता गाँव
अब भी तुमको अपना लेगा , ममता का आँचल है गाँव
पथिक चला आ, बाट जोहता,व्याकुल औ’ अकुलाता गाँव.
अब तो बस कविता में भैया ,अच्छा लगता मेरा गाँव .सुन्दर फेंटेसी है दर दर को मोहताज़ गाँवों की .सब कुछ लुटा ,पिटा बैठा है मेरा ये हरियाला गाँव .
शब्द शब्द में फिर से अपने गाँव को जी लिया..और बारहों मास को भी ..चिर प्रशंसनीय कृति..
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
waah...bahut accha varnan....
ReplyDeleteबहुत सुंदर, गांव के जीवन का पूरा चित्र खींच कर रख दिया ।
ReplyDeleteगाँव की मिट्टी की सोंधी खुश्बू लिये हुए एक प्यारी रचना
ReplyDeleteआभार
वाह ||||
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन भावमयी रचना
सुन्दर प्रस्तुति.....