(चित्र गूगल से साभार)
रचना- श्रीमती सपना निगम
शुद्धोदन
और गौतमी
ने
नाजों से उसको पाला था
यशोधरा
की मांग सजी
थी
वह
कपिलवस्तु का उजाला था.
राज
वैभव त्यागे उसने
छोड़े
सारे मोहपाश
भिक्षाटन
की
राह निकला
पहने थे भगवा
लिबास
अन्न
- जल त्यागा था उसने
ज्ञान की थी अभिलाषा
देह को भी कष्ट देकर
लगी हाथ निराशा.
भूखे
रह कर कुछ न मिलता
यह बात उसने जान
ली
प्राणियों
का दु:ख हरेगा
यह बात उसने ठान ली.
बैसाख
की पूर्णिमा थी
चाँद
ने आस जगाई थी
बोधि
– वृक्ष के नीचे सुजाता
खीर
लेकर आई थी.
अन्न से तृप्ति
मिली
यह बात उसने जानी है
देह
को जो कष्ट देता
वह बड़ा अज्ञानी है.
उसके दोनों चक्षुओं में
प्रज्ञा
की गहराई
है
मन की अंतर्वेदना में
करुणा असीम समाई है.
आँख
मूँदे बैठा है वो
ज्ञान
चक्षु खोल कर
धम्म
के उपदेश देता
वाणी में अमृत घोल
कर.
श्रीमती सपना निगम
आदित्य
नगर , दुर्ग ( छत्तीसगढ़)
बहुत सुंदर.....................
ReplyDeleteहमारी बधाई सपना जी को.
सादर.
बहुत सुंदर ....
ReplyDeleteफिर भी न जाने क्यों लोग उपवास रख शरीर को कष्ट देते हैं :):)
बुद्ध को समर्पित अच्छी रचना !
ReplyDeleteबेहतरीन रचना ।
ReplyDeleteसादर
बहुत अच्छी रचना...सपना जी को बधाई
ReplyDeleteउसके दोनों चक्षुओं में
ReplyDeleteप्रज्ञा की गहराई है
मन की अंतर्वेदना में
करुणा असीम समाई है.... waah
बढ़िया सारगर्वित रचना प्रस्तुति ... बधाई
ReplyDeleteभगवान् को सादर प्रणाम ।
ReplyDeleteबधाई ।
सुन्दर प्रस्तुति ।।
बहुत अच्छी सारगर्भित प्रस्तुति,....
ReplyDeleteRECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...... बधाई
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना..
ReplyDeleteप्रभावित करती रचना .
ReplyDeleteबुद्धपूर्णिमा के उपलक्ष पर बहतरीन भवाव्यक्ति समय मिले आपको तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
ReplyDeleteबहुत हि सुन्दर रचना प्रभु को समर्पित
ReplyDeleteबधाई एक सुंदर रचना के लिए ...
ReplyDeleteआँख मूँदे बैठा है वो
ReplyDeleteज्ञान चक्षु खोल कर
धम्म के उपदेश देता
वाणी में अमृत घोल कर.
bahut hi sundar Nigam sahab ....badhai ke sath sadar abhar bhi .
.
ReplyDeleteआभार सुंदर सृजन के लिए !
अच्छी रचना है…