धूप
में वह झुलसता , माथे पसीना बह रहा
विषमतायें
, विवशतायें , है युगों से सह रहा.
सृजन
करता आ रहा है , वह सभी के वास्ते
चीर
कर
चट्टान को , उसने बनाये रास्ते.
खेत,खलिहानों में उसकी मुस्कुराहट
झूमती
उसके
दम ऊँची इमारत , है गगन को चूमती.
सेतु
, नहरें , बाँध उसके श्रम से ही साकार हैं
देश
की सम्पन्नता का ,बस वही आधार है.
चिर
युगों से देखता आया जमाने का चलन
कागजों
के आँकड़े , आँकड़ों का आकलन.
अल्प
में संतुष्ट रहता , बस्तियों में मस्त
है
मत
दिखा झूठे सपन वह हो चुका अभ्यस्त है.
तू
उसे देने चला, दु:ख सहके जो सुख बाँटता
वह
तेरी राहों के काँटे , है जतन से छाँटता.
लग
जा गले तू आज ,झूठी वर्जनायें तोड़ कर
वह
सृजनकर्ता,नमन कर हाथ दोनों जोड़ कर.
वह
सृजनकर्ता,नमन कर हाथ दोनों जोड़ कर
वह
सृजनकर्ता,नमन कर हाथ दोनों जोड़ कर.
अरुण
कुमार निगम
आदित्य
नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय
नगर, जबलपुर (म.प्र.)
अल्प में संतुष्ट रहता , बस्तियों में मस्त है
ReplyDeleteमत दिखा झूठे सपन वह हो चुका अभ्यस्त है.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना ,..
MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
लग जा गले तू आज,झूठी वर्जनायें तोड़ कर
ReplyDeleteवह सृजनकर्ता,नमन कर हाथ दोनों जोड़ कर
बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शी प्रस्तुति.
सर्जनकर्ता को नमन.
अरुण जी,मेरा ब्लॉग विस्मृत मत कीजियेगा,प्लीज.
बहुत सशक्त लाजबाब उन्नत भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteshbdon dwara majdoor diwas par unhen sahi samman diya hai..
ReplyDeletebadhai swikaar karen
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteबुधवारीय चर्चा-मंच पर |
charchamanch.blogspot.com
आज के दिन सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteलग जा गले तू आज ,झूठी वर्जनायें तोड़ कर
वह सृजनकर्ता,नमन कर हाथ दोनों जोड़ कर.
सच ही इन सृजन कर्ता को नमन करना चाहिए
अल्प में संतुष्ट रहता , बस्तियों में मस्त है
ReplyDeleteमत दिखा झूठे सपन वह हो चुका अभ्यस्त है...निर्विकार वह अपने कार्य में तल्लीन है
सत्य कहा-
ReplyDeleteवह सृजनकर्ता,नमन कर हाथ दोनों जोड़ कर
वह सृजनकर्ता,नमन कर हाथ दोनों जोड़ कर.
वाह बहुत सुंदर अरुण जी...............
ReplyDeleteमजदूर दिवस पर अब तक निराला की "वो तोडती पत्थर" ही ख़याल आती थी....
बहुत सार्थक रचना..
आभार.
खेत,खलिहानों में उसकी मुस्कुराहट झूमती
ReplyDeleteउसके दम ऊँची इमारत , है गगन को चूमती.
मजदूर दिवस पर बढ़िया सामयिक रचना अभिव्यक्ति ...
श्रमिक दिवस पर अच्छी और सार्थक रचना......
ReplyDeleteबहुत हि बढिया चित्रण मजदुर के प्रति आपकी भावना को सलाम
ReplyDeleteसृजन कर्ता को सलाम
मजदूर दिवस पर एक सार्थक कविता!!...
ReplyDeleteहर शब्द प्रभावशाली और हर पंक्ति अर्थपूर्ण है ...!
ReplyDeleteतू उसे देने चला, दु:ख सहके जो सुख बाँटता
ReplyDeleteवह तेरी राहों के काँटे , है जतन से छाँटता.
Bahut Sunder...Prabhavit Karati rachna
बेहतरीन भाव संयोजन ... सशक्त लेखन ।
ReplyDeleteवह सृजनकर्ता,नमन कर हाथ दोनों जोड़ कर
ReplyDeleteदोनों हाथ जोड़कर उन्हे नमन...
बहुत सुंदर प्रस्तुति!!
श्रम की महत्ता पर सार्थक हृदयोद्गार।
ReplyDeleteसेतु , नहरें , बाँध उसके श्रम से ही साकार हैं
ReplyDeleteदेश की सम्पन्नता का ,बस वही आधार है.
बहुत बहुत शुक्रिया स्तरीय ग़ज़ल पढवाने का ,चर्चा में छाने का ,आपके आने का .
ये फलसफा है ज़िन्दगी .
ये श्रम ही है आराधना ,है भास्ना ,उद्भास्ना है ज़िन्दगी की .ढोलक पे छाप ज़िन्दगी की
बुधवार, 2 मई 2012
" ईश्वर खो गया है " - टिप्पणियों पर प्रतिवेदन..!
http://veerubhai1947.blogspot.in/
लम्बी तान के ,सोना चर्बी खोना
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_02.html
कल 04/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
प्रभावशाली , प्रवाहमयी..अति सुन्दर रचना...
ReplyDeletesach main vandneey hai yah srijankarta ..
ReplyDeleteसेतु , नहरें , बाँध उसके श्रम से ही साकार हैं
ReplyDeleteदेश की सम्पन्नता का ,बस वही आधार है...
सदच कहा है मजदूर इन सब का आधार है पर उसका नाम कहीं नहीं है ...
अति सुंदर रचना
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