देखने में रस की जो छागल लगे
इस तरह के शख्स तो घायल लगे .
घुंघरुओं में थी मधु झंकार पर
बेबसी के पाँव की पायल लगे.
होम करते हाथ जिनके जल गये
वो जमाने को निरे पागल लगे.
दाग दामन का समझते हैं जिन्हें
वो छलकती आँख का काजल लगे.
बिजलियाँ सीने में जिनके कैद हैं
सुख लुटाते , सावनी बादल लगे.
छाँव जिनके सर रही, अंजान हैं
धूप में वो प्यार का आँचल लगे.
पी रहा जो जिंदगी भर विष अरुण
रंग उसके तन का अब श्यामल लगे.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
वाह!!!!!!बहुत,बेहतरीन अच्छी प्रस्तुति,सुंदर भाव की रचना के लिए बधाई,.....
ReplyDeleteNEW POST...फुहार...हुस्न की बात...
होम करते हाथ जिनके जल गये
ReplyDeleteवो जमाने को निरे पागल लगे...और जिनके घर में पवित्रता बिखरी वे बुद्धिजीवी पावन हो गए
दाग दामन का समझते हैं जिन्हें
ReplyDeleteवो छलकती आँख का काजल लगे.
वाह..
बहुत सुन्दर...
बिजलियाँ सीने में जिनके कैद हैं
ReplyDeleteसुख लुटाते , सावनी बादल लगे.
गजल का हर शेर मनभावन लगे ... बहुत सुंदर प्रस्तुति
बेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
वाह!
ReplyDeleteबहुत बहुत खुबसूरत पंक्तिया..... बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति!
ReplyDeleteक्षमा सहित -
ReplyDeleteहै आश्रम अ-व्यवस्थिति, अनमना --
किन्तु अंतरजाल पर चापल लगे ।
लेखनी को देख के समझा छड़ा --
पर हकीकत में कवी छाँदल लगे ।।
दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
http://dineshkidillagi.blogspot.in
पी रहा जो जिंदगी भर विष अरुण
ReplyDeleteरंग उसके तन का अब श्यामल लगे........अंतिम दो पंक्तियां तो लाजवाब है। अद्भुत।
yadi aap mere dwara sampadit kavy sangrah mein shamil hona chahti hain to sampark karen
ReplyDeleterasprabha@gmail.com
छाँव जिनके सर रही, अंजान हैं
ReplyDeleteधूप में वो प्यार का आँचल लगे.
पी रहा जो जिंदगी भर विष अरुण
रंग उसके तन का अब श्यामल लगे.
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सरसता मौजूद है हर पंक्ति में
रेत से रिसता हुआ मधुजल लगे।
वाह! वाह! आदरणीय अरुण भईया...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...
सादर बधाई..
बिजलियाँ सीने में जिनके कैद हैं
ReplyDeleteसुख लुटाते , सावनी बादल लगे.
बेहतरीन ग़ज़ल भाईसाहब लाज़वाब kargyaa हर बशीर और उसके मायने .बड़ी ही अर्थपूर्ण रही पूरी रचना .
होम करते हाथ जिनके जल गये
ReplyDeleteवो जमाने को निरे पागल लगे...
कडवी सच्चाई...
बहुत ही खूबसूरत कविता अरुण जी !
होम करते हाथ जिनके जल गये
ReplyDeleteवो जमाने को निरे पागल लगे.
-वाह अरुण भाई...बहुत खूब कहा!!
होम करते हाथ जिनके जल गये
ReplyDeleteवो जमाने को निरे पागल लगे
बहुत खूब
घुंघरुओं में थी मधु झंकार पर
ReplyDeleteबेबसी के पाँव की पायल लगे.
....बहुत सुंदर...हर पंक्ति दिल को छू जाती है...
पी रहा जो जिंदगी भर विष अरुण
ReplyDeleteरंग उसके तन का अब श्यामल लगे....
बहुत खूब .. अरुण जी हर पंक्ति प्रभावित करती है इस रचना की ... लाजवाब ...
दिल को छूती पंक्तियाँ, सुंदर रचना के लिए अरुण जी,...बधाई,...
ReplyDeleteNEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...
वाह अरुण भाई
ReplyDeleteघुंघरुओं में थी मधु झंकार पर
बेबसी के पाँव की पायल लगे.
दो अलग अलग स्थितियों में भावों का प्रदर्शन
बेबसी के पाँव की पायल लगे.अन्तेर्मन को झंझोड
दिया है आभार....