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Saturday, February 25, 2012

होम करते हाथ ................

देखने में रस की जो  छागल लगे
इस तरह के शख्स तो घायल लगे .

घुंघरुओं में थी मधु झंकार पर
बेबसी के पाँव की पायल लगे.

होम करते हाथ जिनके जल गये
वो जमाने को निरे पागल लगे.

दाग दामन का समझते हैं जिन्हें
वो छलकती आँख का काजल लगे.

बिजलियाँ सीने में जिनके कैद हैं
सुख लुटाते , सावनी बादल लगे.

छाँव जिनके सर रही, अंजान हैं
धूप में वो प्यार का आँचल लगे.

पी रहा जो जिंदगी भर विष अरुण
रंग उसके तन का अब श्यामल लगे.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

21 comments:

  1. वाह!!!!!!बहुत,बेहतरीन अच्छी प्रस्तुति,सुंदर भाव की रचना के लिए बधाई,.....

    NEW POST...फुहार...हुस्न की बात...

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  2. होम करते हाथ जिनके जल गये
    वो जमाने को निरे पागल लगे...और जिनके घर में पवित्रता बिखरी वे बुद्धिजीवी पावन हो गए

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  3. दाग दामन का समझते हैं जिन्हें
    वो छलकती आँख का काजल लगे.

    वाह..
    बहुत सुन्दर...

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  4. बिजलियाँ सीने में जिनके कैद हैं
    सुख लुटाते , सावनी बादल लगे.

    गजल का हर शेर मनभावन लगे ... बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  5. बहुत बहुत खुबसूरत पंक्तिया..... बेहतरीन रचना....

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  6. बेहतरीन प्रस्तुति!

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  7. क्षमा सहित -


    है आश्रम अ-व्यवस्थिति, अनमना --

    किन्तु अंतरजाल पर चापल लगे ।


    लेखनी को देख के समझा छड़ा --

    पर हकीकत में कवी छाँदल लगे ।।


    दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
    http://dineshkidillagi.blogspot.in

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  8. पी रहा जो जिंदगी भर विष अरुण
    रंग उसके तन का अब श्यामल लगे........अंतिम दो पंक्तियां तो लाजवाब है। अद्भुत।

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  9. yadi aap mere dwara sampadit kavy sangrah mein shamil hona chahti hain to sampark karen
    rasprabha@gmail.com

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  10. छाँव जिनके सर रही, अंजान हैं
    धूप में वो प्यार का आँचल लगे.

    पी रहा जो जिंदगी भर विष अरुण
    रंग उसके तन का अब श्यामल लगे.
    ----------------------

    सरसता मौजूद है हर पंक्ति में
    रेत से रिसता हुआ मधुजल लगे।

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  11. वाह! वाह! आदरणीय अरुण भईया...
    सुन्दर प्रस्तुति...
    सादर बधाई..

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  12. बिजलियाँ सीने में जिनके कैद हैं
    सुख लुटाते , सावनी बादल लगे.
    बेहतरीन ग़ज़ल भाईसाहब लाज़वाब kargyaa हर बशीर और उसके मायने .बड़ी ही अर्थपूर्ण रही पूरी रचना .

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  13. होम करते हाथ जिनके जल गये
    वो जमाने को निरे पागल लगे...
    कडवी सच्चाई...

    बहुत ही खूबसूरत कविता अरुण जी !

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  14. होम करते हाथ जिनके जल गये
    वो जमाने को निरे पागल लगे.

    -वाह अरुण भाई...बहुत खूब कहा!!

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  15. होम करते हाथ जिनके जल गये
    वो जमाने को निरे पागल लगे

    बहुत खूब

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  16. घुंघरुओं में थी मधु झंकार पर
    बेबसी के पाँव की पायल लगे.

    ....बहुत सुंदर...हर पंक्ति दिल को छू जाती है...

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  17. पी रहा जो जिंदगी भर विष अरुण
    रंग उसके तन का अब श्यामल लगे....

    बहुत खूब .. अरुण जी हर पंक्ति प्रभावित करती है इस रचना की ... लाजवाब ...

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  18. दिल को छूती पंक्तियाँ, सुंदर रचना के लिए अरुण जी,...बधाई,...

    NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...

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  19. वाह अरुण भाई
    घुंघरुओं में थी मधु झंकार पर
    बेबसी के पाँव की पायल लगे.
    दो अलग अलग स्थितियों में भावों का प्रदर्शन
    बेबसी के पाँव की पायल लगे.अन्तेर्मन को झंझोड
    दिया है आभार....

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