मन की छुअन तन की छुअन
भावना की आँधियाँ भावना की आँधियाँ
अब थम चली यौवन बनी
मर्म-सिंधु में छिपी पूर्ण इंदु सी सजी
इक सीप को इस देह को
छू लिया तुमने सहज छू लिया मैंने सहज
बंद पलकें खुल उठी झुक गई पलकें तुम्हारी
उस सीप की और उष्मा देह की
लिखने लगी लिखने लगी
मन के पृष्ठों पर तन के पृष्ठों पर
अकिंचित “प्यार” “स्वीकार”
बूँद आशा की प्रतीक्षा में सदा तुम कलि थी सर्वदा ही अधखिली
बंधन खुले खुल गये थे आवरण लाज के
बूँद मोती बन गई और सिमटी सी तुम्हारी देह पर
विश्वास की नृत्य कर बैठे अधर
और यह विश्वास ही क्या यहाँ भी प्रेम था
पर्याय है प्रेम का उन्मुक्त मंजुल प्रेम था
उन्मुक्त मंजुल प्रेम का या कोरी कामना
श्वाँस में सरगम श्वाँस में उष्मा
हृदय की धड़कनों में हृदय की धड़कनों में
प्रेम का संगीत महका आग भड़की
उन क्षणों उन क्षणों
तम के सीने में अचानक तन में जागी थी अचानक
आ गई जैसे किरण इक जलन
वाह ! शीतल है अति उफ् जला देती हमें
मन की छुअन. तन की छुअन.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
दोनों ही कविताएं बहुत अच्छी लगीं।
ReplyDeleteप्रेम दिवस की शुभकामनाएँ सर!
सादर
इक राधा इक मीरा
ReplyDeleteएक शीतल एक अगन ...
वाह!
ReplyDeletebahut hi umda kavita,bdhaai aap ko.
ReplyDeleteगौ वंश रक्षा मंच par bhi bhi padhaaren.....
ReplyDeletegauvanshrakshamanch.blogspot.com
वाह अरुण भईया... बहुत सुन्दर रचनाएं दी आपने...
ReplyDeleteसादर
मस्त सामानांतर कथा ||
ReplyDeleteतन मन भोगें साथ में, तन्मयता से प्यार |
दिल-देहीं दोनों दुखी, देख विलग आसार ||
दोनों ही रचनाएँ बहुत सुन्दर थीं .....
ReplyDeleteदोनों ही पहलु की एक खुबसूरत और सार्थक अभिवयक्ति......
ReplyDeletewah Nigam sahab bhai man gaye .....prem diwas pr hardik badhai
ReplyDeleteBahut hi behtareen rachhna hai sirji..
ReplyDeletedono pehluo ko bakhoobi bayaan kiya hai..
वाह अरुण प्रेम की अभिव्यक्ति और परिभाषा का सुन्दर चित्रण
ReplyDeleteकिया है मन और तन दोनों के एहसास....
वाह...
ReplyDeleteअदभुद प्रयोग...
लाजवाब कल्पनाशीलता..
सादर.
वाह ... दोनों का अपना अपना महत्त्व है ... अपनी अपनी जरूरत है ...
ReplyDeleteप्रेम की अभिव्यक्ति हैं आपकी रचनाएं ... अंतस के प्रेम को देखना और सथार्थ में महसूस करना ... शायद दोनों जरूरी हैं ...