रखिया के बरी ला बनाये के बिचार हवे
धनी टोर दूहू छानी फरे रखिया के फर.
उरिद के दार घलो रतिहा भिंजोय दूहूँ
चरिह्या-मा डार , जाहूँ तरिया बड़े फजर.
दार ला नँगत धोहूँ चिबोर - चिबोर बने
फोकला ला फेंक दूहूँ , दार दिखही उज्जर.
तियारे पहटनीन ला आही पहट काली
सील लोढ़हा मा दार पीस देही वो सुग्घर.
मामी , ममा दाई , मटकुल मोर देवरानी
आही काली घर मोर बरी ला बनाये बर.
काकी ह कहे हे काली करो दूहूँ रखिया ला
कका काकी दुनो झिन खा लिहीं इही डहर.
रखिया के बरी के तियारी हे तिहार कस
सबो सकलाये हवैं घर लागथे सुग्घर.
कोन्हों बैठें खटिया मा, कोन्हों बैठे पीढ़्हा मा
भाँची भकली तयँ माची, लान दे न काकी बर.
फेंट - फेंट घेरी - बेरी , कइसे उफल्थे बरी
पानी मा बुड़ो के देखे , ममा दाई के नजर.
टुप - टुप बरी डारैं , सबो झिन जुर मिल
लुगरा बिछा के बने , फेर पर्रा ऊपर.
पीसे दार बटकी मा , अलगा के मंडलीन
तात - तात बरा ला , बनात हे खवाये बर.
लाल मिरचा लसुन पीस के पताल संग
चुरपुर चटनी बरा के संग खाए बर.
दार तिल्ली अउ बीजा रखिया के सानथवौं
पर्रा भर बिजौरी बना लेहूँ सुवाद बर
नान्हे बेटी ससुरार ले संदेसा भेजे हावे
दाई पठो देबे बरी - बिजौरी दमाद बर.
रखिया के बरी अऊ बिजौरी हमार इहाँ
मइके के हाल चाल के पहुँचाथे खबर
बरी – बिजौरी के अउ कतका बखान करौं
दया-मया , नाता-रिस्ता, ला बढ़ाथे ये सुग्घर.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर ,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर (म.प्र.)
बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार ।।
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।
मूँग दले होरा भुने, उरद उरसिला कूट ।
ReplyDeleteपापड बेले अनवरत, खाय दूसरा लूट ।।
मालपुआ गुझिया मिली, मजेदार मधु स्वादु ।
स्वादु-धन्वा मन विकल, गुझरौटी कर जादु ।।
मन के लड्डू मन रहे, लाल-पेर हो जाय ।
रंग बदलती आशिकी, झूठ सफ़ेद बनाय ।।
भाँग खाय बौराय के, खेलें सन्त-महन्त ।
नशा उतरते ही खिला, मुँह पर मियाँ बसन्त ।।
हालांकि पूरा तो समझ तो नहीं आ रही भाषा
ReplyDeleteपर पढ़ने में आनंद बहुत आ रहा है जी.
होली की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
आप 'मेरी बात....' पर भी आईएगा,अरुण जी.
समझने में वक़्त लगा :):) अच्छी प्प्रस्तुति ॥होली की शुभकामनायें
ReplyDeleteवाह ... कितना समय लगा समझने में अब क्या बताएं .. पर जब समझ गए तो आनंद भी दूना हो गया ...
ReplyDeleteहोली की शुभ कामनाएं ...
भाई अरुण आपने छत्तीसगढ़ की संस्कृति के एक महत्वपूर्ण स्थिति “बड़ी” के बनाने का बहुत सुन्दर चित्रण किया है हमारे यहाँ जब बड़ी बनती है तो घर में त्यौहार जैसा माहोल बन जाता है सारे रिश्ते नाते दार इस कार्य में मिलजुल कर बड़ी बनाने में सहयोग करते है यहाँ.... (फर= फल) (उरिद=उढ़द की दाल) (रतिहा= रात में) (चरिह्या=बांस की टुकनी) (तरिया=तालाब) (बड़े फजर=सुबह) (नँगत=खूब) (चिबोर-चिबोर=रगड़ रगड़कर) (फोकला=छिलका) (उज्जर=सफ़ेद) (पहटनीन=कामवाली) (सुग्घर=बढ़िया)
ReplyDelete(दुनो झिन खा लिहीं इही डहर=दोनों यहीं खा लेंगे) (तियारी =तैय्यारी) (तिहार कस कस =त्यौहार जैसे) (सकलाये =एकत्र) (माची=मचिया) (घेरी – बेरी= बार बार) (तात तात=गरम गरम) अरुण भाई ने पुरे छत्तीसगढ़ी संस्कृति को लय बद्ध कर दिया है रखिय की बड़ी बनाते समय बनने वाले सिचुएसन का बहुत सुन्दर चित्रण किया है मजा आगया ....
बहुत बढ़िया छत्तीसगढ़ी मे भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...
ReplyDeleteअरुण जी,बहुत२ बधाई होली की,...
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बरी बनायें म जतका मेहनत लागथे ओत्केच मेहनत ए रचना म लागे होही अरुण भईया... फेर सुग्घर बरी बने हवे... बधाई...
ReplyDeleteका बात कहे samdhi जी तुम्हार बड़ी बने mithais,
ReplyDeleteनरेंद्र कुमार साहू ...