तुम पास नहीं होती मेरे, प्रकृति सताने आती है
आस लिये नयनों में अपने, प्यार जताने आती है.................
ऊषा कहती लाली देखो, सुमन कहे रसपान करो
मैं हाथ जोड़कर कहता हूँ,मुझको न परेशान करो
दूर देश से भाग पवन, मुझको लिपटाने आती है..................
मुस्काती कलियों ने मुझको, अश्रु बहाते देखा है
तुमसे रह कर दूर मुझे, किसने मुस्काते देखा है
दूर्बादल पर पतित अश्रु , रश्मि उठाने आती है.......................
बिरहा में राख न हो जाऊँ,प्रियतम अब तो तुम आ जाओ
कहीं धूल न बन जाऊँ तुम बिन, आकर अब नयन मिला जाओ
नित मृत्यु-सुंदरी मीठी सी, नींद सुलाने आती है...............
(रचना वर्ष-1976)
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
बहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
दूर्बादल पर पतित अश्रु , रश्मि उठाने आती है.......................
ReplyDeleteबहुत सुंदर .... विरह का जीवंत वर्णन
बेहद कोमल भावों की शानदार कृति।
ReplyDeleteकोमल, विरह के प्रेम भरे एहसास
ReplyDeleteहमारे ज़माने में ...'
ReplyDeletehttp://bulletinofblog.blogspot.in/2012/02/blog-post_15.html
वाह अरुण भईया... खूबसूरत एहसास संयोजित हैं गीत में...
ReplyDeleteसादर बधाई...
कोमल खूबसूरत अहसास..
ReplyDeleteमन के भावो को शब्द दे दिए आपने......
ReplyDeleteबहुत खूब भैय्या...
ReplyDeleteये बसंत अब आपके विरह को जान लेगा
और आंसूओ की धार को पहचान लेगा
अरुण जी,वाह!!!!!बहुत अच्छी प्रस्तुति,बेहतरीन सुंदर अहसास ,...
ReplyDeleteआपका फालोवर बन रहा हूँ,आप भी बने मुझे हार्दिक खुशी होगी,....
MY NEW POST ...कामयाबी...
बहुत सुन्दर अरुण जी...
ReplyDeleteसादर.
waah....very nice.
ReplyDeletebahut sadgi bhari....sunder kavita.
ReplyDeleteसुन्दर कविता..
ReplyDeleteसुंदर कोमल विरह के अहसासों से से सजी भावपूर्ण प्रस्तुति यह इंतज़ार बहुत ही पीढ़ा दायक होता है इस पर ही मैंने भी कुछ लिखा है समय मिले कभी तो आयेगा मेरे आपकी पसंद वाले ब्लॉग पर आपका स्वागत है
ReplyDeletebahut pyaari rachna, badhai.
ReplyDeleteतुम पास नहीं होती मेरे, प्रकृति सताने आती है
ReplyDeleteआस लिये नयनों में अपने, प्यार जताने आती है.................
ऊषा कहती लाली देखो, सुमन कहे रसपान करो
मैं हाथ जोड़कर कहता हूँ,मुझको न परेशान करो
दूर देश से भाग पवन, मुझको लिपटाने आती है...........tarif ke shbad hi nahi mil rhe,waah! kya baat hai,aisi rachna main ne kabhi nahi padhi,bdhaai aap ko
नित मृत्यु-सुंदरी मीठी सी, नींद सुलाने आती है..............
ReplyDeleteआपकी १९७६ की यह रचना पढ़ आनंद आ गया अरुण जी.
उस समय तो आप कुँवारे रहे होंगें.
बहुत उत्कृष्ट और हसीं भाव हैं.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा जी.
मुस्काती कलियों ने मुझको, अश्रु बहाते देखा है
ReplyDeleteतुमसे रह कर दूर मुझे, किसने मुस्काते देखा है
प्रकृति के प्रतीकों का मानव भावनाओं के साथ अनोखा सामंजस्य स्थापित है इस सुंदर गीत में।
मुस्काती कलियों ने मुझको, अश्रु बहाते देखा है
ReplyDeleteतुमसे रह कर दूर मुझे, किसने मुस्काते देखा है
प्रकृति के प्रतीकों का मानव भावनाओं के साथ अनोखा सामंजस्य स्थापित है इस सुंदर गीत में।
ऊषा कहती लाली देखो, सुमन कहे रसपान करो
ReplyDeleteमैं हाथ जोड़कर कहता हूँ,मुझको न परेशान करो
दूर देश से भाग पवन, मुझको लिपटाने आती है...
बहुत ही मधुर गीत अरुण जी ...प्राकृति और काव्य का गज़ब संयिजन है रचना में ...
आपकी किसी पुरानी बेहतरीन प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार २८/८/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी मंगल वार को चर्चा मंच पर जरूर आइयेगा |धन्यवाद
ReplyDeleteAwesome..
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