19 फरवरी 2012 दिन रविवार सुबह - सुबह पौने नौ बजे मोबाइल बज उठा, उधर से आवाज आई.......निगम जी जबलपुर के रेल्वे स्टेशन से मैं रविकर(दिनेश चंद्र गुप्ता) बोल रहा हूँ. छिंदवाड़ा से लौट रहा हूँ, इलाहाबाद जाना है. डेढ़ बजे ट्रेन है, चार घंटे का टाइम है. सोच रहा हूँ आपसे मुलाकात करता चलूँ. स्टेशन से कितनी दूर है आपका घर ? मेरी खुशी का कोई ठिकाना न रहा. मैंने कहा –आप वहीं रुकिये मैं आपको लेने आ रहा हूँ.मेरा घर स्टेशन से यही कोई आठ किलोमीटर दूर है. रविकर जी ने कहा आप बस आने का साधन बताइये. कहाँ आना है. आपके स्टेशन आते तक तो मैं ही वहाँ पहुँच जाऊंगा. मैंने बताया कि मेट्रो बस से अहिंसा चौक आ जाइये.
कुछ देर बाद रविकर जी का कॉल आया- मैं अहिंसा चौक पहुँच गया हूँ. मैं तैयार होकर प्रतीक्षा कर ही रहा था. स्कूटर से अहिंसा चौक पहुँच गया. बगल में बड़ा सा बैग लटकाये सज्जन को देखते ही पहचान गया कि यही रविकर जी हैं. मैंने उनसे स्कूटर पर बैठने का आग्रह किया तो वे बोले- श्रीमती जी भी साथ हैं. रोड के किनारे भाभी जी भी खड़ी थीं. तुरंत रिक्शा कर दोनों को मैं अपने घर लेकर आ गया. मन खुशी से फूला नहीं समा रहा था. पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. रविकर जी से प्रत्यक्षत: यह पहली मुलाकात थी.वैसे भी दुर्ग और जबलपुर के बाहर के किसी भी ब्लॉगर से मुलाकात करने का यह पहला अवसर था. जबलपुर में मैं अकेला ही रहता हूँ. परिवार के शेष सदस्य दुर्ग छत्तीसगढ़ में रहते हैं. शेष सदस्य भी क्या कहूँ श्रीमती जी और छोटा बेटा दुर्ग में हैं. बड़ा बेटा-बहू बनारस में और मंझला बेटा-बहू रायपुर में हैं.
आगत के स्वागत में चाय बनाने किचन की ओर जैसे ही बढ़ा रविकर जी ने कहा- निगम जी ! औपचारिकताओं में वक़्त जाया न कीजिये थोड़ा सा समय है, आइये बैठकर बातें करते हैं. किंतु चाय तो बननी ही थी . हरे चने के दानों को तल कर हल्का-फुल्का नाश्ता पहले से ही तैयार कर रखा था. इसी दौरान गाफिल जी का कॉल रविकर जी को आया शायद चर्चा मंच के बारे में कुछ कह रहे थे....अधूरा तैयार है....पूरा कर लेंगे.....बातें तो मैंने सुनी नहीं रविकर जी की बातें सुन कर अनुमान ही लगा पाया. रविकर जी ने मेरे लैपटॉप पर प्रयास भी किया मगर मेरे लैपटॉप पर उन्हें कुछ असुविधा सी हो रही थी सो गाफिल जी के आग्रह को पूरा नहीं कर सके. पहले तो उन्होंने मेरे परिवार के सदस्यों के बारे में पूछा फिर अपने परिवार के बारे में बताया.उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें भी धनबाद में मेरी ही तरह अकेले जीवन-यापन करना पड़ रहा है.
रविकर जी की ट्रेन दोपहर 1.30 बजे थी. टिकट तो उन्होंने नेट से पहले ही निकाल रखी थी. इंक्वारी करने से पता चला कि 45-46 की वेटिंग चल रही है. चार्ट तैयार नहीं हुआ था. मेरे स्टॉफ सदस्य श्री एल.पी.राव जो मेरे ही अपार्ट्मेंट में रहते हैं, को बुला कर मैंने निवेदन किया कि दो घंटे बाद ट्रेन है ,अभी चार्ट तैयार नहीं हुआ है, सम्भावना तो नगण्य है फिर भी प्रयास करके देखने में हर्जा क्या है. राव साहब प्रयास करने चले गये. इसके बाद लगभग बारह बजे तक रविकर जी के साथ दिल खोल कर ब्लॉग, कविता, दोहे और छंदों पर चर्चा हुई. इसी दौरान हमने साथ-साथ दोपहर का भोजन भी कर लिया. सवा बारह बजे स्टेशन के लिये निकलना था. नेट में फिर से इनक्वारी की दोनों ही टिकटें कंफर्म हो गई थी.तुरंत राव साहब को हमने धन्यवाद दिया .दूसरी खुशी की बात मेरे लिये यह थी कि ट्रेन साढ़े छ:घंटे लेट थी. रविकर जी का सानिध्य कुछ देर के लिये और प्राप्त होना मेरे नसीब में था. अब तो हम टिकट से भी निश्चिंत थे और ट्रेन के समय से भी.
फिर से बातों का दौर शुरु हुआ. समीर लाल जी की कविताओं का संग्रह “बिखरे मोती” जो समीर जी ने अपने जबलपुर प्रवास के दौरान मुझे भेंट की थी को भी रविकर जी ने देखा. कवि स्व.विनयकुमार भारती की कविताओं के संग्रह की बहुत ही पुरानी एक किताब देखकर भी वे बहुत खुश हुये. रविकरजी को मैंने अपने छत्तीसगढ़ अंचल के कवि ,गायक और गीतकार श्री लक्ष्मण मस्तुरिया के गीत भी लैपटॉप पर सुनाये. भाभी जी भी इस साहित्यिक व संगीतमय चर्चा में शामिल रहीं.
देखते ही देखते साढ़े छ: बज गये. ट्रेन का समय हो रहा था. एल.पी.राव जी भी आ गये. मेरे निवास से नजदीक ही कचनार सिटी में शिवजी की लगभग 76 फीट ऊँची बेमिसाल प्रतिमा है. स्टेशन जाने के पूर्व हम शिव-दर्शन को गये. महा शिवरात्रि की पूर्व संध्या होने के कारण सजाया गया यह स्थान और भी मोहक लग रहा था. हमने शिवजी की भव्य प्रतिमा के दर्शन किये और रेल्वे स्टेशन के लिये रवाना हो गये. रविकर जी और भाभी जी को मैं और राव साहब स्टेशन तक छोड़ कर लौट आये.रविकर जी की सहृदयता, सादगी और साहित्यिक ज्ञान से मैं अभिभूत हो गया.यह मुलाकात मुझे जीवन भर नई उर्जा देती रहेगी.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
एक सार्थक मुलाकात।
ReplyDeleteयह मुलाकात बहुत बढ़िया रही!
ReplyDeleteकाश् हम भी रविकर जी के साथ होते!
हमें भी आपसे मिलने का सौभाग्य मिल जाता!
बहुत अच्छा लगा सर! आप लोगों की मुलाक़ात के बारे मे जानकर!
ReplyDeleteसादर
निगमी निर्गम नर्मदा, अरुण शिवंकर पाय ।
ReplyDeleteसर्वोत्तम वह दिवस मम, वन्दौं शीश नवाय ।।
दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
शिवंकर = कल्याणकारी
Deleteरविकर जी से आपकी मुलाक्त का अच्छा विवरण मिला ...
ReplyDeleteब्लॉग से रूबरू होने तक में आत्मीयता कितनी बढ़ जाती है ... ब्लॉग का यह संबंध बना रहे
ReplyDeleteरविकर जी से आपका मिलना .. और यह प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी ।
ReplyDeleteये तो बेहद आतमीय मुलाकात रही और प्रस्तुतिकरण भी बेहद खूबसूरत रहा।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर... हर पंक्ति में इस मुलाक़ात से उपजा उल्लास छलक रहा है....
ReplyDeleteआदर अरुण भैया और रविकर जी आप दोनों को सादर बधाईयां....
भाई टेलीफोन से ही सही थोड़ी देर मैं भी रहा आप दोनों के बीच। आप कवि द्वय की सुखद मुलाकात मुबारक़ हो आप दोनों को
ReplyDeleteDinesh ji se aapki mulaakaat ka vritaant padhna achchha laga. net ki duniya ke mitra se wasatvik roop se milna sach mein bada sukhad anubhav hota hai.
ReplyDeleteअरुण जी,..रविकर जी से सार्थक मुलाक़ात के लिए बहुत२ बधाई,..
ReplyDeleteबेहतरीन अनुपम अच्छी प्रस्तुति,.....
MY NEW POST...काव्यान्जलि...आज के नेता...
रविकर जी से आपकी मुलाक्त का अच्छा विवरण मिला ...
ReplyDelete.दो प्रेमी जन साहित्य रसिकों को देख मन आनंदित हुआ .मुख़्तसर सी मुलाकातें सौगात बन जातीं हैं जीवन भर की .
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