आत्मन् !
इस वर्ष माह नवम्बर के अंतिम सप्ताह से “मेथी की भाजी” पर एक बाल गीत लिखा था जिसे आप सभी ने सराहा. सब्जियों के विशेष मौसम ने और आपकी सराहना ने और भी अन्य सब्जियों पर लिखने को प्रेरित किया. माह दिसम्बर में मटर , हरी मिर्च , पालक ,गाजर , टमाटर ,करेला , मूली ,कद्दू , पपीता और मुनगा यानि सहजन पर गीत रचे. इन्हें भी आप सभी का प्यार मिला. इसके पूर्व बाल-गीत पर कभी भी कलम नहीं चली थी , सब्जियाँ भी पहली बार विषय – वस्तु बनी. बहुत अच्छा लगा जब किसी विशेष सब्जी पर लिखने की फरमाइश भी आई. नवीनमणि त्रिपाठी जी के आग्रह पर पपीता लिखी गई. विद्या जी के अनुरोध पर कद्दू और मुनगा (सहजन) की रचना हुई. मनोज कुमार जी ने कहा यदि मैं शिक्षामंत्री होता तो आपकी सारी बाल कवितायें कोर्स में लगवा देता. देता.महेंद्र वर्मा जी और संजय मिश्रा हबीब जी ने भी कहा कि इन्हें पाठ्य पुस्तक में शामिल किया जाना चाहिये. काजल कुमारजी ने कहा कि यह कविता MDH मसालेवाले के हाथ लग गई तो ले उड़ेंगे. वीरुभाई जी की स्पेशल कमेंट्स आये.आये.रेखा जी ने मुनगा / सहजन पर कहा मेरे पति इस सब्जी को घर में लाते ही नहीं थे ,आपने अपनी रचना के माध्यम से उनकी आँखे खोल दी है. रूप चंद्र शास्त्री जी व चंद्र भूषण मिश्र ’गाफिल’ जी ने इन्हें चर्चा-मंच प्रदान किया.यशवंत माथुर जी ने नई-पुरानी हलचल में शामिल किया.
इस श्रृंखला को राजकुमारी जी,,रविकर जी, रश्मिप्रभा जी, रंजना जी, अशोक सलूजा जी, सुरेंद्र सिंह झंझट जी, जाट देवता जी, अनामिका जी, सुरेश शर्माजी , चैतन्य शर्मा जी, मोनिका शर्मा जी, माहेश्वरी कनेरी जी,जी,दिगम्बर नासवा जी, बबली जी, धीरेंद्र जी, जेन्नी शबनम जी, सुषमा आहुति जी, अनुपमा पाठक जी, कुश्वंश जी, रचना दीक्षित जी, ऋता शेखर मधु जी, राजेंद्र तेला निरंतर जी, कैलाश शर्मा जी, पल्लवी जी ,घोटू जी, वंदना जी, मनीष सिंह निराला जी, पॉइंट जी, श्री प्रकाश डिमरी जी, राकेश कुमार जी, आशा जी ,संगीता स्वरूप जी , दिव्या श्रीवास्तव जी, ममता बाजपेयी जी, राजीव पंछी जी, अवंति सिंह जी, कुंवर कुसुमेश जी, अतुल श्रीवास्तवजी, नवीन सी. चतुर्वेदी जी,कुमार राधारमण जी, रजनीश तिवारी जी, एस.एन.शुक्ला जी, वंदना गुप्ता जी, मन के मनके जी, शरद कोकास जी, सदा जी, शिखा वार्ष्णेय जी, उड़न तश्तरी जी जैसे ब्लॉगर्स का आशीर्वाद मिला. आप सभी के प्रति हृदय से आभार प्रकट करता हूँ.
इस श्रृंखला के समापन पर स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता लाती हुई यह कविता प्रस्तुत है , इसे अपने बच्चों को भी जरूर पढ़ायें. आशा है आपके लिए हितकारी होगी.
मन का अभिनंदन जहाँ हो
तन का भी सम्मान हो
मन को परिभाषित करो तो
तन का भी गुणगान हो.
तन अलग औ’ मन अलग
ये बात जँचती है कहाँ
बूँद से रह कर विलग
बरसात हँसती है कहाँ
मन जहाँ तन से अलग हो
तन वहाँ निष्प्राण हो.....................
तन जहाँ बंशी बजाये
मन वहाँ गायक बने
मन जहाँ शक्ति समेटे
तन वहाँ नायक बने
तन जहाँ मंदिर सरीखा
मन वहाँ भगवान हो.......................
सिर्फ मन की साधना में
तन को ना दुर्बल करो
और तन को ही सजाने
में ना मन निर्बल करो.
तन हो चंगा, मन हो गंगा
बस यही अरमान हो..........................
स्वस्थ तन में ही निरोगी
मन का होता वास है
तन सुखी, मन भी सुखी तो
जिंदगी मधुमास है.
मन जहाँ मृतप्राय साथी
तन वहाँ श्मशान हो..................................
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (मध्य प्रदेश)
ek ek shabd sach ko paribhashit karta.
ReplyDeletesunder abhivyakti.
सिर्फ मन की साधना में
ReplyDeleteतन को ना दुर्बल करो
और तन को ही सजाने
में ना मन निर्बल करो... आपके द्वारा रचित रचना का लाभ मैं पढकर सबको देती हूँ .... अनुभव कहीं तो अर्थ पाते ही हैं .
नए वर्ष की मंगल कामनाओं के साथ
vaah maja aa gaya padh kar.prerit karti rachna.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर....
ReplyDelete३ बातें...
एक तो ये की इस श्रंखला ने खतम होने का बड़ा दुःख है.
दूसरा ये कि हमारा भी नाम हो गया आपकी कविता के साथ साथ:-)
तीसरा- नए वर्ष की शुभकामनाये आपको एवं आपके परिवार को...
नए विषय पर रचनाओं का इन्तज़ार रहेगा ..
किसी विषय को केंद्र बनाकर कविता लिखना बेहद दुरूह काम है भटकने का दर सदा बना रहता है. आपने अच्छी रचनाये दी है बाल गीत के रूप में. आपकी रचनाधर्मिता को सलाम निगम जी
ReplyDeleteक्या गीत रचा है आदरणीय अरुण भईया....
ReplyDeleteआनद आ गया....
नव वर्ष की सादर बधाइयां....
कविता मे बिलकुल सही बात कही है सर!
ReplyDeleteसादर
नव-वर्ष की शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteअपनी इस रचना में भी आपने बहुत ही सुन्दर और सार्थक सन्देश दिया है ....नववर्ष मंगलमय हो
ReplyDeleteसार्थक सन्देश देती रचना |बधाई
ReplyDeleteनव वर्ष शुभ और मंगलमय हो |
आशा
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर वाह! गुरुपर्व और नववर्ष की मंगल कामना
ReplyDeleteबहुत सुंदआर और सटीक प्रस्तुति...नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteसिर्फ मन की साधना में
ReplyDeleteतन को ना दुर्बल करो
और तन को ही सजाने
में ना मन निर्बल करो....सार्थक....अभिवयक्ति...... नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये.....
शब्जिओं पर सभी पिछली रचनाएँ सराहनीय थी अब निवेदन है कि आप फलों पर रचनाएँ लिखे,स्वास्थ के प्रति जागरूक करती सुंदर सटीक रचना...के लिए बधाई
ReplyDeleteनववर्ष 2012 की हार्दिक शुभकामनाए..
--"नये साल की खुशी मनाएं"--
सिर्फ मन की साधना में
ReplyDeleteतन को ना दुर्बल करो
और तन को ही सजाने
में ना मन निर्बल करो
यह गीत तो बड़ों के लिए भी प्रेरणादायक है।
बहुत अच्छी रचना।
सिर्फ मन की साधना में
ReplyDeleteतन को ना दुर्बल करो
और तन को ही सजाने
में ना मन निर्बल करो.
अनमोल सीख दे रही है यह कविता...आभार!
नव वर्ष मंगलमय हो,हार्दिक शुभकामनाएँ!!!
नव वर्ष मंगलमय हो ..
ReplyDeleteबहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें
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ReplyDeletebahut sundar bal-kavita....
आपको एवं आपके परिवार को नए वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं !
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Dhanyavad Mr.Nlgam,aapke mere blog par akar mera manobal bdhane hetu.aaj ki aapki post anusarniya hae kha bhi gya hae ki jaesa anna vaesa man.bdhai .
ReplyDeleteDhanyavad Mr.Nlgam,aapke mere blog par akar mera manobal bdhane hetu.aaj ki aapki post anusarniya hae kha bhi gya hae ki jaesa anna vaesa man.bdhai .
ReplyDeleteस्वस्थ तन में ही निरोगी
ReplyDeleteमन का होता वास है
तन सुखी, मन भी सुखी तो
जिंदगी मधुमास है.
मन जहाँ मृतप्राय साथी
तन वहाँ श्मशान हो.....
सकारात्मक सार्थक सन्देश लिए अनुपम रचना .
भाई साहब ज्यादातर रोग ही इस दौर के मनो -कायिक हैं साइकोसोमातिक हैं (Psychosomatic:describes a physical illness that is caused by mental factors such as stress ,or the related to such illnesses,involving both the mind and body).आज के ९० %रोग मन से काया में आ रहें हैं .ONLY A HEALTHY BODY CAN HOUSE A HEALTHY MIND.सुन्दर विज्ञान कविता .जी हाँ आपकी रचनाएं आयुर्वेद के पाठ्य क्रम (BAMS)में शामिल करने की पात्रता लिए हैं . फल और तरकारियों पर लिखी रचनाएं हिंदी के हर अखबार में छपनी छापनी चाहिए .बाल साहित्य का श्री वर्धन हैं आपकी रचनाएं .स्वास्थ्य निर्देशिका रचतीं हैं .बधाई नव वर्ष पर
तन जहाँ मंदिर सरीखा
ReplyDeleteमन वहाँ भगवान हो...
अब इससे आगे काया है सौन्दर्य क्या कहूं -तन भी सुन्दर मन भी सुन्दर तू सुन्दरता की मूरत है ....
सिर्फ मन की साधना में
ReplyDeleteतन को ना दुर्बल करो
और तन को ही सजाने
में ना मन निर्बल करो.
PAR MAN HAE KI MANTA NAHIN...