हरी मिर्च की छबि निराली
बड़ी चुलबुली नखरे वाली.
चिकनी हरी छरहरी काया
रूप देख कर मन ललचाया.
ज्योंहि मुँह से इसे लगाया
सी सी सी सी कह चिल्लाया.
पानी पीकर शक्कर खाई
तब जाकर राहत मिल पाई.
मिर्ची बिन सब्जी तरकारी
स्वादहीन हो जाए बेचारी.
चटनी चाट कचौड़ी फीकी
जबतक मिर्ची ना हो तीखी.
तरुणाई तक हरा रंग है
ढली उमरिया लाल बम्ब है.
शिमला मिर्च है गूदे वाली
मिर्च गोल भी होती काली.
हरी मिर्च दिखलाती शोखी
लाल मिर्च लगती है चोखी
शिमला मिर्च बदन से मोटी
काली मिर्च औषधि अनोखी.
भिन्न-भिन्न है इसकी किस्में
विटामिन - सी होता इसमें.
इसके गुण का ज्ञान है जिसमें
विष हरने के करे करिश्में.
सब्जी में यह डाली जाए
कोई इसको तल कर खाए
जब अचार के रूप में आए
देख इसे मुँह पानी आए.
हरी मिर्च की चटनी बढ़िया
गर्म-गर्म हो मिर्ची भजिया
फिर कैसे ना मनवा डोले
फूँक के खाए हौले-हौले.
खाने में तो काम है आती
कभी मुहावरा भी बन जाती.
मिर्च देख कर प्रीत जगी है
काहे तुझको मिर्च लगी है.
फिल्मी गीतों में भी आई
छोटी सी छोकरी नाम लाल बाई
इच्च्क दाना बिच्चक दाना
याद आया वो गीत पुराना ?
नीबू के संग कैसा चक्कर
जादू – टोना, जंतर – मंतर
धूनी में जब डाली जाए
बड़े-बड़े यह भूत भगाए.
मिर्च बड़ी ही गुणकारी है
तीखी है लेकिन प्यारी है
लेकिन ज्यादा कभी न खाना
कह गए ताऊ , दादा , नाना.
अति सदा होता दु:खदाई
सेवन कम ही करना भाई.
रखिए बस व्यवहार संतुलित
मन को कर देगी ये प्रमुदित.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )
विजय नगर , जबलपुर ( मध्य प्रदेश )
vaah aaj to mirchi ke bhi bhaagya khul gaye uske upar itni achchi kavita jo banaai hai.bahut maja aaya kavita padhkar.
ReplyDeleteइठलाती सी मिर्ची आई| हाथ लगाते ही मुस्काई||
ReplyDeleteदेती हुई चुनौती मानो| जीभ लगाओ तब तो जानो||
देख उधर नज़रे फेरी हैं| मिर्ची अंखियन की बैरी हैं||
समझा भाई खूब इशारा| गीत रचा इक प्यारा प्यारा||
बेचने सब कुछ लेकर, आया वाल मार्ट|
भूत को दुहराने में, जुटे सभी स्मार्ट ||
हा हा हा आदरणीय अरुण भाई जोहार है... मजा आ गया...
सादर....
सुबह सुबह इस मिर्च से, जिभ्या खुब सुसुवाय |
ReplyDeleteहरी तबीयत हो गई, पानी पी-पी भाय ||
khaane ka swaad badh jata hai...
ReplyDeleteफिल्मी गीतों में भी आई
ReplyDeleteछोटी सी छोकरी नाम लाल बाई
इच्च्क दाना बिच्चक दाना
याद आया वो गीत पुराना ?
बहुत खूब सर!
सादर
निगम जी ,बहुत सुंदर ,मिर्ची के गुणों की प्रशंसा !
ReplyDeleteअपनी तो चाँद पर पसीना आ गया :-) :-)
शुभकामनाएँ!
वाह...वाह...वाह... मिर्च की इतनी मुग्धकारी विवेचना पहली बार पढ़ रही हूँ...
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर...मनभावन...
मिर्च....बहुत बढ़िया कविता
ReplyDeleteसभी रूपों-स्वरूपों , गुणों का सचित्र वर्णन
शास्त्री जी ने मुझे कहा है कि ज्यादा मत खाना नहीं तो सुबह पछताना पडेगा?
ReplyDeletewah mirchi k gun laajwab aur roop rang bhi kamal.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया, मजेदार कविता
ReplyDeleteवाह: हरी मिर्च..तीखा मगर सुन्दर...
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
यह कविता MDH मसाले वालों के हाथ लग गई तो ले उड़ेंगे :)
ReplyDeleteलाजवाब, मज़ेदार एवं मिर्ची के बारे में इतनी सुन्दरता से विवरण किया है आपने जो प्रशंग्सनीय है!
ReplyDeleteमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
वाह अरुण जी ... हरी और लाल मिर्च को भी आपने उसके रंग में ही लिख दिया ... मिर्च जैसी भी हो अपनी याद जरूर छोडती है ...
ReplyDeleteअरुण जी,...
ReplyDeleteजायकेदार सुंदर रचना,बिना मिर्च के जायका ही नही आता,....
बहुत अच्छी लगी मिर्च बंदना,...बधाई,....
arun ji,
ReplyDeletemere blog 'saajha sansaar' par aapki upasthiti ke liye bahut dhanyawaad.
aapki rachna padhi. mirchi ki vyaakhya aur visheshta ki kaavyamay prastuti ke liye badhai.
गुण वाचक भाव वाचक सौंदर्य वर्धक हरी मिर्च पर स्वादु कविता .
ReplyDeleteयह हुई न बात।इसे कहते हैं व्यावहारिक कविता
ReplyDeleteम.न.जोशी
very nice sir ji
ReplyDeletevandana bhatnagar
bangalor