रक्षकों के हाथों में , किसी का वसन होगा
अब तो पैदा होते ही , सर पे कफन होगा.
यूँ न गजरे के लिये , तोड़िये कच्ची कली
कल तुम्हारे जूड़े में, फूल क्या –चमन होगा.
काष्ठ-बाला के युग में, महाजनी व्यवस्था है
हँसने वालों सहमों जरा, अश्क भी रहन होगा.
वृक्ष से प्रशासन पे , आँधी राजनीति की
शूर्पणखा की खातिर, कौन अब लखन होगा.
मुनादी सुनी तुमने , आज यज्ञ - शाला में
भावना की हवि देकर ,स्वार्थ का हवन होगा.
सपनों की नदिया में , मत की मछलियाँ हैं
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
(रचना वर्ष - 1979)
वृक्ष से प्रशासन पे,आँधी राजनीति की
ReplyDeleteशूर्पणखा की खातिर,कौन अब लखन होगा.
अनुपम भाव अभिव्यक्ति सुंदर रचना...बेहतरीन प्रस्तुति लगी निगम जी,.....
.
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
उत्कृष्ट --
ReplyDeleteरक्षक-भक्षक शिशु-कफ़न, होता चमन उजाड़ |
अश्क-रहन स्वारथ-हवन, रही चेतना ताड़ ||
इस खूबसूरत प्रस्तुति के प्रथम श्रोता / पाठक कौन थे भाई जी --
बेहतरीन
ReplyDeleteसादर
भावना की हवि देकर ,स्वार्थ का हवन होगा.
ReplyDeleteवाह!
बेहद सुन्दर प्रस्तुति!
वृक्ष से प्रशासन पे , आँधी राजनीति की
ReplyDeleteशूर्पणखा की खातिर, कौन अब लखन होगा... बेजोड़ पंक्तियाँ
बहुत सुन्दर सामयिक प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत खूब.
ReplyDeleteवृक्ष से प्रशासन पे , आँधी राजनीति की
ReplyDeleteशूर्पणखा की खातिर, कौन अब लखन होगा.
बहुत बढ़िया
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
ReplyDeleteसूचनार्थ!
--
संविधान निर्माता बाबा सहिब भीमराव अम्बेदकर के जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
आपका-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
काष्ठ-बाला के युग में, महाजनी व्यवस्था है
ReplyDeleteहँसने वालों सहमों जरा, अश्क भी रहन होगा.
उत्कृष्ट व सामयिक प्रस्तुति।
रक्षकों के हाथों में , किसी का वसन होगा
ReplyDeleteअब तो पैदा होते ही , सर पे कफन होगा.
....बहुत खूब ! बेहतरीन प्रस्तुति...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति......अरुण जी..
ReplyDeleteरक्षकों के हाथों में , किसी का वसन होगा
ReplyDeleteअब तो पैदा होते ही , सर पे कफन होगा.
सच्चाई की कलात्मक अभिव्यक्ति।
यथार्थ की बिम्बात्मक अभिव्यक्ति .
ReplyDeleteसपनों की नदिया में , मत की मछलियाँ हैं
ReplyDeleteयोजना की आरती से , मत्स्य-पूजन होगा.
बेहतरीन सामयिक प्रस्तुति.
बहुत सुंदर भाव
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ReplyDelete♥
यूं न गजरे के लिये , तोड़िये कच्ची कली
कल तुम्हारे जूड़े में, फूल क्या… चमन होगा
वाह वाह ! बहुत प्यारा शे'र है
प्रिय बंधुवर अरुण कुमार निगम जी
जवाब नहीं आपका !
पूरी ग़ज़ल अच्छी है …
…और इस पोस्ट से पिछली चार-पांच पोस्ट की सभी रचनाओं के लिए भी बधाई स्वीकारें !
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
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मुनादी सुनी तुमने , आज यज्ञ - शाला में
ReplyDeleteभावना की हवि देकर ,स्वार्थ का हवन होगा...
बहुत खूब अरुण जी ... नए शेरों के साथ सजी आपकी गज़ल .... कमाल का लिखा है ..
बहुत सुंदर प्रस्तुति ....
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