सुर्ख लबों पर कड़वी बातें
फबती नहीं, प्रिये ना बोलो
या
तो रंग लबों का बदलो
या
फिर थोड़ा मीठा बोलो
......................................
तुमसे भी बेहतर चेहरे
हैं
उन
पर भी यौवन ठहरे
हैं
नाक नक्श हैं तीखे – तीखे
आँखों में सागर
गहरे
हैं
सच
कहने से कब रोका है
सच्चा
बोलो मधु-सा बोलो
सुर्ख लबों
पर कड़वी बातें
फबती नहीं, प्रिये ना बोलो.......................................
यह
सुंदरता आवा - जाही
सूरज
– चंदा बने गवाही
यौवन -संझा ढलती है नित
रजनी आती लिये
सियाही
जीवन की नश्वरता
समझो
जब
भी बोलो , अच्छा बोलो
सुर्ख लबों
पर कड़वी बातें
फबती नहीं, प्रिये ना बोलो........................................
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय
नगर, जबलपुर (म.प्र.)
जीवन की नश्वरता समझो
ReplyDeleteजब भी बोलो , अच्छा बोलो
सुन्दर!
जीवन की नश्वरता समझो
ReplyDeleteजब भी बोलो , अच्छा बोलो
कबीर की ये पंक्तियाँ याद आ गईं---
बानी ऐसी बोलिए मन का आपा खोए
औरों को शीतल करे आपहु शीतल होए
वाह..................
ReplyDeleteबहुत बहुत सुंदर....
आनंद आया पढ़ कर..
सादर.
अनु
तुमसे भी बेहतर चेहरे हैं
ReplyDeleteउन पर भी यौवन ठहरे हैं
नाक नक्श हैं तीखे – तीखे
आँखों में सागर गहरे हैं
सर्वोत्तम पंक्तियाँ -
बधाई अरुण भाई जी ।
सादर
धोबी माली ठेले-वाला,ड्राइवर हाकर मेले-वाला
मिश्री-डली घोल के रखती, जैसे हो पहचान पुरानी ।
रंग-रूप यौवन है धोखा, चलते चलते ढल जाएगा-
कडुवाहट से कान पके मम, प्रिये बोल अब मीठी बानी ।।
''सुर्ख लबों पर कड़वी बातें
ReplyDeleteफबती नहीं,प्रिये ना बोलो
या तो रंग लबों का बदलो
या फिर थोड़ा मीठा बोलो''
क्या खूब लिखा है अरुण जी,बधाई.
सच कहने से कब रोका है
ReplyDeleteसच्चा बोलो मधु-सा बोलो
सुर्ख लबों पर कड़वी बातें
फबती नहीं, प्रिये ना बोलो........... पर सब कटु ही होता जा रहा है
bahut snndar bhav..Arun ji..
ReplyDeleteजीवन की नश्वरता समझो
ReplyDeleteजब भी बोलो , अच्छा बोलो
सुर्ख लबों पर कड़वी बातें
फबती नहीं, प्रिये ना बोलो...........
सच्चा तो अक्सर कड़ुवा ही लगता है .... सुंदर रचना ...
बहुत ही सुन्दर भावों से सजी कविता..
ReplyDeleteसुन्दर भावों से सजी कविता |मधुर भाषा बोलने पर जोर देती हुईअच्छी प्रस्तुति |
ReplyDeleteआशा
जब भी बोलो , अच्छा बोलो
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति .........
सुर्ख लबों पर कड़वी बातें
ReplyDeleteफबती नहीं, प्रिये ना बोलो
या तो रंग लबों का बदलो
या फिर थोड़ा मीठा बोलो ....
वाह!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति,..प्रभावी सच की राह बताती बेहतरीन रचना,..
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
सुर्ख लबों पर कड़वी बातें
ReplyDeleteफबती नहीं, प्रिये ना बोलो
या तो रंग लबों का बदलो
या फिर थोड़ा मीठा बोलो
बहुत सुन्दर ... आभार
बहुत ख़ूब!!
ReplyDeleteबहुत बढिया अरुण भाई एक एक पक्तिं उद्देश्य पूर्ण है|सार्थक उपदेश है|
ReplyDeleteहम पाठक ऐसे हि भाव पूर्ण कविता के दीवाने है भाई आंनद आ गया|