एक रूप ऐसा.............
आशा की ये डोर , भोर लाई चहुँ ओर
है सुखों से सराबोर, छोर कहीं न दिखाई दे.
नाचे झूमे मन मोर, देख घटा घनघोर
मारे पवन हिलोर, शोर कहीं न सुनाई दे.
आशा बड़ी चितचोर, करे भाव में विभोर
मस्ती छाई पोर-पोर, चोर कहीं न दिखाई दे.
कभी आए करजोर, कभी बैंय्या दे मरोर
कभी देती झकझोर, जोर कहीं न दिखाई दे.
एक रूप ऐसा भी-------
आशा बने जो निराशा, मिले केवल हताशा
बने जिंदगी तमाशा, राह कहीं न दिखाई दे.
आए निराशा का दौर, आत्मबल हो कमजोर
जाएँ भला किस ओर, कोई ठौर न सुझाई दे.
जब निराशा छा जाती, दर-दर भटकाती
रात दिन है सताती, कष्ट बड़े दु:खदाई दे.
संग आशा का न छोड़ो, निराशा से मुख मोड़ो
आत्मशक्ति को झंझोड़ो, यही फल सुखदाई दे.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय
नगर, जबलपुर (म.प्र.)
(ओबीओ महा उत्सव में शामिल रचना)
संग आशा का न छोड़ो, निराशा से मुख मोड़ो
ReplyDeleteआत्मशक्ति को झंझोड़ो, यही फल सुखदाई दे... और यही ज़िन्दगी बनाती है
संग आशा का न छोड़ो, निराशा से मुख मोड़ो
ReplyDeleteआत्मशक्ति को झंझोड़ो, यही फल सुखदाई दे......बहुत सुन्दर....
वाह...........
ReplyDeleteबहुत सुंदर...
आशा के दोनों रूप कभी ना कभी जीवन में दिखाई देते ही हैं.....
सादर.
बेहतरीन भाव संयोजित किए हुए ..उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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रोचक सुंदर कविता ।
धन्यवाद!
संग आशा का न छोड़ो, निराशा से मुख मोड़ो
ReplyDeleteआत्मशक्ति को झंझोड़ो, यही फल सुखदाई दे.
वाह!!!!बहुत सुंदर भावअभिव्यक्ति,...बेहतरीन रचना,...
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति...!
ReplyDeleteआपको पढ़कर एक अलग ही रचना संसार में भ्रमण कर आती हूँ..अति सुन्दर...
ReplyDeleteआशा के दौनों ही रूप बहुत अच्छे लगे |उंदा प्रस्तुति |
ReplyDeleteआशा
निगम साहब
ReplyDeleteअच्छी रचना को प्रस्तुत करने का आभार..... ! आगे भी प्रतीक्षा रहेगी !
bdhai itani achhi post ke liye .
ReplyDeleteसंग आशा का न छोड़ो, निराशा से मुख मोड़ो
ReplyDeleteआत्मशक्ति को झंझोड़ो, यही फल सुखदाई दे.
आशा है तो श्वासा है।
प्रेरणा देती हुई बढि़या रचना।