आजकल ये हमको
संशय हो गया
कैंसर नहीं तो शायद , क्षय हो गया.
फूलों से चोट हाये ! जब से लगी हमें
काँटों की राह चलना ही तय हो गया.
जब से बताया उनको , हैरान से खड़े
कि वेदना और मुझमें प्रणय हो गया.
अपने सभी यहाँ पे खाने को आमादा
यूँ लग रहा है मानो प्रलय
हो गया.
पशुओं में ढूँढता
हूँ मैं इन दिनों दया
ये आदमी भी कितना निर्दय हो गया.
खुशियाँ मनाइयेगा,अब धूमधाम से
पीड़ा से आज अपना परिणय हो गया.
हँसना ही पड़ रहा है , बात - बात पर
जीवन हमारा यारों अभिनय हो गया.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
खुशियाँ मनाइयेगा,अब धूमधाम से
ReplyDeleteपीड़ा से आज अपना परिणय हो गया
वाह.......
या आह कहूँ....???
बहुत बढ़िया अरुण जी.....
यह भी खूब रही.
ReplyDeleteजो अभिनय करे उसकी बहुत मांग है,अरुण जी.
फिर वह चाहे हो नेता या अभिनेता.
बहुत सुन्दर वाह!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 30-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-865 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
जब से बताया उनको , हैरान से खड़े
ReplyDeleteकि वेदना और मुझमें प्रणय हो गया......बहुत सुन्दर अरूण जी..प्रणय तो प्रणय़ है चाहे किसी से हो..?????
गहन ....दर्द छुपाती सी ...कोमल अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteशुभकामनायें ...
पशुओं में ढूँढता हूँ मैं इन दिनों दया
ReplyDeleteये आदमी भी कितना निर्दय हो गया... किसको खबर थी , ऐसे भी दिन आयेंगे
अपने सभी यहाँ पे खाने को आमादा
ReplyDeleteयूँ लग रहा है मानो प्रलय हो गया.
बहुत सुंदर क्या बात हैं .....
अधिक व्यस्त था |
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति |
बधाई ||
प्रभावी रचना ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति यथार्थ बोध कराती,,,,,बधाईयाँ जी /
ReplyDeleteजीवन अभिनय हो गया । बहुत अच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteखुशियाँ मनाइयेगा,अब धूमधाम से
ReplyDeleteपीड़ा से आज अपना परिणय हो गया.
कमाल का लिखा है आपने बेहद उम्दा प्रभावशाली रचना समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
पशुओं में ढूँढता हूँ मैं इन दिनों दया
ReplyDeleteये आदमी भी कितना निर्दय हो गया.
क्या सुंदर व्यंग समाज के ताज़ा हालात पर. बधाई.
कवीता की कोमलता के साथ आज की मानवीय स्थिति के दर्द को सुन्दर ढंग से चित्रित किया है इतने गहरे सोच के भाव एक भावुक ह्रदय ही दे सकता है बहुत अच्छी लगी आपकी ये कविता
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