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Wednesday, March 7, 2012

तब फागुन ,फागुन लगता था


चौपाल फाग से सजते थे
नित ढोल -नंगाड़े बजते थे
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.

  
गाँव में बरगद-- पीपल था
और आस-पास में जंगल था
मेड़ों पर खिलता था टेसू
और पगडण्डी में सेमल था.
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.



अंतस में प्रेम की चिंगारी
हाथों में बाँस की पिचकारी
थे पिचकारी में रंग भरे
और रंगों में गंगा-जल था.
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.


हर टोली अपनी मस्ती में
थी धूम मचाती बस्ती में
न झगड़ा था,न झंझट थी
और न आपस में दंगल था.
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.


कोई देवर संग,कोई साली संग
कोई अपनी घरवाली संग
थे रंग खेलते नेह भरे
हर रिश्ता कितना उज्जवल था.
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.

हर घर खुशबू पकवानों की
दावत होती मेहमानों की
तब प्रेम-रंग से रँगा हुआ
जीवन का मानो हर पल था.
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.


अब प्रेम कहाँ,अब रंग कहाँ
वह निश्छल,निर्मल संग कहाँ
इस युग की होली "आया - सी "
वह युग ममता का आँचल था .
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.

होली  की  शुभकामनाये, यहाँ भी क्लिक करें  
http://mitanigoth2.blogspot.com श्रीमती सपना निगम -होली की फाग 


-अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़) 
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.) 

21 comments:

  1. आप को भी होली का पर्व मुबारक हो !
    शुभकामनाएँ!

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  2. बहुत ही बढ़िया

    आपको होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।

    सादर

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  3. विविध रंगों से सजी हुई सुन्दर रचना ..
    होली की ढेर सारी शुभकामनाएँ .

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  4. होली , रंग , प्यार , अपनापन तभी था - उसकी याद में एक स्नेहिल रंग हमारी तरफ से ...

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  5. यादों में ही सही.....रंग तो हैं...

    आपको भी अनेकों मंगलकामनाएं...

    ReplyDelete
  6. बहुत ही बढ़िया ||


    दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक

    dineshkidillagi.blogspot.com

    होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।

    कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।

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  7. तब फागुन फागुन लगता था,....
    बहुत बेहतरीन प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति....

    अरुण जी,...होली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...

    RECENT POST...काव्यान्जलि ...रंग रंगीली होली आई,

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  8. अब प्रेम कहाँ,अब रंग कहाँ
    वह निश्छल,निर्मल संग कहाँ
    इस युग की होली "आया - सी "
    वह युग ममता का आँचल था .
    तब फागुन ,फागुन लगता था
    यह मौसम कितना चंचल था.

    सटीक .. होली की बधाई और शुभकामनाएं !!

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सपरिवार होली की मंगलकामनाएँ!

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  10. बहुत अच्छी प्रस्तुति| होली की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  11. हर टोली अपनी मस्ती में
    थी धूम मचाती बस्ती में
    न झगड़ा था,न झंझट थी
    और न आपस में दंगल था.
    तब फागुन ,फागुन लगता था

    बहुत सुंदर ...हार्दिक शुभकामनायें

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  12. तब फागुन ,फागुन लगता था!

    बहुत सार्थक अभिव्यक्ति है.
    होली की हार्दिक शुभकामनाएं.

    सादर

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  13. बहुत अच्छी अच्छी यादे हैं होली की...
    आपको सपरिवार होली की शुभकामनाएँ!

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  14. बहुत ही बढ़िया सार्थक अभिव्यक्ति....आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामानायें।

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  15. अब प्रेम कहाँ,अब रंग कहाँ
    वह निश्छल,निर्मल संग कहाँ....
    बहुत ही सुन्दर गीत....
    होली की सादर बधाईयां..

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  16. होली की बधाईयां..

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  17. तब और अब की होली में बहुत फर्क आ गया है।
    इस विसंगति को आपने गीत के माध्यम से बखूबी प्रस्तुत किया है।

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  18. wah nigam sahab purani smrtiyon ko taja kr diya ...bahut hi khoob soorat chitran kiya hai ......vakai jaman bahut teji se badal chuka hai....koti koti badhai sweekaren

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  19. मन को छू, कचोट को और खरोंच गयी आपकी यह रचना...

    प्रवाहमयी, मर्मस्पर्शी ऐसा सुन्दर गीत रचा आपने जो सहज ही मर्म में उतर जाए..

    प्रशंसा में जो भी कहा जाए कम है...

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