(ओबीओ महाउत्सव में शामिल रचना)
जुड़ गया बिटिया का रिश्ता, दिन सजीले हो गये
नयन कन्या दान करते , क्यों पनीले हो गये.
चहचहाती चपल चिड़िया , चंचला चुपचाप है
यूँ बजी शहनाई मन में , सुर सुरीले हो गये.
नाज से पाला था जिसको , वो पराई हो रही
माँ – पिता , परिवार के सपने रंगीले हो गये.
हैं नहीं आसान राहें, आज के परिवेश में
अब सजन - ससुराल के भी पथ कँटीले हो गये.
देख कर बेटी की हालत , नयन गीले हो गये
कल किये थे हाथ पीले , आज नीले हो गये.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
मर्मस्पर्शी रचना ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और मार्मिक रचना...
ReplyDeleteदेख कर बेटी की हालत , नयन गीले हो गये
कल किये थे हाथ पीले , आज नीले हो गये.
दिल को छू गयी...
सादर.
बेटी की विदाई के बाद हाथ नीले हो गये--
ReplyDeleteकहीं कही तो बेचारा बाप
कर्ज के बोझ के तले दबकर
पूरा का पूरा नीला हो जाता है ।
दर्द ही दर्द --
बहत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
marmik......
ReplyDeleteदेख कर बेटी की हालत नयन गीले हो गये
ReplyDeleteकल किये थे हाथ पीले आज नीले हो गये.
बहुत सुंदर दर्द भरी रचना,अच्छी प्रस्तुति...
MY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
नाज से पाला था जिसको , वो पराई हो रही
ReplyDeleteमाँ – पिता , परिवार के सपने रंगीले हो गये... बेटी वाले घर की रौनक हैं ये सपने
मार्मिक रचना!
ReplyDeleteहैं नहीं आसान राहें, आज के परिवेश में
ReplyDeleteअब सजन - ससुराल के भी पथ कँटीले हो गये.
बहुत खूब अरुण जी ... मज़ा आ गया इस काव्यात्मक प्रस्तुति को पड़ के ... बहुत खूब ...
vicharniy prastuti.dard bhari kavita . .यह चिंगारी मज़हब की."
ReplyDeleteवाह!!क्या कहने.....बहुत ही बढ़िया भाव संयोजन के साथ यथार्थ का आईना दिखती सार्थक रचना....
ReplyDeletewah nigam sahab bilkul mamsparshi rachana ......sadar abhar
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी रचना...आँखें नम कर गयी...आभार
ReplyDeleteचहचहाती चपल चिड़िया , चंचला चुपचाप है
ReplyDeleteयूँ बजी शहनाई मन में , सुर सुरीले हो गये.
कविता का लालित्य मोहक है।
बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन सार्थक सटीक रचना,......
ReplyDeleteMY RESENT POST... फुहार....: रिश्वत लिए वगैर....
EXCELLENT.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और मार्मिक रचना
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी सुन्दर रचना...
ReplyDeleteदिल कौ छू गई यह रचना...
ReplyDeleteआह ! बेटियां तेरी यही कहानी . मर्म को सहलाती हुई सुन्दर रचना..
ReplyDeleteपढ़ गया इक सांस में, सन्नाटा गूंजता खडा
ReplyDeleteमानो मन के भाव सब, खाली पतीले हो गए...
बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन मर्मस्पर्शी सुन्दर रचना.....
ReplyDeletebhut hi sundar nigam sahab bilkul mamshparshi rachana
ReplyDeleteनाज से पाला था जिसको , वो पराई हो रही
माँ – पिता , परिवार के सपने रंगीले हो गये.
हैं नहीं आसान राहें, आज के परिवेश में
अब सजन - ससुराल के भी पथ कँटीले हो गये.
ye panktiyan dil ko chho gayeen
जुड़ गया बिटिया का रिश्ता, दिन सजीले हो गये
ReplyDeleteनयन कन्या दान करते , क्यों पनीले हो गये.mamta beti ke viyog me aankhon ke raste se chalkti hai.
बहुत सुन्दर रचना...मार्मिक!!
ReplyDelete