चौपाल फाग से सजते थे
नित ढोल -नंगाड़े बजते थे
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.
गाँव में बरगद-- पीपल था
और आस-पास में जंगल था
मेड़ों पर खिलता था टेसू
और पगडण्डी में सेमल था.
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.
अंतस में प्रेम की चिंगारी
हाथों में बाँस की पिचकारी
थे पिचकारी में रंग भरे
और रंगों में गंगा-जल था.
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.
हर टोली अपनी मस्ती में
थी धूम मचाती बस्ती में
न झगड़ा था,न झंझट थी
और न आपस में दंगल था.
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.
कोई देवर संग,कोई साली संग
कोई अपनी घरवाली संग
थे रंग खेलते नेह भरे
हर रिश्ता कितना उज्जवल था.
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.
और आस-पास में जंगल था
मेड़ों पर खिलता था टेसू
और पगडण्डी में सेमल था.
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.
अंतस में प्रेम की चिंगारी
हाथों में बाँस की पिचकारी
थे पिचकारी में रंग भरे
और रंगों में गंगा-जल था.
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.
हर टोली अपनी मस्ती में
थी धूम मचाती बस्ती में
न झगड़ा था,न झंझट थी
और न आपस में दंगल था.
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.
कोई देवर संग,कोई साली संग
कोई अपनी घरवाली संग
थे रंग खेलते नेह भरे
हर रिश्ता कितना उज्जवल था.
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.
हर घर खुशबू पकवानों की
दावत होती मेहमानों की
तब प्रेम-रंग से रँगा हुआ
जीवन का मानो हर पल था.
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.
अब प्रेम कहाँ,अब रंग कहाँ
वह निश्छल,निर्मल संग कहाँ
इस युग की होली "आया - सी "
वह युग ममता का आँचल था .
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.
यह मौसम कितना चंचल था.
होली की शुभकामनाये, यहाँ भी क्लिक करें http://mitanigoth2.blogspot.com श्रीमती सपना निगम -होली की फाग
-अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
आप को भी होली का पर्व मुबारक हो !
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteआपको होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
विविध रंगों से सजी हुई सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteहोली की ढेर सारी शुभकामनाएँ .
होली , रंग , प्यार , अपनापन तभी था - उसकी याद में एक स्नेहिल रंग हमारी तरफ से ...
ReplyDeleteयादों में ही सही.....रंग तो हैं...
ReplyDeleteआपको भी अनेकों मंगलकामनाएं...
बहुत ही बढ़िया ||
ReplyDeleteदिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।
तब फागुन फागुन लगता था,....
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति....
अरुण जी,...होली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...
RECENT POST...काव्यान्जलि ...रंग रंगीली होली आई,
अब प्रेम कहाँ,अब रंग कहाँ
ReplyDeleteवह निश्छल,निर्मल संग कहाँ
इस युग की होली "आया - सी "
वह युग ममता का आँचल था .
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.
सटीक .. होली की बधाई और शुभकामनाएं !!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सपरिवार होली की मंगलकामनाएँ!
बहुत अच्छी प्रस्तुति| होली की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteहर टोली अपनी मस्ती में
ReplyDeleteथी धूम मचाती बस्ती में
न झगड़ा था,न झंझट थी
और न आपस में दंगल था.
तब फागुन ,फागुन लगता था
बहुत सुंदर ...हार्दिक शुभकामनायें
तब फागुन ,फागुन लगता था!
ReplyDeleteबहुत सार्थक अभिव्यक्ति है.
होली की हार्दिक शुभकामनाएं.
सादर
बहुत अच्छी अच्छी यादे हैं होली की...
ReplyDeleteआपको सपरिवार होली की शुभकामनाएँ!
बहुत ही बढ़िया सार्थक अभिव्यक्ति....आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामानायें।
ReplyDeleteGreat creation! Happy Holi.
ReplyDeleteHappy holi and Mahila divas both.
ReplyDeleteअब प्रेम कहाँ,अब रंग कहाँ
ReplyDeleteवह निश्छल,निर्मल संग कहाँ....
बहुत ही सुन्दर गीत....
होली की सादर बधाईयां..
होली की बधाईयां..
ReplyDeleteतब और अब की होली में बहुत फर्क आ गया है।
ReplyDeleteइस विसंगति को आपने गीत के माध्यम से बखूबी प्रस्तुत किया है।
wah nigam sahab purani smrtiyon ko taja kr diya ...bahut hi khoob soorat chitran kiya hai ......vakai jaman bahut teji se badal chuka hai....koti koti badhai sweekaren
ReplyDeleteमन को छू, कचोट को और खरोंच गयी आपकी यह रचना...
ReplyDeleteप्रवाहमयी, मर्मस्पर्शी ऐसा सुन्दर गीत रचा आपने जो सहज ही मर्म में उतर जाए..
प्रशंसा में जो भी कहा जाए कम है...