चूँ - चूँ करती , धूल नहाती गौरैया.
बच्चे , बूढ़े , सबको भाती गौरैया .
कभी द्वार से,कभी झरोखे,खिड़की से
फुर - फुर करती , आती जाती गौरैया .
बीन-बीन कर तिनके ले- लेकर आती
उस कोने में नीड़ बनाती गौरैया.
शीशे से जब कभी सामना होता तो,
खुद अपने से चोंच लड़ाती गौरैया.
बिही की शाखा से झूलती लुटिया से
पानी पीकर प्यास बुझाती गौरैया.
बच्चे , बूढ़े , सबको भाती गौरैया .
कभी द्वार से,कभी झरोखे,खिड़की से
फुर - फुर करती , आती जाती गौरैया .
बीन-बीन कर तिनके ले- लेकर आती
उस कोने में नीड़ बनाती गौरैया.
शीशे से जब कभी सामना होता तो,
खुद अपने से चोंच लड़ाती गौरैया.
बिही की शाखा से झूलती लुटिया से
पानी पीकर प्यास बुझाती गौरैया.
साथ समय के बिही का भी पेड़ कटा
सुख वाले दिन बीते, गाती गौरैया.
दृश्य सभी ये ,बचपन की स्मृतियाँ हैं
पहले - सी अब नजर न आती गौरैया.
(पुनर्प्रस्तुति)
सुख वाले दिन बीते, गाती गौरैया.
दृश्य सभी ये ,बचपन की स्मृतियाँ हैं
पहले - सी अब नजर न आती गौरैया.
(पुनर्प्रस्तुति)
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
तरंगो का ज़माना ।
ReplyDeleteप्रगति का बहाना ।
ऊँची अट्टालिकाएं-
पेड़ ही निशाना ।
दर्पण चिढाये
पर रंग है ज़माना ।
बेचारी गौरैया
गँवा दे ठिकाना ।
पाए ना पानी
खाए ना दाना ।
गौरैया निवाला
टावर का खाना ।।
सच में.....कंक्रीट के जगलों में कहीं खो गयी है गौरैया...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति.
सादर.
सच में आजकल सब कुछ बदल गया है...सुंदर रचना
ReplyDeletehttp://aadhyatmikyatra.blogspot.in/
बहुत सुंदर गीत रचा है आदरणीय अरुण भईया....
ReplyDeleteथोड़ा सा दाना दोना भर पानी हो, फिर आँगन मे
शोर मचाती आ जाएगी फिर मुसकाती गौरैया
सादर।
देखते रहो और ना जाने क्या-क्या गायब हो जायेगा।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
साथ समय के बिही का भी पेड़ कटा
ReplyDeleteसुख वाले दिन बीते, गाती गौरैया.
दृश्य सभी ये ,बचपन की स्मृतियाँ हैं
पहले - सी अब नजर न आती गौरैया.
बहुत ही बढि़या प्रस्तुति ।
यथार्थ को दर्शाती सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteहाय कहाँ गई वो चिड़िया
ReplyDeleteगौरैया की व्यथा की अभिव्यक्ति सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर ,बेहतरीन रचना,....
ReplyDeleteवह ..मन भी गौरैया ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ...
मन भाई गौरैया ...ऊपर गलत छपा है ...क्षमा करें ...
Deleteअब गौरैया कहाँ दिखती है .... सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना पढ़वाने का आभार.. " सवाई सिंह "
ReplyDeletehttp://bulletinofblog.blogspot.in/2012/03/7.html
ReplyDelete"अब नजर न आती गौरैया"...सच में कहाँ खोगई है गैरैया.. बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteबीन-बीन कर तिनके ले- लेकर आती
ReplyDeleteउस कोने में नीड़ बनाती गौरैया.
शीशे से जब कभी सामना होता तो,
खुद अपने से चोंच लड़ाती गौरैया.
आदमी भी जीवन भर यही सब करता है,
खुद से लड़ने में सारी उम्र बिता देता है।
पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...बेहतरीन रचना,....!!!!!
ReplyDeleteशीशे से जब कभी सामना होता तो,
ReplyDeleteखुद अपने से चोंच लड़ाती गौरैया.
वाह!!!!!बहुत सुंदर रचना,क्या बात है,बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति,
MY RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
गौरैया को वापस बुलाने की अच्छी मनुहार है ये ....:))
ReplyDeletesatya kaha aapne...bahut achchi rachna
ReplyDeleteबीन-बीन कर तिनके ले- लेकर आती
ReplyDeleteउस कोने में नीड़ बनाती गौरैया.
उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई ...