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Saturday, March 24, 2012

) हास्य गज़ल (


(ओबीओ तरही मुशायरा में शामिल)
 
उमर ढली पर अभी भी दिखते  शवाब में
ये काली जुल्फें रँगी हैं जब से खिजाब में.

कवाब, हड्डी, कलेजी, कीमा हर एक दिन
उन्हें  यकीं  है  बड़ा ही यारों  जुलाब में.

मिली वसीयत में  भारी दौलत नसीब से
समय बिताने पकड़ते मछली  तालाब में.

व्ही.आर. लेने की सोचता हूँ मैं इन दिनों
मजा नहीं रह गया जरा भी है  जॉब में.

सलाम ठोकूँ क्यों डाकिये को बिना वजह
"मैं  जानता हूँ जो वो लिखेंगे  जवाब में"

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

16 comments:

  1. बहुत ख़ूबसूरत.

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  2. मुझे नहीं पता यह क्या हो गया मुझको --
    क्षमा सहित यह तुरंती ।

    डाकिया डाकुओं से, बुरा हो गया ।
    लूट लेता है तन्हाई, आकर यहाँ ।
    चिट्ठियाँ क्या पढूं , हाल मालुम हमें
    या खुदा मैं रहूँ आज जाकर कहाँ ।।


    मैं नाकारा नहीं था कभी भी प्रभु
    खुब कमाया खिलाया-पिलाया सदा ।
    आज मशगूल हैं मद पिए मस्त वे
    देव किस्मत में अपने, लिखा क्या बदा ।।



    केश काला नहीं, तन करारा नहीं
    दिल में बैठे रहे, क्यूँ निकाला नहीं ।
    हर्ट की सर्जरी पास-बाई किया
    मूंग दलती रहो, कुछ बवाला नहीं ।


    वसीयत तुम्हारे लिए कर दिया
    चार कमरों की बोतल तुम्हारी हुई ।
    दफ़्न करना जरा, साथ में इक कलश
    मस्त हो सो सके, देह हारी हुई ।

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  3. अति सुन्दर रचना. बधाई..

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  4. बहुत बढ़िया सर........

    सलाम ठोकूँ क्यों डाकिये को बिना वजह
    "मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में"

    लाजवाब........
    सादर.

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  5. सलाम ठोकूँ क्यों डाकिये को बिना वजह
    "मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में"...achhi hain..panktiyaan

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  6. सलाम ठोकूँ क्यों डाकिये को बिना वजह
    "मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में"
    बहुत बढ़िया...

    सर स्पाम की वजह से मेरी टिप्पणियां गायब हो रही है...लगभग हर ब्लॉग से...
    यहाँ भी दोबारा टिप्पणी कर रही हूँ...

    दाद कबूल करें.
    सादर.

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  7. बहुत ख़ूबसूरत और रोचक प्रस्तुति...

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  8. बढ़िया अशार कहे हैं आदरणीय अरुण भईया...
    सादर।

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  9. बहुत ही बढ़िया सर!


    सादर

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  10. सलाम ठोकूँ क्यों डाकिये को बिना वजह
    "मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में" :)

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  11. व्ही.आर. लेने की सोचता हूँ मैं इन दिनों
    मजा नहीं रह गया जरा भी है जॉब में.

    इस मामले में हमारी आपकी सोच एक जैसी है।

    बढि़या हास्य।

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  12. कल 26/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  13. मिली वसीयत में भारी दौलत नसीब से
    समय बिताने पकड़ते मछली तालाब में...

    वाह वाह अरुण जी ... कौनसी मछली थी जिसको पकड़ते इतना कुछ मिल गया ... कहीं नयी मछली तो नहीं मिल गयी मालदार सी ... हा हा ...

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  14. मिली वसीयत में भारी दौलत नसीब से
    समय बिताने पकड़ते मछली तालाब में.
    bahot achche......

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