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Wednesday, May 15, 2013

अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस



  
                      (चित्र गूगल से साभार)
 
कुण्डलिया छंद :

सुविधा ने सुख छीन कर , बाँट दिया परिवार
बड़ी    हुई   अट्टालिका  ,   बंद   हो   गये   द्वार
बंद    हो  गये   द्वार   ,  रखें    दीवारें    कटुता
नींव सिसकती मौन , मिटी रिश्तों की मधुता
पसरा हुआ तनाव , निगलती पग-पग दुविधा
क्या सुख का पर्याय,कभी बन सकती सुविधा ?????

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग़ (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजयनगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

9 comments:

  1. सुविधा के ही नाम पर, पला मन में स्वार्थ
    घर के झगड़े मिटे नहीं , करते हैं परमार्थ
    करते हैं परमार्थ , मन में कटुता पालें
    कैसे हों फल फूल , जब जड़ में मट्ठा डालें
    मर्यादा न रिश्तों की , मन में आई दुविधा
    प्रेम का पाठ भूल , देखें अपनी सुविधा ।

    सच को कहती अच्छी कुंडली ।

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  2. समय के साथ बदला है पारिवारिक माहौल और रिश्ते भी ......सुंदर पंक्तियाँ

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  3. आज इस बदलते माहौल में बहुत कु्छ बदल रहा है..्सुन्दर भाव..

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  4. कुण्डलिया और घनाक्षरी छंद को लिखते वक़्त उन की अंतिम पंक्ति पर ही सारा दारोमदार रहता है। बहुत से लोग इस पर ग़ौर करना ही नहीं चाहते, पर आप ने इसी ख़ूबी के साथ इस कुण्डलिया छन्द में चार-चाँद लगा दिये हैं। बहुत ख़ूब।

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  5. छंद के माध्यम से दिल की बात कह दी आपने ...
    परिवारों को बाँट के रख दिया है इस सुविधा नामक मन्त्र ने ....

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  6. मंगलवार 21/05/2013 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं ....
    आपके सुझावों का स्वागत है ....
    धन्यवाद !!

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  7. परिवार के बिखराव पर सार्थक कुण्डलियाँ
    सुंदर
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बधाई



    आग्रह है पढ़ें "बूंद-"
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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  8. बहुत सुन्दर सामयिक कुण्डलियाँ !

    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest postअनुभूति : विविधा
    latest post वटवृक्ष

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  9. कोई समझता कहाँ है ये..

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