( चित्र गूगल से साभार )
सिर्फ पानी का बुलबुला लाया
इस से ज्यादा बता दे क्या लाया |
इस से ज्यादा बता दे क्या लाया |
लूटता ही रहा जमाने को
नाम कितना अरे कमा लाया |
कोसता है किसे बुढ़ापे में
वक़्त तूने ही खुद बुरा लाया |
तू अकेला चला जमाने से
क्यों नहीं संग काफिला लाया |
लोग कह ना सके तुझे दिल से
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया |
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट ,विजय नगर, जबलपुर (मध्य प्रदेश)
(ओपन बुक्स ऑन लाइन तरही मुशायरा में सम्मिलित दूसरी गज़ल)
बहत सुंदर आदरणीय अरुण कुमार सर। दिल खुश हो गया। मेरे ब्लॉग पर भी पधारें.........
ReplyDeletehttp://hindu0007.blogspot.in/
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गजल..मेरी नई पोस्ट "जरा अज़मां कर देखिए" ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गज़ल.....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल.....
ReplyDeleteदाद कबूल करें.
सादर
अनु
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (३०-०५-२०१३) को "ब्लॉग प्रसारण-११" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति ..
ReplyDeleteकोसता है किसे बुढ़ापे में
ReplyDeleteवक़्त तूने ही खुद बुरा लाया |
बहुत उम्दा,लाजबाब लाजबाब गजल ,
Recent post: ओ प्यारी लली,
बहुत सुन्दर ग़ज़ल.
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा गज़ल अरुण जी ... हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteकोसता है किसे बुढ़ापे में
ReplyDeleteवक़्त तूने ही खुद बुरा लाया |
........ लाजबाब गजल अरुण जी
आदरणीय अरुण जी
ReplyDeleteनमस्कार !
जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ
अहा! अति सुन्दर..
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