Followers

Monday, April 22, 2013

वीर छन्द : छत्तीसगढ़ी में



(चित्र ओबीओ/गूगल से साभार)
ओपन बुक्स ऑनलाइन ,चित्र से काव्य तक छंदोत्सव,
अंक-२५ में मेरी रचना
 (वीर छंद या आल्हा सजता, अतिशयोक्ति से बड़ा नफीस 
  मात्राओं की गणना इसमें , सोलह-पन्द्रह कुल इकतीस   
  अन्त में गुरु,लघु )

महूँ  पूत  हौं  भारत  माँ    के, अंग - अंग मा  भरे  उछाँह 
छाती का  नापत हौ  साहिब ,  मोर कहाँ तुम पाहू थाह ॥ 
देख गवइहाँ झन हीनव तुम, अन्तस मा बइठे महकाल  
एक नजर देखवँ  तो तुरते,  जर जाथय बइरी के खाल  
सागर - ला  छिन - मा पी जाथवँ,  छर्री-दर्री  करवँ पहार 
पट-पट ले दुस्मन मर जाथयँ,मन-माँ लाववँ  कहूँ बिचार ॥  
भगत सिंग के बाना दे दौ  , अंग - भुजा  फरकत हे मोर 
डब-डब  डबकय लहू लालबम, अँगरा हे आँखी के कोर ॥ 

मयँ हलधरिया सोन उगाथवँ, बखत परे धरिहौं बन्दूक ॥ 
उड़त चिरैया  मार  गिराथवँ  , मोर निसाना बड़े अचूक ॥    
बजुर  बरोबर  हाड़ा - गोड़ा  , बीर  दधीची  के  अवतार 
मयँ  अर्जुन  के  राजा बेटा , धनुस -बान हे मोर सिंगार ॥ 
चितवा कस चुस्ती जाँगर- मा, बघुआ कस मोरो हुंकार 
गरुड़ सहीं मयँ गजब जुझारू, नाग बरोबर हे फुफकार ॥  
अड़हा अलकरहा दिखथवँ मयँ, हाँसव झन तुम दाँत निपोर 
भारत-माता के  पूतन ला , झन  समझव  साहि ब कमजोर ॥
*******************************************************************************
शब्दार्थ : महूँ = मैं भीउछाँह = उत्साह, मोर = मेरा, पाहू = पाओगे, हीनव = उपेक्षित करना, जर जाथय = जल  जाती है, अँगरा = अंगार,  छर्री-दर्री करवँ पहार = पर्वत को चूर चूर करता हूँबजुर = वज्र, चितवा = चीताजाँगर = देहयष्टि, मोरो = मेरी भीअड़हा = गँवारअलकरहा = विचित्र -सादाँत निपोर = दाँत दिखा कर हँसना, झन = मत 
*******************************************************************************

12 comments:

  1. महूँ पूत हौं भारत माँ के, अंग - अंग मा भरे उछाँह
    छाती का नापत हौ साहिब , मोर कहाँ तुम पाहू थाह ॥
    bahut khoob exceelent

    ReplyDelete
  2. हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली..,
    यह मुश्ते खाक है फानी रहे न रहे.....
    ----- ।। भगत सिंह ।। -----

    ReplyDelete
  3. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय

    ReplyDelete
  4. भगत सिंग के बाना दे दौ , अंग - भुजा फरकत हे मोर
    डब-डब डबकय लहू लालबम, अँगरा हे आँखी के कोर ॥

    वाह ,,वाह !!! अरुण जी आप तो हर विधा के छंद लिखने में माहिर है ,,,बहुत खूब बधाई ,,,

    RECENT POST : प्यार में दर्द है,

    ReplyDelete
  5. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २३ /४/१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर अरुण जी ...पर समझने में थोड़ी दिमागी कसरत करनी पड़ी..

    ReplyDelete
  7. समझने में ज़रा कष्ट हुआ मगर बढ़िया लगा...

    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!

    ReplyDelete
  9. बहुत सुन्दर अरूण भाई! जितनी बार पढ़ा रस की मात्रा उतनी ही बढ़ती गयी। बहुत बधाई।

    ReplyDelete
  10. वाह !!! क्या बात है,बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,

    RECENT POST: गर्मी की छुट्टी जब आये,

    ReplyDelete