Followers

Sunday, November 13, 2011

बाल-दिवस का पर्व मुझे भी मनाने दो.

बाल-दिवस पर यदि मैं भी सम्मानित होती
लेकर जाते तुम ही मुझको राज-भवन तक.
मेरे कारण नाम तुम्हारा चम-चम करता
हिंद भूमि से लेकर उन्नत नील गगन तक.

ऑफिस के मित्रों पर कितना रौब जमाते
और मुहल्ले में तुम कितनी धौंस जमाते.
तृतीय प्रहर का राग मधुवंती बिसराकर
सप्तम प्रहर सिर्फ राग मालकौंस सुनाते.

जन-सैलाब उमड़ता जब दिल्ली से आते
“मेरी बिटिया” कह अपना परिचय बतलाते
पता पूछते दूर गाँव से उस दिन पापा
सम्मानित करने को आते रिश्ते-नाते.

मुझे कोख में मार दिया है ,  भटक रही हूँ
कभी यहाँ और कभी वहाँ पर अटक रही हूँ.
पथराई आँखें ना रोई मुझे मार कर
क्या अब भी मैं इन आँखों में खटक रही हूँ ?

उस भाई की खातिर मेरा कत्ल हुआ है
जिसका अब तक दुनियाँ में अस्तित्व नहीं है.
निर्दयी माँ ! पात्र नहीं तू दया – क्षमा की
कोख रखी है पर तुझमें मातृत्व नहीं है.

अत्याचार हुआ है फिर भी माफ किया
मुझको भी अब इस दुनियाँ में आने दो.
मेरा भी मन कहता है खुल कर जीऊँ
बाल-दिवस का पर्व मुझे भी मनाने दो.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )
विजय नगर , जबलपुर ( मध्य प्रदेश )

23 comments:

  1. हैप्पी चिल्ड्रेन्स डे।

    ReplyDelete
  2. उस भाई की खातिर मेरा कत्ल हुआ है
    जिसका अब तक दुनियाँ में अस्तित्व नहीं है.
    निर्दयी माँ ! पात्र नहीं तू दया – क्षमा की
    कोख रखी है पर तुझमें मातृत्व नहीं है.

    अत्याचार हुआ है फिर भी माफ किया
    मुझको भी अब इस दुनियाँ में आने दो.
    मेरा भी मन कहता है खुल कर जीऊँ
    बाल-दिवस का पर्व मुझे भी मनाने दो.

    बहुत मार्मिक चित्रण ... बाल दिवस पर यह भेंट बहुत विचारणीय है

    ReplyDelete
  3. कन्या-भ्रूण-हत्या से संबद्ध ऐसी रचना पहली बार पढ़ी

    उस भाई की खातिर मेरा कत्ल हुआ है
    जिसका अब तक दुनिया में अस्तित्व नहीं है
    निर्दयी माँ ! पात्र नहीं तू दया – क्षमा की
    कोख रखी है पर तुझमें मातृत्व नहीं है


    बहुत मार्मिक और करुण रचना है …

    बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  4. उस भाई की खातिर मेरा कत्ल हुआ है
    जिसका अब तक दुनियाँ में अस्तित्व नहीं है.
    निर्दयी माँ ! पात्र नहीं तू दया – क्षमा की
    कोख रखी है पर तुझमें मातृत्व नहीं है.
    Bahut hi maarmik ... Baal diwas ki saarthakta tab hi hai jab betiyon ko uchit samman mile ....

    ReplyDelete
  5. very nice..
    bahut hi sundar marm bhav prastut karati rachana hai..
    sundar prastuti....

    ReplyDelete
  6. अत्याचार हुआ है फिर भी माफ किया
    मुझको भी अब इस दुनियाँ में आने दो.
    मेरा भी मन कहता है खुल कर जीऊँ
    बाल-दिवस का पर्व मुझे भी मनाने दो.

    Bahut Sunder ....Hardik Shuhkamnayen

    ReplyDelete
  7. आद अरुण भाई...
    २१वीं सदी के लोगों से कन्या भ्रूण संरक्षण और बेटी बचाने की अपील करना पड़े इससे शर्मनाक बात कुछ नहीं हो सकती... धिक्कार है हमारी 'उन्नत सभ्यता' पर..
    सादर अभिनन्दन आपका इस बेहद प्रभावशाली रचना के लिये....
    इस पावन यग्य में एक छान्दाहुती मेरी भी

    "बिटिया बिटुवा में रखो, ज़रा भी नहीं फर्क
    बिटिया न होगी, होगा, जग का बेडागर्क
    जग का बेडागर्क, कहाँ से वधु लाओगे
    बिटुवा बिटुवा भूंक, वंश भी मिटवाओगे
    मूरख रे तू जान, प्रभू की सुन्दर चीठिया
    बिटिया तेरी मान, बचाओ सब मिल बिटिया"

    सादर...

    ReplyDelete
  8. Babli has left a new comment on your post "बाल-दिवस का पर्व मुझे भी मनाने दो.":

    बाल दिवस के अवसर पर आपने बहुत ही सुन्दर रचना लिखा है! बधाई!

    ReplyDelete
  9. बाल दिवस के अवसर पर आपने बहुत ही सुन्दर रचना लिखा है! बधाई!
    बहुत बहुत शुक्रिया आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए!

    ReplyDelete
  10. बेहद प्रभावशाली रचना .....बाल दिवस पर

    संजय भास्कर
    आदत....मुस्कुराने की
    पर आपका स्वागत है
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

    ReplyDelete
  11. अब क्या कहूँ इतनी अर्थपूर्ण मार्मिक प्रस्तुति पर.
    लाजवाब

    ReplyDelete
  12. सार्थक व भावपूर्ण कृति.बधाई !

    ReplyDelete
  13. बेहद प्रभावशाली और सशक्त अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  14. मर्मस्पर्शी एवं प्रभावपूर्ण प्रस्तुति!

    ReplyDelete
  15. Awesome expressions !!!
    Loved it

    Happy Children's day :)

    ReplyDelete
  16. करुण...हृदयस्पर्शी...

    प्रासंगिक प्रश्न...

    ReplyDelete
  17. मार्मिक चित्रण,अब समय की ज़रूरत है कि,इस कुरूप-विचारधारा को,बदला जाय.

    ReplyDelete
  18. मेरा भी मन कहता है खुल कर जीऊँ
    बाल-दिवस का पर्व मुझे भी मनाने दो.

    कठोर सामाजिक मानसिकता का विरोध करती कोमल मर्मस्पशी कविता|

    ReplyDelete
  19. नमस्कार, मेरा भी मन करता है खुल क्र जीऊ। मार्मिक चित्रण ।

    ReplyDelete
  20. भ्रूण हत्या के ऊपर सख्त प्रहार ....
    बहुत ही सुंदर ....मर्मस्पर्शी रचना .....

    ReplyDelete
  21. भ्रूण हत्या के ऊपर सख्त प्रहार ....
    बहुत ही सुंदर ....मर्मस्पर्शी रचना .....

    ReplyDelete