हों मोहब्बत में सदा फेल, जरूरी तो नहीं
हमेशा हो दिलों का मेल, जरूरी तो नहीं.
रोशनी के लिए दिल को भी जलाना सीखो
हमेशा हो दिये में तेल, जरूरी तो नहीं.
जुल्फ की कैद, नज़र या जिगर के तहखाने
बुरी हमेशा लगे जेल , जरूरी तो नहीं.
पत्थरों, काँटों, शरारों से भी रिश्ता रखिए
सदा पटरी पे रहे रेल , जरूरी तो नहीं.
एक ही साथी बहुत है, अगर वो सच्चा है
लगाओ रिश्तों का महा-सेल, जरूरी तो नहीं.
मौन अभिव्यक्ति तेरी आँखों में पढ़ लेगा ‘अरुण’
सदा लिख करो “ ई- मेल “ , जरूरी तो नहीं.
कृपया यहाँ भी पधारें बेटी बचाओ अभियान (गीत – 3)
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छतीसगढ़)
विजय नगर,जबलपुर (मध्य प्रदेश)
bahut khoob atisundar.
ReplyDeleteरोशनी के लिए दिल को भी जलाना सीखो
ReplyDeleteहमेशा हो दिये में तेल, जरूरी तो नहीं.
बहुत खूब ... अब ई मैल पर भी धावा ? :)
सुन्दर गज़ल
पत्थरों, काँटों, शरारों से भी रिश्ता रखिए
ReplyDeleteसदा पटरी पे रहे रेल , जरूरी तो नहीं.
बहुत खूब सर!
सादर
एक ही साथी बहुत है, अगर वो सच्चा है
ReplyDeleteलगाओ रिश्तों का महा-सेल, जरूरी तो नहीं... तौबा तौबा , बिल्कुल नहीं
रोशनी के लिए दिल को भी जलाना सीखो
ReplyDeleteहमेशा हो दिये में तेल, जरूरी तो नहीं.
....लाजवाब...बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..
एक ही साथी बहुत है, अगर वो सच्चा है
ReplyDeleteलगाओ रिश्तों का महा-सेल, जरूरी तो नहीं.
...... बेहतरीन !
एक ही साथी बहुत है, अगर वो सच्चा है
ReplyDeleteलगाओ रिश्तों का महा-सेल, जरूरी तो नहीं.
Bahut Gahri Baat...
प्रभावशाली हैं आपकी रचनाएं ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
खूबसूरत बेहतरीन पंक्तियाँ बधाई
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।">चर्चा
रोशनी के लिए दिल को भी जलाना सीखो
ReplyDeleteहमेशा हो दिये में तेल, जरूरी तो नहीं.
क्या कहने..बहुत गहरी बात, बहुत अच्छी पंक्तियां, निगम जी।
मौन अभिव्यक्ति तेरी आँखों में पढ़ लेगा ‘अरुण’
ReplyDeleteसदा लिख करो “ ई- मेल “ , जरूरी तो नहीं.सर जी यह पंक्तिया बहुत पसंद आई.......
रोशनी के लिए दिल को भी जलाना सीखो
ReplyDeleteहमेशा हो दिये में तेल, जरूरी तो नहीं.
बहुत खूब अरुण भाई....
सुन्दर गज़ल...
सादर बधाई....
रोशनी के लिए दिल को भी जलाना सीखो
ReplyDeleteहमेशा हो दिये में तेल, जरूरी तो नहीं... chand panktiyo me sab kuch kah diya aapne....
बहुत अच्छी पंक्तियाँ !सुन्दर रचना !
ReplyDeleteरोशनी के लिए दिल को भी जलाना सीखो
ReplyDeleteहमेशा हो दिये में तेल, जरूरी तो नहीं.
वाह!
बहुत सही कहा आपने आभासी रिश्ते किसी काम के नही !
ReplyDeleteवाह ………बहुत ही सुन्दर रचना।
ReplyDeleteएक ही साथी बहुत है, अगर वो सच्चा है
ReplyDeleteलगाओ रिश्तों का महा-सेल, जरूरी तो नहीं.
बहुत ही सुंदर.
ReplyDelete♥
* प्रिय अरुण कुमार निगम जी
* आदरणीय अरुण कुमार निगम जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
इतनी ख़ूबसूरत छंदबद्ध रचनाएं आप करते हैं कि आपकी रचनाएं पढ़ते हुए आपके प्रति प्यार और सम्मान के भाव एक साथ मन में उपस्थित हो जाते हैं :)
इसलिए दो-दो तरह से संबोधित किया आपको :)
जुल्फ की कैद, नज़र या जिगर के तहखाने
बुरी हमेशा लगे जेल , जरूरी तो नहीं
क्या बला का प्यारा शे'र है … कुर्बान !
एक ही साथी बहुत है, अगर वो सच्चा है
लगाओ रिश्तों का महा-सेल, जरूरी तो नहीं
मौन अभिव्यक्ति तेरी आँखों में पढ़ लेगा ‘अरुण’
सदा लिख करो “ ई- मेल “ , जरूरी तो नहीं
लूट लिया हुज़ूर !
आपकी पिछली कई पोस्ट्स के गीत आदि भी अभी पढ़े हैं …
सबके लिए साधुवाद ! बधाइयां !!
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
# जनाब ! आपका ई मेल आई डी मेल से भेज सकें तो कभी संवाद हो सके …
ReplyDelete… और मोबाइल नं भी
मेरे मोबाइल नं 9314682626
बढ़िया प्रस्तुति .
ReplyDeletekya baat hai janab..itni gahri baat
ReplyDeleteरोशनी के लिए दिल को भी जलाना सीखो
हमेशा हो दिये में तेल, जरूरी तो नहीं.
or sath sath kataksh or hasy ek sath itne rang roop ..bahut khoob
मौन अभिव्यक्ति तेरी आँखों में पढ़ लेगा ‘अरुण’
सदा लिख करो “ ई- मेल “ , जरूरी तो नहीं
पत्थरों, काँटों, शरारों से भी रिश्ता रखिए
ReplyDeleteसदा पटरी पे रहे रेल , जरूरी तो नहीं.
एक ही साथी बहुत है, अगर वो सच्चा है
लगाओ रिश्तों का महा-सेल, जरूरी तो नहीं...
बहुत सुन्दर और सटीक पंक्तियाँ! शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.com/
एक ही साथी बहुत है, अगर वो सच्चा है
ReplyDeleteलगाओ रिश्तों का महा-सेल, जरूरी तो नहीं.
bahut hi sundar
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteअरूण जी नमस्कार, एक साथी बहुत है अगर स्च्चा हो---------------बहुत खूब । मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteवाह ....शानदार और लाजबाब प्रस्तुति
ReplyDelete@सागर has left a new comment on your post "जरूरी तो नहीं.........":
ReplyDeleteरोशनी के लिए दिल को भी जलाना सीखो
हमेशा हो दिये में तेल, जरूरी तो नहीं... chand panktiyo me sab kuch kah diya aapne....
Posted by सागर to अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ) at November 6, 2011 4:24 PM
बेहद खूबसूरत कविता.....और भावपूर्ण भी
ReplyDeleteरोशनी के लिए दिल को भी जलाना सीखो
ReplyDeleteहमेशा हो दिये में तेल, जरूरी तो नहीं.
..bahut khoob!
मौन अभिव्यक्ति तेरी आँखों में पढ़ लेगा ‘अरुण’
सदा लिख करो “ ई- मेल “ , जरूरी तो नहीं.
..bilkul sahi .....
bahut sundar khoobsurat bhav se saji rachna..
भइया बहूत ही सुंदर कविताए लिखते हैं आप ...आपकी हर कविता जानदार हैं। आरंभ में पहली बार आपको पढ़ा था....उसमें आपकी एक छत्तीसगढ़ी कविता बोल रे मिट्ठू तपत कुरु लाजवाब हैं।
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