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Friday, May 31, 2013

कुण्डलिया छंद :



(चित्र गूगल से साभार)
 पूर्ण होंगे सब सपने ...

अपने  जीवन  में   हुई ,  दोहरायें  ना  भूल
बच्चों  को  तो  भेजिये  ,  पढ़ने को  स्कूल
पढ़ने को स्कूल  ,  हुई क्यों  मन में दुविधा
सहिये थोड़ी आप,इनकी खातिर असुविधा
निश्चित  मानें  बात , पूर्ण  होंगे  सब सपने
दोहरायें  ना  भूल  ,  हुई  जीवन  में  अपने |

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट ,विजय नगर, जबलपुर (मध्य प्रदेश)


Wednesday, May 29, 2013

क्या लाया ...........




( चित्र गूगल से साभार )
 
सिर्फ  पानी का  बुलबुला  लाया
इस से ज्यादा बता दे क्या लाया |

लूटता   ही   रहा   जमाने   को
नाम   कितना  अरे कमा लाया |

कोसता    है   किसे   बुढ़ापे   में
वक़्त  तूने  ही  खुद  बुरा  लाया |

तू   अकेला   चला    जमाने  से
क्यों नहीं  संग  काफिला  लाया |

लोग कह ना  सके तुझे दिल से
फिर  मिलेंगे  अगर  खुदा  लाया |


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट ,विजय नगर, जबलपुर (मध्य प्रदेश)

(ओपन बुक्स ऑन लाइन तरही मुशायरा में सम्मिलित दूसरी  गज़ल)

Tuesday, May 28, 2013

चाँद कैसा है........


c 
         (चित्र गूगल से साभार)

मुझसे मत पूछिये कि क्या लाया
पालकी   प्यार  की  सजा  लाया |

जागता   है   मेरी   तरह  अब वो
नींद   आँखों  से  ही  चुरा  लाया |

उसने   पूछा   कि   चाँद कैसा है
आइना   बस   उसे   दिखा लाया |

स्वर्ग   होता   कहाँ  , बताना था
गाँव   अपना   उसे   घुमा  लाया |

गम   नहीं   है   हमें   जुदाई  का
फिर   मिलेंगे  अगर  खुदा लाया |

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट ,विजय नगर, जबलपुर (मध्य प्रदेश)

(ओपन बुक्स ऑन लाइन तरही मुशायरा में सम्मिलित गज़ल)
 

Monday, May 20, 2013

कुण्डलिया छंद -

             


कुण्डलिया छंद -

चम-चम चमके गागरी,चिल-चिल चिलके धूप
नीर   भरन  की  चाह  में  ,   झुलसा  जाये  रूप
झुलसा   जाये   रूप   ,   कहाँ   से   लाये   पानी
सूखे   जल   के   स्त्रोत , नजर   आती   वीरानी
दोहन – अपव्यय  देख , रूठता   जाता  मौसम
धरती  ना  बन  जाय , गागरी  रीती  चम-चम ||

अरुण कुमार निगम
अदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर(मध्यप्रदेश)

Wednesday, May 15, 2013

अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस



  
                      (चित्र गूगल से साभार)
 
कुण्डलिया छंद :

सुविधा ने सुख छीन कर , बाँट दिया परिवार
बड़ी    हुई   अट्टालिका  ,   बंद   हो   गये   द्वार
बंद    हो  गये   द्वार   ,  रखें    दीवारें    कटुता
नींव सिसकती मौन , मिटी रिश्तों की मधुता
पसरा हुआ तनाव , निगलती पग-पग दुविधा
क्या सुख का पर्याय,कभी बन सकती सुविधा ?????

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग़ (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजयनगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)