( यादें- आदरणीय अशोक सलूजा जी की भावपूर्ण कविता घने जंगल में सूखे कुँए की टूटी मुंडेर पढ़ कर मेरे मन में उपजे भाव )
उफ् वो भी क्या दिन थे
घट,पनघट , पायल पैंजनियाँ के
कुछ अल्हड़ सी पनिहारिन संग
नई- नई दुल्हनियाँ के.
कुछ राहगीर भी आते थे
कुछ छैल-छबीले आते थे
बैठ इसी मुण्डेर कभी
वो प्रेम तराने गाते थे.
कुछ नन्हें-मुन्ने दौड़ते थे
मेरी मुण्डेर के चारों ओर
तब सांझें सब सतरंगी थी
था रंग-बिरंगा हरेक भोर.
करमा,कजरी ,ठुमरी, दोहे
के संग गुनगुनाती रातें.
इक गाँव हुआ करता था यहाँ
सब करते प्रेम भरी बातें.
जब शहर छीन ले गया उन्हें
उजड़ी इस गाँव की गली-गली
इक भौंरा भी ना भटका फिर
इस राह से ना गुजरी तितली.
जबसे उजड़ा है गाँव मेरा, जल
सूख गया है जल-जल कर.
सुख गया गाँव के साथ -साथ
जीवन जाता है छल-छल कर.
बूढ़े दरख्त हैं आस-पास
जिनको मैंने सींचा था कल
मेरे सुख-दु:ख के साथी हैं
मेरे जैसे ही शोक विव्हल.
सूखे पत्तों से भर देते
हैं ,मेरे मन की गहराई
छन-छन कर देते धूप कभी
देते हैं अपनी परछाई.
बस ये हैं, मैं हूँ , स्मृतियाँ
और घटाटोप है वीराना
ओ छोड़ के जाने वाले कभी
मेरी मुण्डेर पर आ जाना.
आज 18 नवम्बर को हमारे द्वितीय पुत्र आशीष के जन्म दिवस पर कृपया यहाँ
पधार कर आशीर्वाद प्रदान करें.
आज 18 नवम्बर को हमारे द्वितीय पुत्र आशीष के जन्म दिवस पर कृपया यहाँ
पधार कर आशीर्वाद प्रदान करें.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छतीसगढ़)
विजय नगर,जबलपुर (मध्य प्रदेश)
its happnes only in india .....भावपूर्ण अभिव्यक्ति समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeleteबहुत ही अच्छे भाव उकेरे हैं सर!
ReplyDeleteसादर
पूरा चित्र सजीव कर दिया आपकी लेखनी ने!
ReplyDeleteअरुण कुमार निगम जी.... बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना.....
ReplyDeleteइस कविता का भाव, शिल्प और अर्थ सब पसंद आया।
ReplyDeleteसुंदर,
ReplyDeleteनिगम जी .
मुझे मान-सम्मान देने के लिए आपको प्यार
मेरी आवाज़ को अपने शब्दों से सजाने के लिए आभार ....
शुभकामनाएँ!
बूढ़े दरख्त हैं आस-पास
ReplyDeleteजिनको मैंने सींचा था कल
मेरे सुख-दु:ख के साथी हैं
मेरे जैसे ही शोक विव्हल.
gahre ehsaas
यादें....ashok saluja . has left a new comment on your post "कुँए की पीड़ा":
ReplyDeleteसुंदर,
निगम जी .
मुझे मान-सम्मान देने के लिए आपको प्यार
मेरी आवाज़ को अपने शब्दों से सजाने के लिए आभार ....
शुभकामनाएँ!
रश्मि प्रभा... has left a new comment on your post "कुँए की पीड़ा":
ReplyDeleteबूढ़े दरख्त हैं आस-पास
जिनको मैंने सींचा था कल
मेरे सुख-दु:ख के साथी हैं
मेरे जैसे ही शोक विव्हल.
gahre ehsaas
बहुत सुन्दर ||
ReplyDeleteदो सप्ताह के प्रवास के बाद
संयत हो पाया हूँ ||
बधाई ||
बस ये हैं, मैं हूँ , स्मृतियाँ
ReplyDeleteऔर घटाटोप है वीराना
ओ छोड़ के जाने वाले कभी
मेरी मुण्डेर पर आ जाना.
वाह ....बहुत खूब
@रेखा has left a new comment on your post "कुँए की पीड़ा":
ReplyDeleteबस ये हैं, मैं हूँ , स्मृतियाँ
और घटाटोप है वीराना
ओ छोड़ के जाने वाले कभी
मेरी मुण्डेर पर आ जाना.
वाह ....बहुत खूब
बहुत ही सार्थक और गहन भावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteबहुत प्यारा गीत है अरुण भईया....
ReplyDeleteबहुत बधाई....
सादर....