ये माना चाल में धीमा रहा हूँ
मगर जीता वही कछुवा रहा हूँ
बुझाई प्यास कंकर डाल मैंने
तेरे बचपन का वो कौवा रहा हूँ
कभी बख्शी थी मेरी जान उसने
छुड़ाया शेर को,चूहा रहा हूँ
कुँये में शेर को फुसला के लाया
बचाई जान वो खरहा रहा हूँ
मेरे बचपन न फिर तू आ सकेगा
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर
(मध्यप्रदेश)
बहुत बढिया..
ReplyDeleteखुबसूरत यादें ...:-)))
ReplyDeleteयूँ ही याद करके मुस्कुराते रहिये .....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शनिवार (03-08-2013) के गगन चूमती मीनारें होंगी में मयंक का कोना पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
तीनों ही गज़लें शानदार रहीं पर यह अनुपम है
ReplyDeleteकल 04/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
आपकी यह रचना आज शनिवार (03-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteवाह बचपन !
ReplyDeleteबचपन के प्यारे झरोखे में झूलती सुन्दर प्रस्तुति ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !!
ReplyDeleteवाह अरुण भाई नए मिजाज़ और कथ्य की बेहतरीन गजल पढवाई आपने आपकी प्रतिष्ठा के अनुरूप।
ReplyDeleteबचपन की कहानियां याद दिला दीं आपने |
ReplyDeleteआशा
जन्मदिन की हार्दिक शुभ कामनाएँ सर!
ReplyDeleteसादर
Bahut sundar gazal.. gahre arth.
ReplyDeleteबुझाई प्यास कंकर डाल मैंने
ReplyDeleteतेरे बचपन का वो कौवा रहा हूँ ..
बचपन की सभी कहानायाँ याद करा दी आपने ... सभी को शरों में उतारना एक ही बहर में उतारना ... आपका ही फन हो सकता है अरुण जी ... जाना दिन की शुभकामनायें ...
खुबसूरत यादों की..... खुबसूरत अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteकहानियों में बुना बचपन ... बहुत सुंदर ।
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