कमाई का फकत जरिया रहा हूँ
तेरी खातिर बचत खाता रहा हूँ ||
पिलाता ही रहा मैं जाम बन कर
कसम तोड़ी नहीं प्यासा रहा
हूँ ||
बनाये जब मकां तो काट डाला
यहाँ तुलसी का मैं बिरवा रहा हूँ ||
न बाहर घर के कोई बात आई
कभी गूंगा कभी परदा रहा हूँ ||
चला भी आ कभी गुजरे जमाने
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ ||
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर
(मध्यप्रदेश)
(ओबीओ लाइव तरही मुशायरा में शामिल मेरी दूसरी गज़ल)
यहाँ तुलसी का मैं बिरवा रहा हूँ ||
ReplyDeleteवाह!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज बृहस्पतिवार (01-08-2013) को २९ वां राज्य ( चर्चा -1324 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुभकामनायें आदरणीय-
ReplyDeletewah wah ....bahut badhiya
ReplyDeleteप्रभावी भावाभ्यक्ति!
ReplyDeleteसादर बधाई आदरणीय
न बाहर घर के कोई बात आई
ReplyDeleteकभी गूंगा कभी परदा रहा हूँ ||
बहुत खूबसूरत गज़ल
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल प्रस्तुति !!
ReplyDeletebahut hi behtarin gajal hai...
ReplyDelete:-)
वाह! बहुत बढ़िया...बधाई
ReplyDeleteye sari chije vehoshi men hai to param dukh ki abhivyakti hai, yadi hosh me ho to param mukti hai, filahal jo bhi ho gazal bahut achhi hai. aabhar
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