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Friday, August 2, 2013

गज़ल : मेरे बचपन....



ये माना चाल में धीमा रहा हूँ                 
मगर जीता वही कछुवा रहा हूँ                   

बुझाई प्यास कंकर डाल मैंने
तेरे बचपन का वो कौवा रहा हूँ

कभी बख्शी थी मेरी जान उसने
छुड़ाया शेर को,चूहा रहा हूँ

कुँये में शेर को फुसला के लाया
बचाई जान वो खरहा रहा हूँ

मेरे बचपन न फिर तू आ सकेगा
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर (मध्यप्रदेश)

16 comments:

  1. खुबसूरत यादें ...:-)))
    यूँ ही याद करके मुस्कुराते रहिये .....

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शनिवार (03-08-2013) के गगन चूमती मीनारें होंगी में मयंक का कोना पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. तीनों ही गज़लें शानदार रहीं पर यह अनुपम है

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  4. कल 04/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  5. आपकी यह रचना आज शनिवार (03-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  6. बचपन के प्यारे झरोखे में झूलती सुन्दर प्रस्तुति ..

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  7. वाह अरुण भाई नए मिजाज़ और कथ्य की बेहतरीन गजल पढवाई आपने आपकी प्रतिष्ठा के अनुरूप।

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  8. बचपन की कहानियां याद दिला दीं आपने |
    आशा

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  9. जन्मदिन की हार्दिक शुभ कामनाएँ सर!


    सादर

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  10. बुझाई प्यास कंकर डाल मैंने
    तेरे बचपन का वो कौवा रहा हूँ ..

    बचपन की सभी कहानायाँ याद करा दी आपने ... सभी को शरों में उतारना एक ही बहर में उतारना ... आपका ही फन हो सकता है अरुण जी ... जाना दिन की शुभकामनायें ...

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  11. खुबसूरत यादों की..... खुबसूरत अभिव्यक्ति ..

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  12. कहानियों में बुना बचपन ... बहुत सुंदर ।

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