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Monday, August 12, 2013

सावन पर आल्हा छंद



सावन पर आल्हा छंद (१६-१५ पर यति, अन्त में गुरु,लघु)
[अतिशयोक्ति अलंकार अनिवार्य]

देख रहा क्या आँखें फाड़े , ओ मानव मूरख नादान
मैं ही तो तेरा सावन हूँ , आज मुझे तू ले पहचान ||

मौन खड़ा हूँ लेकिन कल तक,पवन किया करती थी शोर
शुरू नहीं होता था सावन, ,बादल देते थे झकझोर ||
 
उधर चमक ना पाती बिजली, इधर नाचते वन में मोर
मोर लापता वन गायब अब, कहाँ ले गए काले चोर ||

दादुर और  पपीहे गायब, झींगुर भी भूला है तान
टर्र-टर्र वाले मेंढक भी, बाँध रहे अपना सामान ||

बरखा बरसी अभी नहीं थी, आती थी नदियों में बाढ़
पगडण्डी-कीचड़ का रिश्ता, इस मौसम में खूब प्रगाढ़ ||

मैं लाता हूँ नागपंचमी , तू डसता है बनकर नाग
मैं ही लाता हूँ हरियाली, जिसे जलाता तू बन आग ||

चोट लगी वृक्षों को जब भी , होता घायल यह आकाश
रो न सकी हैं आँखें इसकी  , बादल इतना हुआ हताश ||

आने वाले कल से छीनी , तू ने कलसे की हर प्यास
आज मनाता जल से जलसे, कल की पीढ़ी खड़ी उदास ||

कौन करेगा अर्पण-तर्पण , कौन करेगा तुझको याद
पीढ़ी ही जब नहीं रहेगी, कौन सुनेगा तब फरियाद ||

तेरे हित में बोल रहा हूँ, कर्मों को पावन कर आज
अहम् त्याग कर फिर से मानव,सावन को सावन कर आज ||

अरूण कुमार निगम
आदित्य नगर ,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट ,विजय नगर,जबलपुर,मध्य प्रदेश

10 comments:

  1. बहुत ही सुंदर और सार्थक प्रस्तुती,आभार।

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  2. चोट लगी वृक्षों को जब भी , होता घायल यह आकाश
    रो न सकी हैं आँखें इसकी , बादल इतना हुआ हताश ||
    वाह..
    बहुत सुन्दर..

    अनु

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  3. वाह बहुत सुन्दर और सार्थक रचना..

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  4. वाह .... सावन ने सच ही सारी तस्वीर रख दी है ...

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  5. वाह! वाकई ख़ूबसूरत कविता है..
    ऐसी मस्त लय आजकल कविताओं में कम ही देखने को मिलती है..

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  6. आने वाले कल से छीनी , तू ने कलसे की हर प्यास
    आज मनाता जल से जलसे,कल की पीढ़ी खड़ी उदास ||

    वाह !!! बहुत सुंदर सावन की तस्वीर आल्हा छंद दवारा पेश की,,बधाई,,,अरुण जी,,

    RECENT POST : जिन्दगी.

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  7. बहुत सुन्दर और सार्थक .....

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  8. बहुत सुंदर भाव और खुबसूरत प्रस्तुति !!

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