इसी आंगन सदा साया
रहा हूँ
भरे सावन में भी सूखा
रहा हूँ ||
नज़र की रोशनी जिस पर लुटाई
उसी की आँख में चुभता रहा हूँ ||
जवानी खो गई थी परवरिश में
सदा तेरे लिये बूढ़ा
रहा हूँ ||
मुझे तू भूल
कर परदेश बैठा
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ ||
मशीनों आज का है दिन तुम्हारा
मेरा भी दौर था चरखा रहा हूँ ||
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर
(मध्यप्रदेश)
(ओबीओ लाइव तरही मुशायरा में शामिल मेरी गज़ल)
'मेरा भी दौर था चरखा रहा हूँ'
ReplyDeleteकितनी अद्भुत बात प्रगट हो आई है!
वाह!
बहुत उम्दा पेशकश...!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए आभार!
यूं तो चरखा भी एक मशीन का ही रूप है ॥बस वो हाथ से चलाया जाता है ....
ReplyDeleteगहन भाव लिए खूबसूरत गज़ल
आपने लिखा....
ReplyDeleteहमने पढ़ा....और लोग भी पढ़ें;
इसलिए बुधवार 031/07/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in ....पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
वाह....
ReplyDeleteनज़र की रोशनी जिस पर लुटाई
उसी की आँख में चुभता रहा हूँ ||
बेहतरीन ग़ज़ल...
सादर
अनु
जवानी खो गई थी परवरिश में
ReplyDeleteसदा तेरे लिये बूढ़ा रहा हूँ ||..वाह क्या बात है ,बहुत सुन्दर..
सुन्दर-
ReplyDeleteशुभकामनायें-आदरणीय-
मशीनों आज का है दिन तुम्हारा
ReplyDeleteमेरा भी दौर था चरखा रहा हूँ ||
बहुत खूब,लिखा अरुण जी,,,बधाई,,,
RECENT POST: तेरी याद आ गई ...
आदरणीय श्रीमान जी,
ReplyDeleteसादर प्रणाम
बहुत ही खूबसूरत गजल |
अभी मैं खुद ,गजल का विद्यार्थी हूँ ...और ओ बी ओ जैसे मंच पर
आपकी गजलो से काफी सीख मिलती रही हैं |
एक शाम संगम पर {नीति कथा -डॉ अजय }
मशीनों आज का है दिन तुम्हारा
ReplyDeleteमेरा भी दौर था चरखा रहा हूँ ||
......बेहतरीन ग़ज़ल... बधाई
मुझे तू भूल कर परदेश बैठा
ReplyDeleteतेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ || sacchi bat do took kah dee ....
बहुत उम्दा....
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