गये तुरंग
कहाँ अस्तबल के देखते हैं
कहाँ से आये गधे हैं निकल के देखते हैं
सभी ने ओढ़ रखी खाल शेर की शायद
डरे - डरे से सभी
दल बदल के देखते हैं
वही तरसते यहाँ
चार काँधों की खातिर
सभी के सीने पे जो मूँग दल के देखते हैं
वो आज
थाल सजाये हुये चले
आये
जिन्हें हमेशा
बिना नारियल के देखते हैं
बड़ों-बड़ों में भला
क्या बिसात है अपनी
अभी कुछ और करिश्में गज़ल के
देखते हैं
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्य
प्रदेश)
(ओपन बुक्स ऑन लाइन तरही मुशायरा,अंक-36
में सम्मिलित दूसरी गज़ल)
बड़ों-बड़ों में भला क्या बिसात है अपनी
ReplyDeleteअभी कुछ और करिश्में गज़ल के देखते हैं,,,,
बहुत उम्दा,सुंदर गजल ,,,वाह !!! क्या बात है,
RECENT POST : अभी भी आशा है,
बड़ों-बड़ों में भला क्या बिसात है अपनी
ReplyDeleteअभी कुछ और करिश्में गज़ल के देखते हैं
swyam abhivyakt kar rahi hai aapki bisat .very nice .
बेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार (17-07-2013) को में” उफ़ ये बारिश और पुरसूकून जिंदगी ..........बुधवारीय चर्चा १३७५ !! चर्चा मंच पर भी होगी!
सादर...!
बढ़िया है भाई जी-
ReplyDeleteसादर-
बड़ों-बड़ों में भला क्या बिसात है अपनी
ReplyDeleteअभी कुछ और करिश्में गज़ल के देखते हैं ... बहुत बढ़िया..आभार
गधों को ताज पहना दिया है हमने जब से
ReplyDeleteघोड़े पलायन कर गए हैं राजनीति में तब से ।
बहुत बढ़िया गज़ल
बड़ों-बड़ों में भला क्या बिसात है अपनी
ReplyDeleteअभी कुछ और करिश्में गज़ल के देखते हैं ..
बहुत खूब ... इस उम्दा लाजवाब गज़ल का करिश्मा तो देख लिय अरुण जी ...
मज़ा आ गया ... हर शेर पे दाद ... भई वाह ...
वो आज थाल सजाये हुये चले आये
ReplyDeleteजिन्हें हमेशा बिना नारियल के देखते हैं
बहुत बढ़िया ...
बधाई !
बहुत बढ़िया.....
ReplyDeleteवो आज थाल सजाये हुये चले आये
ReplyDeleteजिन्हें हमेशा बिना नारियल के देखते हैं
............आपकी सोच और लेखनी को सादर नमन ..
सभी ने ओढ़ रखी खाल शेर की शायद
ReplyDeleteडरे - डरे से सभी दल बदल के देखते हैं
...बहुत सही ..
बहुत खूब...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल !!
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