वसुधा है माता सदृश,आँचल इसका थाम
माँ की पूजा में
बसे , सारे
तीरथ-धाम ||
हाथ सृजन करने मिले,करता किंतु विनाश
शेष नाग ‘कर’ को
बना, थाम धरा आकाश ||
बलशाली है बुलबुला , यह हास्यास्पद बात
कुदरत से लड़ने चला, देख जरा औकात ||
काट काट कर बाँटता, निशदिन देता पीर
कब तक आखिर बावरे , धरती धरती धीर ||
करती है ओजोन की, परत
कवच का काम
उसको खंडित कर रहा, सोच जरा परिणाम ||
बाँझ मृदा होने
लगी , हुई
प्रदूषित वायु
जल जहरीला हो रहा , कौन होय दीर्घायु ||
अनगिन ग्रह नक्षत्र में , वसुन्धरा ही एक
जिसमें जीवन - तत्व हैं , इसको
माथा टेक ||
अरुण कुमार निगम
अदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर(मध्यप्रदेश)
बढ़िया दोहे-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
ReplyDeleteअनगिन ग्रह नक्षत्र में , वसुन्धरा ही एक
......बढ़िया दोहे अरुण जी
वर्तमान स्थिति का बोध कराती बहुत ही सुंदर एवं सार्थक भावभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत सुंदर सटीक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमनभावन ... सार्थक सुन्दर दोहे ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर सटीक सार्थक दोहे ,,,,
ReplyDeleteआपकी इस शानदार प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार २३/७ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है सस्नेह ।
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल मंगलवार (23-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें
ReplyDeleteसमकालीन जीवन पर बढ़िया विमर्ष !
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ReplyDeleteसब बहुत सुन्दर दोहे !
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latest post क्या अर्पण करूँ !
sundar dohe....
ReplyDeleteवाह ...वाह ,बहुत ही सुंदर दोहे |
ReplyDeleteपर्यावरण से लेकर सामाजिक चीजों तक पहुँच
हार्दिक बधाई |सादर प्रणाम |
बहुत सार्थक है सभी दोहे!
ReplyDelete--
भाई अरुण कुमार निगम जी आप समय निकाल कर दोषपूर्ण कुण्डलियों की समीक्षा कर दीजिए, ताकि दूसरा छन्द सृजन मंच ऑनलाइन पर प्रारम्भ किया जा सके।
आभारी रहूँगा आप दोनों का।
सार्थक संदेश देते दोहे ....
ReplyDeleteक्या खूब लिखते हैं आद्रणीय आप....
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