पंचतत्व निर्मित काया, अवयवों में मिल जाय
फिर क्यों न इन तत्वों को,रखा सुरक्षित जाय.
वृक्ष न काटो भाईयों , वन जीवन का मूल
इन बिन सारी सृष्टि ही , रेगीस्तानी धूल.
दूषित जल से किस तरह, जीव बुझाए प्यास
जल की रक्षा के लिए , करिए सभी प्रयास.
मान नहीं कीजे अगर , मृदा बाँझ हो जाय
नादानी में ही कहीं , सब कुछ ना खो जाय.
मत जहरीले धूम्र को , तू वायु में डार
बिन वायु के किस तरह, बजें श्वाँस के तार.
अनुशासित जीवन जीयें प्रकृति के अनुकूल
अरुण अभी भी वक़्त है , चलो सुधारें भूल.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )
विजय नगर , जबलपुर ( मध्य प्रदेश )
जिंदगी का सच बता दिया है आपने तो, बहुत ही अच्छे शब्द,
ReplyDeleteसुन्दर सन्देश देते हुए बेहतरीन दोहे ...
ReplyDeleteसुन्दर दोहे आद अरुण भाई.....
ReplyDeleteसादर बधाई...
“झिलमिल है रंगीन है, दोहों का यह बाग
प्रकृति की रक्षा करें, प्रकृति बोले जाग”
सादर..
bahut sundar prerna dete hue dohe.aabhar
ReplyDeleteमत जहरीले धूम्र को , तू वायु में डार
ReplyDeleteबिन वायु के किस तरह, बजें श्वाँस के तार... waah
सुंदर सन्देश!
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना.....
ReplyDeletesarthak sandesh deti achchhi rachna..
ReplyDeleteSoulful n thoughtful ...
ReplyDeleteAApki tereh kavyamaya tareef karna nahi aata.. isliye bas itna hi keh payi ye padh k :)
प्रभावशाली सन्देश देते दोहे बधाई
ReplyDeleteसटीक सन्देश देते प्रभावशाली दोहे ... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteअनुशासित जीवन जीयें प्रकृति के अनुकूल
ReplyDeleteअरुण अभी भी वक़्त है , चलो सुधारें भूल.
सभी दोहे बहुत अच्छे लगे सर!
सादर
बहुत ही सारगर्भित व प्रभावी दोहे,आभार !
ReplyDeleteनिश्चित ही सटीक व्यंग्य और सार्थक सन्देश !
लोकतंत्र के चौथे खम्बे पर अपने विचारों से अवगत कराएँ
औचित्यहीन होती मीडिया और दिशाहीन होती पत्रकारिता
बहुत ही अर्थवान और प्रेरक पोस्ट।
ReplyDeleteमान नहीं कीजे अगर , मृदा बाँझ हो जाय
ReplyDeleteनादानी में ही कहीं , सब कुछ ना खो जाय.
Awesome !
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सटीक व्यंग्य और सार्थक सन्देश !...
ReplyDeleteबहुत खूब ... साथक सन्देश है इन चुटीले दोहों में ...
ReplyDeletesarthak sadesh deti behtreen prstuti....
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