उनका कैसे इलाज हो आखिर.......
खूब छेड़ा था जिनने कुदरत को
आज देखो तो उनकी रंगत को।
जिनकी औकात एक जर्रे-सी
वो ढहाने चले थे पर्वत को।
मार कुदरत से इस तरह खाई
रोने वाले मिले न मैय्यत को।
वक़्त कटता नहीं वो कहते हैं
जो तरसते रहे हैं फुरसत को।
पिस गए घुन भी साथ गेहूँ के
आग लग जाए ऐसी संगत को।
दान दे के खिंचा रहे फोटो
आज भी मर रहे हैं शोहरत को।
धौंस देके मदद न माँगो तुम
बेच आए हो क्या शराफत को।
उनका कैसे इलाज हो आखिर
मानते जो नहीं नसीहत को।
जेट जगुआर काम आए क्या ?
जो रखे हो "अरुण" हिफाजत को।
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
खूब छेड़ा था जिनने कुदरत को
आज देखो तो उनकी रंगत को।
जिनकी औकात एक जर्रे-सी
वो ढहाने चले थे पर्वत को।
मार कुदरत से इस तरह खाई
रोने वाले मिले न मैय्यत को।
वक़्त कटता नहीं वो कहते हैं
जो तरसते रहे हैं फुरसत को।
पिस गए घुन भी साथ गेहूँ के
आग लग जाए ऐसी संगत को।
दान दे के खिंचा रहे फोटो
आज भी मर रहे हैं शोहरत को।
धौंस देके मदद न माँगो तुम
बेच आए हो क्या शराफत को।
उनका कैसे इलाज हो आखिर
मानते जो नहीं नसीहत को।
जेट जगुआर काम आए क्या ?
जो रखे हो "अरुण" हिफाजत को।
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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