बहुत
कठिन है साथी मेरे , बंधन को परिभाषित करना
बंधन
सुख का कहीं सरोवर और कहीं है दु:ख का झरना ...
कोई
बंधन रेशम जैसा,
कोमलता
बस चुनता जाये
बिन
फंदे के अंतर्मन तक ,
मीठे
नाते बुनता जाये
कोई बंधन नागपाश-सा
,
कसता
जाये - डसता जाये
विष
बनकर फिर धीमे-धीमे,
नस-अन्तस्
में बसता जाये
कोई बंधन में सुख पाये , कोई चाहे सदा
उबरना
बहुत
कठिन है साथी मेरे, बंधन को परिभाषित करना .......
नन्हें
तिनकों वाला बंधन ,
नीड़
बुने ममता बरसाये
नन्हें
चूजे रहें सुरक्षित ,
हर
पंछी को बहुत सुहाये
लोभ-मोह
दिखला कर फाँसे,
बाँगुर
का बंधन दुखदाई
जो
फँसता माया-बंधन में
कब
होती है भला रिहाई
कोई चाहे
नाव न छूटे, कोई चाहे
पार उतरना
बहुत
कठिन है साथी मेरे, बंधन को परिभाषित करना........
मृदा-मूल
का बंधन गहरा ,
तरुवर
को देता ऊँचाई
पूछ
लता से देखे कोई ,
बंधन
है कितना सुखदाई
अभिभूत
कर देता सबको,
सात
जनम का बंधन प्यारा
निर्धारित करता
सीमायें ,
वरना जीवन तो
बंजारा
कोई बँधकर
रहना चाहे , कोई चाहे मुक्त विचरना
बहुत
कठिन है साथी मेरे, बंधन को परिभाषित करना....
अरुण
कुमार निगम
आदित्य नगर दुर्ग [छत्तीसगढ़]
kya baat
ReplyDeleteबहुत ही प्यारा गीत लिखा है और सकल परिभाषा दी है बंधन की आपने.
ReplyDeleteबंधन को आज तो शब्दों में बाँध लिया अरुण जी ...
ReplyDeleteबहुत ही प्यारा, लाजवाब और सुन्दर शब्द संयोजन ... बधाई इस गीत की ...