छंद - दुर्मिल सवैया
।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ( सगण यानि सलगा X 8 )
मन की
सुनिये मन से लिखिये, बरखा बन मुक्त झरे कविता
जन -
मानस के मन में पहुँचे , तुलसी सम रूप धरे कविता
यह
मन्त्र बने सुख - यंत्र बने , सब दु:ख समूल हरे कविता
इतिहास गवाह
रहा सुनिये , युग में बदलाव करे
कविता
अरुण
कुमार निगम
आदित्य
नगर,दुर्ग [छत्तीसगढ़]
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (06-10-2014) को "स्वछता अभियान और जन भागीदारी का प्रश्न" (चर्चा मंच:1758) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'