सम्बोधन !!!!!
क्या यह यूरोप का शहर है दोस्तों ?
हर शाला में “मैडम” और “सर” है दोस्तों
“गुरुजी” का सम्बोधन कब, क्यों खो गया
खो जाये ना संस्कृति – डर है दोस्तों.
“गुरु” में श्रद्धा थी , आदर- सम्मान था
गुरु थे आगे फिर पीछे भगवान था
“सर” का सम्बोधन बेअसर है दोस्तों.....
“मैडम” आई और “बहन जी” खो गई
पावन रिश्ते का सम्बोधन धो गई
पश्चिमी संस्कृति का असर है दोस्तों.......
इस भारत में बच्चा गुरुकुल जाता था
‘गुरु-शिष्य’ का ‘पिता-पुत्र’ सा नाता था
अब यह नाता आता कहीं नजर है दोस्तों......
गुरु के आगे राजा शीश नवाते थे
राज-समस्या को गुरु ही सुलझाते थे
अब राजा के सम्मुख क्या कदर है दोस्तों.......
“सर” को नैतिक शिक्षा पर बल देना होगा
“मैडम”को ममता का आँचल देना होगा
आँख खुले तो समझो नई सहर है दोस्तों.........
गुरु की खोई महिमा को लौटाना होगा
हर शाला को गुरुकुल पुन: बनाना होगा
शिक्षक का गुरुकुल ही तो घर है दोस्तों.............
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग
छत्तीसगढ़.
गुरु की खोई महिमा को लौटाना होगा
ReplyDeleteहर शाला को गुरुकुल पुन: बनाना होगा
...सच कहा है...बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (06-09-2014) को "एक दिन शिक्षक होने का अहसास" (चर्चा मंच 1728) पर भी होगी।
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सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन को नमन करते हुए,
चर्चा मंच के सभी पाठकों को शिक्षक दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सोचना पड़ेगा कौन है इस परिवर्तन का जिम्मेदार !
ReplyDeleteगुरु कैसा हो !
गणपति वन्दना (चोका )
बहुत सुंदर ...शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं
ReplyDeleteशिक्षा तो मिल रही , गुरूत्व कम हुआ !
ReplyDeleteगुरु और सर/मेडम का अर्ह स्पष्ट करती प्रभावी रचना ...
ReplyDeleteबहुत कुशलता से बहुत कुछ कह डाला !तबऔर आज में कितना बड़ा अंतराल है !
ReplyDeleteक्या बात वाह!
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