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Wednesday, August 28, 2013

ढाई आखर प्याज का ........



(चित्र गूगल से साभार)

मंडी की छत पर चढ़ा ,  मंद-मंद  मुस्काय
ढाई आखर प्याज का, सबको रहा रुलाय ||

प्यार जताना बाद में  , ओ मेरे सरताज
पहले लेकर आइये, मेरी खातिर प्याज ||

बदल   गये   हैं   देखिये  , गोरी   के   अंदाज
भाव दिखाये इस तरह ,ज्यों दिखलाये प्याज ||

तरकारी बिन प्याज की, ज्यों विधवा की मांग
दीवाली   बिन   दीप   की  या  होली बिन भांग ||

महँगाई  के  दौर  में  ,हो सजनी नाराज
साजन जी ले आइये, झटपट थोड़े प्याज ||

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

Monday, August 12, 2013

सावन पर आल्हा छंद



सावन पर आल्हा छंद (१६-१५ पर यति, अन्त में गुरु,लघु)
[अतिशयोक्ति अलंकार अनिवार्य]

देख रहा क्या आँखें फाड़े , ओ मानव मूरख नादान
मैं ही तो तेरा सावन हूँ , आज मुझे तू ले पहचान ||

मौन खड़ा हूँ लेकिन कल तक,पवन किया करती थी शोर
शुरू नहीं होता था सावन, ,बादल देते थे झकझोर ||
 
उधर चमक ना पाती बिजली, इधर नाचते वन में मोर
मोर लापता वन गायब अब, कहाँ ले गए काले चोर ||

दादुर और  पपीहे गायब, झींगुर भी भूला है तान
टर्र-टर्र वाले मेंढक भी, बाँध रहे अपना सामान ||

बरखा बरसी अभी नहीं थी, आती थी नदियों में बाढ़
पगडण्डी-कीचड़ का रिश्ता, इस मौसम में खूब प्रगाढ़ ||

मैं लाता हूँ नागपंचमी , तू डसता है बनकर नाग
मैं ही लाता हूँ हरियाली, जिसे जलाता तू बन आग ||

चोट लगी वृक्षों को जब भी , होता घायल यह आकाश
रो न सकी हैं आँखें इसकी  , बादल इतना हुआ हताश ||

आने वाले कल से छीनी , तू ने कलसे की हर प्यास
आज मनाता जल से जलसे, कल की पीढ़ी खड़ी उदास ||

कौन करेगा अर्पण-तर्पण , कौन करेगा तुझको याद
पीढ़ी ही जब नहीं रहेगी, कौन सुनेगा तब फरियाद ||

तेरे हित में बोल रहा हूँ, कर्मों को पावन कर आज
अहम् त्याग कर फिर से मानव,सावन को सावन कर आज ||

अरूण कुमार निगम
आदित्य नगर ,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट ,विजय नगर,जबलपुर,मध्य प्रदेश

Friday, August 2, 2013

गज़ल : मेरे बचपन....



ये माना चाल में धीमा रहा हूँ                 
मगर जीता वही कछुवा रहा हूँ                   

बुझाई प्यास कंकर डाल मैंने
तेरे बचपन का वो कौवा रहा हूँ

कभी बख्शी थी मेरी जान उसने
छुड़ाया शेर को,चूहा रहा हूँ

कुँये में शेर को फुसला के लाया
बचाई जान वो खरहा रहा हूँ

मेरे बचपन न फिर तू आ सकेगा
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर (मध्यप्रदेश)

Thursday, August 1, 2013

गज़ल : बचत-खाता रहा हूँ...........



कमाई का फकत जरिया रहा हूँ
तेरी खातिर बचत खाता रहा हूँ ||

पिलाता ही रहा मैं जाम बन कर                           
कसम तोड़ी नहीं  प्यासा रहा हूँ ||

बनाये जब मकां  तो काट डाला
यहाँ तुलसी का मैं बिरवा रहा हूँ ||

न बाहर घर के  कोई बात आई
कभी गूंगा  कभी परदा  रहा हूँ ||

चला भी आ कभी गुजरे जमाने
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ ||

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर (मध्यप्रदेश)

(ओबीओ लाइव तरही मुशायरा में शामिल मेरी दूसरी गज़ल)