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Monday, March 25, 2013

रात रात भर चिट्ठी लिखना


छंद कुण्डलिया : चिट्ठी
(1)
बीते दिन वो सुनहरे  नैन  ताकते द्वार
कब आएगा डाकिया  , लेकर चिट्ठी- तार
लेकर चिट्ठी -तार , डाकखाने के चक्कर
पत्र कभी नमकीन,कभी ले आते शक्कर
सीने से लिपटाय ,  खतों को लेकर जीते
नैन ताकते द्वार   सुनहरे वो दिन बीते ||

(2)
सोना  चाँवल   चिट्ठियाँ  ,   जितने  हों  प्राचीन
उतने   होते   कीमती   ,   और   लगें नमकीन
और   लगें    नमकीन   भुला दें  टूजी  थ्रीजी
चिट्ठी    की   तासीर  ,  मिले     कैसे    भाई जी
ठीक नई तकनीक,किंतु मत कल को खोना
बिना कल्पना-स्वप्न  ,भला क्या होता सोना ?

(3)
लिखना  भी  दुश्वार था  -"मुझको तुमसे प्यार"
अब  तो  सीधे  हो  रहा  ,  जता-जता कर प्यार
जता-जता कर  प्यार , आज उससे कल इससे
पहले   सालोंसाल   ,   बना    करते  थे  किस्से
सौ सुख देता एक झलक सजनी का दिखना
डूब   कल्पना   रात रात   भर   चिट्ठी  लिखना ||


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

8 comments:

  1. वाह...
    बहुत सुन्दर..
    सोना चाँवल चिट्ठियाँ , जितने हों प्राचीन
    उतने होते कीमती , और लगें नमकीन
    और लगें नमकीन , भुला दें टूजी थ्रीजी
    चिट्ठी की तासीर , मिले कैसे भाई जी

    एकदम सटीक...
    सादर
    अनु

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  2. चिठ्ठियों का दौर अब कहाँ,बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.

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  3. बहुत उम्दा सराहनीय कुण्डलियाँ,,मगर अब वो चिट्ठियों वाला दौर कहाँ रहा, चिट्ठियों की
    यादें भर रह गई,,,बधाई,,,

    होली की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाए
    Recent post : होली में.

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  4. वाह!!! बेहद उम्दा भावपूर्ण रचना ...होली ही हार्दिक शुभकामनायें

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  5. बहुत बढ़िया छंद कुण्डलिया प्रस्तुति ..

    ..होली की हार्दिक शुभकामनाएं

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  6. वाह,,,, बहुत ही सुन्दर...
    लाजवाब...
    होली की शुभकामनाएँ...
    :-)

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  7. बहुत ही प्रीतिकर सृजन ...होली की हार्दिक शुभकामनयें ......

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  8. उतने होते कीमती , और लगें नमकीन
    और लगें नमकीन , भुला दें टूजी थ्रीजी
    चिट्ठी की तासीर , मिले कैसे भाई जी
    ...........बहुत बढ़िया छंद कुण्डलिया निगम जी

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