छंद
कुण्डलिया : चिट्ठी
(1)
बीते दिन वो सुनहरे , नैन ताकते द्वार
कब आएगा डाकिया , लेकर चिट्ठी- तार
लेकर चिट्ठी -तार , डाकखाने के चक्कर
पत्र कभी नमकीन,कभी ले आते शक्कर
सीने से लिपटाय , खतों को लेकर जीते
नैन ताकते द्वार , सुनहरे वो दिन बीते ||
(2)
सोना चाँवल चिट्ठियाँ , जितने हों प्राचीन
उतने होते कीमती , और लगें नमकीन
और लगें नमकीन , भुला दें टूजी थ्रीजी
चिट्ठी की तासीर , मिले कैसे भाई जी
ठीक नई तकनीक,किंतु मत
कल को खोना
बिना कल्पना-स्वप्न ,भला
क्या होता सोना ?
(3)
लिखना भी दुश्वार था -"मुझको तुमसे प्यार"
अब तो सीधे हो रहा , जता-जता कर प्यार
जता-जता कर प्यार , आज उससे कल इससे
पहले सालोंसाल , बना करते
थे किस्से
सौ सुख देता एक झलक
सजनी का दिखना
डूब कल्पना रात रात भर
चिट्ठी लिखना ||
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर,
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
वाह...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
सोना चाँवल चिट्ठियाँ , जितने हों प्राचीन
उतने होते कीमती , और लगें नमकीन
और लगें नमकीन , भुला दें टूजी थ्रीजी
चिट्ठी की तासीर , मिले कैसे भाई जी
एकदम सटीक...
सादर
अनु
चिठ्ठियों का दौर अब कहाँ,बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत उम्दा सराहनीय कुण्डलियाँ,,मगर अब वो चिट्ठियों वाला दौर कहाँ रहा, चिट्ठियों की
ReplyDeleteयादें भर रह गई,,,बधाई,,,
होली की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाए
Recent post : होली में.
वाह!!! बेहद उम्दा भावपूर्ण रचना ...होली ही हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत बढ़िया छंद कुण्डलिया प्रस्तुति ..
ReplyDelete..होली की हार्दिक शुभकामनाएं
वाह,,,, बहुत ही सुन्दर...
ReplyDeleteलाजवाब...
होली की शुभकामनाएँ...
:-)
बहुत ही प्रीतिकर सृजन ...होली की हार्दिक शुभकामनयें ......
ReplyDeleteउतने होते कीमती , और लगें नमकीन
ReplyDeleteऔर लगें नमकीन , भुला दें टूजी थ्रीजी
चिट्ठी की तासीर , मिले कैसे भाई जी
...........बहुत बढ़िया छंद कुण्डलिया निगम जी