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Wednesday, November 7, 2012

भली बहस का अंत कर.........


"भली बहस का अंत कर,रविकर कह कर जोर"
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भाई  हर  चल-चित्र  में ,  होते  विविध हैं पात्र
भूल  स्वयं को मंच पर , अभिनय करते मात्र
अभिनय करते मात्र,सत्य के संग हो नायक
वहीं  बुराई  का  प्रतीक ,  बनता खलनायक
देने    को     संदेश ,   कहानी   जाय  बनाई
अभिनेता  की  हार - जीत  नहिं  होती  भाई ||

मेवा  देने  के   लिये  ,  खुद  सहते  हैं  चोट
जग में सम्मानित हुए,श्रीफल औ अखरोट
श्रीफल औ अखरोट,कठिन होता है बनना
यूँ ही मुश्किल जोकर के परिधान पहनना
अपना  कर  परिहास , रविकर करते सेवा
खुद  सहते  हैं  चोट  , बाँटते  सबको  मेवा ||

मेरी  पिछली  पोस्ट  का , यही है  उपसंहार
ननदी का जैसे दिखा , भाभी खातिर प्यार
भाभी  खातिर  प्यार ,ये हर इक घर में होये
सुखी  रहे   घरबार ,  प्रेम  का  सूत्र  पिरोये
पति - पत्नी करें प्यार,बीच ना आय कछेरी*
यही  है  उपसंहार ,  पिछली  पोस्ट का मेरी ||

 (कछेरी=कचहरी)

रविकर की धज्जियाँ उडाती आ. अरुण निगम की पोस्ट 


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (मध्य प्रदेश)


20 comments:


  1. भाई जी दिखला रहे, परंपरा से प्रीति |
    खलु भी नायक बन रहे, बड़ी पुरानी रीति |

    बड़ी पुरानी रीति, नीति सम्मत हैं बातें |
    बता रहे तहजीब, सुधरते रिश्ते नाते |

    चौथा वाद-विवाद, मजे ले जग मुस्काई |
    रहे हमेशा याद, एक हैं भाभी भाई |

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    1. उपसंहार बता रहे,खीचे फिर फिर चित्र
      बातों में आना नही,समझे रविकर मित्र

      समझे रविकर मित्र,अरुण जी चारा डाले
      लालच में खा लिया,फिर पड़ जाये न पाले

      देता धीर सलाह,संभलना इस वार में
      फस जाये ये अरुण,अपने उपसंहार में,,,,,

      RECENT POST:..........सागर

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    2. नकारात्मक नकारे, रखते मन में धीर |
      सकारात्मक पक्ष से, कभी नहीं हो पीर |
      कभी नहीं हो पीर, जलधि का मंथन करके |
      जलता नहीं शरीर, मिले घट अमृत भरके |
      करलो प्यारे पान, पिए रविकर विष खारा |
      हो सबका कल्याण, नहीं सिद्धांत नकारा ||

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    3. भाईचारा हम कहें , चारा समझें धीर
      बेचारा कवि क्या करे, गुपचुप सहता पीर
      गुपचुप सहता पीर , शब्द गर एक उचारा
      गया नकारा हाय !मिला केवल विष खारा
      पर्वत का दिल चीर,निकलती निर्मल धारा
      तट दो लेकिन खूब , निभाते भाईचारा ||

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  2. शब्द संयोजन नपे तुले, दिए आंट प्रेम डोर।

    एक छोर ननदी धरे, धरे भाभी दूसरो छोर।।

    .......इतना बढ़िया सजाते हैं शब्द मोतियों से

    पंक्तियाँ निगम भैया......लाजवाब! शानदार

    रचना ......

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    1. छंदों से शुरुवात की , सूर्यकांत जी वाह
      जहाँ चाह होती वहाँ ,स्वयं निकलती राह
      स्वयं निकलती राह,परिश्रम व्यर्थ न जाए
      रसरी आवत जात ,अरे पाहन घिस जाए
      भ्रमर हुए क्यों मुग्ध ,पूछिए मकरंदों से
      सूर्यकांत जी वाह , जुड़े रहिए छंदों से ||


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  3. लाज़वाब प्रस्तुति...

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    1. दो शब्दों ने आपके, दिया हमें उत्साह
      नेह दीप दिखला रहा,नई नवेली राह ||

      आभार........

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  4. सामाजिक विन्यास में, इंसा का हर रूप |
    हर क्षण बदला जा रहा,कभु छाँव कभू धूप ||

    रविकर सरल सुभाव है,चंचल मन कह जाय |
    कह दिया सो कह दिया, करें नहीं परवाय ||

    नदिया तरिया तैरती, रविकर कवि की नाव |
    कुंडली बन है बह रहि, उमडत घुमडत भाव ||

    कभी ह्रदय है रो पड़े, कभी करे परिहास |
    कभी तेज चल जात है, गले पड़े है फांस ||

    रिश्तों को है जोड़के, कर विनती में तात |
    सूरज सम बन जात है, अपने रविकर भ्रात ||

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    1. खेला चौसर कबड्डी, क्रिकेट वालीबाल ।

      गोइंयाँ कुल कमजोर ले, चलता धांसू चाल ।

      चलता धांसू चाल, जीतता कहीं अगरचे ।

      खुश अंतर का हाल, करे सब कोई चरचे ।

      शंकर का आभार, पिए सब जहर अकेला ।

      उमा करें कल्याण, रहेगा चालू खेला ।।

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    2. सुंदर परिभाषित किया,सामाजिक विन्यास
      पतझर रोए है कभी, कभी हँसे मधुमास
      कभी हँसे मधुमास,चले दुनियाँ का खेला
      रवि दहता चुपचाप,गगन के बीच अकेला
      पर्वत झरने जीव-जंतु वन झील समुंदर
      वसुधा का विन्यास सजाया रवि ने सुंदर ||

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  5. बेहतरीन रचना एवं अभिव्यक्ति के लिए आभार

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    1. दया-मया धर आय हौ , संगी जय जोहार
      गुरतुर लागिस गोठ हर,सुंदर लगिस विचार ||

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  6. दोहे से दोहे मिले, दोहों की आ गई बाढ़।
    शब्दों की बारिश हुई, नहिं सावन नहीं आषाढ़।।

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    1. बारिश होवे प्रीति की,क्या सावन आषाढ़
      जग में बाढ़े प्रेम यूँ , रिश्ते होयँ प्रगाढ़
      रिश्ते होयँ प्रगाढ़ , बाढ़ में डूबें ऐसे
      व्यर्थ लगे श्रृंगार ,ये दौलत रुपिये पैसे
      भौतिकता की कभी,जगे ना मनमें ख्वाहिश
      क्या सावन आषाढ़,प्रीति की होवे बारिश ||

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  7. what a nice combination of words and feelongs,exlnt

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  8. RAVKAR AUR NIGAM KI MUTHBHED KAR--- आज अजब सी शरारत मेरे साथ हुई,
    मेरे घर को छोड़ पूरे शहर में बरसात हुई||

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  9. मेवा देने के लिये , खुद सहते हैं चोट
    जग में सम्मानित हुए,श्रीफल औ’ अखरोट
    श्रीफल औ’ अखरोट,कठिन होता है बनना
    यूँ ही मुश्किल जोकर के परिधान पहनना
    अपना कर परिहास , रविकर करते सेवा
    खुद सहते हैं चोट , बाँटते सबको मेवा ||

    भीषण थे आघात, आसान नहिं था सहना|
    देख आपका धैर्य, नतमस्तक हुई बहना|
    सादर

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  10. नोक झोंक के रूप में बना रहे संवाद
    प्रीत रीत के बीच में आए न कोई विवाद ।

    बहुत सुंदर उपसंहार ।

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