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Tuesday, November 13, 2012

गीत


शुभम करोति कल्याणम आरोग्यगुणम संपदाम

दीपक क्या कहते हैं .........

दीवाली की रात प्रिये ! तुम इतने दीप जलाना
जितने कि मेरे भारत में , दीन - दु:खी रहते हैं |

देर रात को शोर पटाखों का ,  जब कम हो जाए
कान लगाकर सुनना प्यारी, दीपक क्या कहते हैं |

शायद कोई यह कह दे कि बिजली वाले युग में
माटी का तन लेकर अब हम जिंदा क्यों रहते हैं |

कोई भी लेकर कपास नहीं , बँटते दिखता बाती
आधा - थोड़ा तेल मिला है ,दु;ख में हम दहते हैं |

भाग हमारे लिखी अमावस,उनकी खातिर पूनम
इधर बन रहे महल दुमहले, उधर गाँव ढहते हैं |

दीवाली की रात प्रिये ! तुम इतने दीप जलाना
जितने कि मेरे भारत में , दीन - दु:खी रहते हैं |

निगम परिवार की और से सभी को
दीपावली की हार्दिक  शुभकामनायें 
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (मध्य प्रदेश)

39 comments:

  1. खुबसूरत और दिल को छूते एहसास ....

    शायद कोई यह कह दे कि बिजली वाले युग में
    माटी का तन लेकर अब हम जिंदा क्यों रहते हैं |

    दीपावली की शुभकामनायें!

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    1. मदिरा सवैया (7 भगण,अंत में 1 गुरु)

      कातिक मास अमावस की ,रजनी सजनी रहि दीप जला

      खावत है पकवान, नहीं मन की पढ़ता सजना पगला

      बोल थके नयना कजरा ,अँचरा कुछ भी नहि जोर चला

      फूल झरी मुरझाय चली, नहि बालम का हिरदे पिघला ||

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    2. मीत समीप दिखाय रहे कुछ दूर खड़े समझावत हैं ।
      बूझ सकूँ नहिं सैन सखे तब हाथ गहे लइ जावत हैं ।
      जाग रहे कुल रात सबै, हठ चौसर में फंसवावत हैं ।
      हार गया घरबार सभी, फिर भी शठ मीत कहावत हैं ।।



      डोरे डाले आज फिर, किन्तु जुआरी जात ।
      गृह लक्ष्मी करती जतन, पर खाती नित मात ।
      पर खाती नित मात, पूजती लक्षि-गणेशा ।
      पांच मिनट की बोल, निकलता दुष्ट हमेशा ।
      खेले सारी रात, लौटता बुद्धू भोरे ।
      जेब तंग, तन ढील, आँख में रक्तिम डोरे ।।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    दीपावली की शुभकामनाएँ!

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  3. बहुत खूबसूरत दिल को छूती प्रस्तुति,,,

    दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ,,,,
    RECENT POST: दीपों का यह पर्व,,,

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    1. एक लगाता दांव पर, नव रईस अवतार ।
      रोज दिवाली ले मना, करके गुने हजार ।।



      लगा टके पर टकटकी, लूँ चमचे में तेल ।
      माड़-भात में दूँ चुवा, करती जीभ कुलेल ।
      करती जीभ कुलेल, वहाँ चमचे का पावर ।
      मिले टके में कुँआ, खनिज मोबाइल टावर ।
      दीवाली में सजा, सितारे दे बंगले पर ।
      भोगे रविकर सजा, लगी टकटकी टके पर ।।

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  4. दीपोत्सव की हार्दिक शुभ कामनाएँ!


    सादर

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  5. दीपावली की ढेर सारी शुभकामनायें |
    आपके इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (14-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी । जरुर पधारें ।
    सूचनार्थ ।

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  6. दीवाली का पर्व है, सबको बाँटों प्यार।
    आतिशबाजी का नहीं, ये पावन त्यौहार।।
    लक्ष्मी और गणेश के, साथ शारदा होय।
    उनका दुनिया में कभी, बाल न बाँका होय।
    --
    ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
    (¯*•๑۩۞۩:♥♥ :|| दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें || ♥♥ :۩۞۩๑•*¯)
    ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ

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    1. आतिशबाजी फालतू ,की सचमुच है चीज

      करे विषैली पवन को , पैदा करती खीज

      पैदा करती खीज , दिवाली पर्व हैं पावन

      जलते नन्हें दीप , लगें सबको मन-भावन

      धन का अपव्यय होय नहीं गर हम हों राजी

      है सचमुच ही चीज , फालतू 'आतिशबाजी' ||

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    2. This comment has been removed by the author.

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    4. हुक्का-हाकिम हुक्म दे, नहीं पटाखा फोर ।
      इस कुटीर उद्योग का, रख बारूद बटोर ।
      रख बारूद बटोर, इन्हीं से बम्ब बनाना ।
      एक शाम इक साथ, प्रदूषण क्यूँ फैलाना ?
      मारे कीट-विषाणु, तीर नहिं रविकर तुक्का ।
      ताश बैठ के खेल, खींच के दो कश हुक्का ।


      दूर पटाखे से रहो, कहते हैं श्रीमान ।
      जनरेटर ए सी चले, कर गुडनाइट ऑन ।
      कर गुडनाइट ऑन, ताश की गड्डी फेंटे ।
      किन्तु एकश: आय, नहीं विष-वर्षा मेंटे ।
      गर गंधक तेज़ाब, नहीं सह पाती आँखे ।
      रविकर अन्दर बैठ, फोड़ तू दूर पटाखे ।।


      डेंगू-डेंगा सम जमा, तरह तरह के कीट |
      खूब पटाखे दागिए, मार विषाणु घसीट |
      मार विषाणु घसीट, एक दिन का यह उपक्रम |
      मना एकश: पर्व, दिखा दे दुर्दम दम-ख़म |
      लौ में लोलुप-लोप, धुँआ कल्याण करेगा |
      सह बारूदी गंध, मिटा दे डेंगू-डेंगा ||

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    5. आतिशबाजी का जनक, हमने जाना आज

      भूत पटाखों से डरे,खूब खुला है राज

      खूब खुला है राज, भूतनी गर सुन लेगी

      मुझसे घातक कौन , सोचकर मूड़ धुनेगी

      कहीं भूत का भूत,उतारे ना नाराजी

      चली भूतनी आज , दिखाने आतिशबाजी ||

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    6. आतिशबाजी की प्रथा , है काफी प्राचीन

      हमने देखे सीरियल ,एक नहीं दो - तीन

      एक नहीं दो - तीन,बाण जब टकराते थे

      चिंगारी के फूल , गगन में बरसाते थे

      चीन पटाखा बाप, खबर ये ताजी-ताजी

      अर्वाचीन समझते थे हम आतिशबाजी ||

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    7. कीटों का नाशक बना , बारूदी यह धूम्र

      साथ साथ कुछ कम करे,मानव की भी उम्र

      मानव की भी उम्र, फेफड़े होंय प्रभावित

      नज़र होय कमजोर , श्वाँस भी होती बाधित

      "धुँआ करे कल्याण",बात पर है अपना शक़

      कैसे मानें धूम्र, सिर्फ कीटों का नाशक ||

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    8. श्लेष और अनुप्रास का, अद्भुत संगम भ्रात

      छंद - दीप जगमग जले , दीवाली की रात

      दीवाली की रात , कुण्डली धूम मचाती

      भाव शब्द का मेल,कि जैसे दीपक - बाती

      वर्णन सम्भव नहीं,छंद की इस मिठास का

      अद्भुत संगम भ्रात, श्लेष और अनुप्रास का ||

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    9. संध्या वंदन आरती, हवन धूप लोहबान |
      आगम निगम पुराण में, शायद नहीं बखान |
      शायद नहीं बखान, परम्परा किन्तु पुरानी |
      माखी माछर भाग, नीम पत्ती सुलगानी |
      भारी बड़े विषाणु, इन्हें बारूद मारती |
      शुरू करें इक साथ, पुन: वंदना आरती ||



      डीजल का काला धुंआ, फैक्टरी का जहर |
      कल भी था यह केमिकल, आज भी ढाता कहर |
      आज भी ढाता कहर, हर पहर हुक्का बीडी |
      क्वायल मच्छरमार, यूज करती हर पीढ़ी |
      डिटरजेंट, विकिरण, सहे सब पब्लिक पल पल |
      बम से पर घबराय, झेलटा काला डीजल ||

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  7. दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें

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  8. दीपक क्या कहते हैं .........

    दीवाली की रात प्रिये ! तुम इतने दीप जलाना
    जितने कि मेरे भारत में , दीन - दु:खी रहते हैं |

    देर रात को शोर पटाखों का , जब कम हो जाए
    कान लगाकर सुनना प्यारी, दीपक क्या कहते हैं |

    शायद कोई यह कह दे कि बिजली वाले युग में
    माटी का तन लेकर अब हम जिंदा क्यों रहते हैं |

    कोई भी लेकर कपास नहीं , बँटते दिखता बाती
    आधा - थोड़ा तेल मिला है ,दु;ख में हम दहते हैं |

    भाग हमारे लिखी अमावस,उनकी खातिर पूनम
    इधर बन रहे महल दुमहले, उधर गाँव ढहते हैं |

    दीवाली की रात प्रिये ! तुम इतने दीप जलाना
    जितने कि मेरे भारत में , दीन - दु:खी रहते हैं |

    निगम परिवार की और से सभी को
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
    अरुण कुमार निगम
    आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
    विजय नगर , जबलपुर (मध्य प्रदेश)

    ये काव्य दीप आभा मंडल इसका असीम ,

    अरुण निगम भी है निस्सीम .

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    1. दे कुटीर उद्योग फिर, ग्रामीणों को काम ।
      चाक चकाचक चटुक चल, स्वालंबन पैगाम ।।

      हर्षित होता अत्यधिक, कुटिया में जब दीप ।
      विषम परिस्थिति में पढ़े, बच्चे बैठ समीप ।।

      माटी की इस देह से, खाटी खुश्बू पाय ।
      तन मन दिल चैतन्य हो, प्राकृत जग हरषाय ।।

      बाता-बाती मनुज की, बाँट-बूँट में व्यस्त ।
      बाती बँटते नहिं दिखे, अपने में ही मस्त ।।

      अँधियारा अतिशय बढ़े , मन में नहीं उजास ।
      भीड़-भाड़ से भगे तब, गाँव करे परिहास ।।

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  9. बहुत खूबसूरत रचना!!
    दीपावली और चित्रगुप्त पूजा की अनंत शुभकामनाएँ!!

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  10. दीप पर्व की

    हार्दिक शुभकामनायें
    देह देहरी देहरे, दो, दो दिया जलाय-रविकर


    आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।

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  11. बिजली के युग मेन भी आस्था ने बचाया हुआ है दीयों के अस्तित्व को । बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  12. बहुत सुन्दर रचना...
    आपको सहपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ...
    :-)

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  13. शायद कोई यह कह दे कि बिजली वाले युग में
    माटी का तन लेकर अब हम जिंदा क्यों रहते हैं |

    कोई भी लेकर कपास नहीं , बँटते दिखता बाती
    आधा - थोड़ा तेल मिला है ,दु;ख में हम दहते हैं |

    .....बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति..

    आपको भी सपरिवार दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं!

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  14. दीपाली की हार्दिक सुभकामनाएँ

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  15. बहुत बढ़िया प्रस्तुति
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं सहित ..

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  16. बहुत अच्छा लगा -जैसे झड़ी लग गई हो एक के बाद एक सरस रचनाओं की!

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  17. बहुत सराहनीय प्रस्तुति.
    बहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार !
    बेह्तरीन अभिव्यक्ति .बहुत अद्भुत अहसास.सुन्दर प्रस्तुति.
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये आपको और आपके समस्त पारिवारिक जनो को !

    मंगलमय हो आपको दीपो का त्यौहार
    जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
    ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
    लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..

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  18. भावपूर्ण रचना निगम जी ... धन्यवाद

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  19. बहुत अच्छी रचना.....
    नीचे लिंक पर आए और सूचना पढ़ें.....
    http://veenakesur.blogspot.in/

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  20. बहुत ही सुन्दर शब्दों को संजो के,

    पंक्तियों में सजा के आज के युग में दया-बाती

    की दयनीय दशा का वर्णन ..... टिपण्णी के लये

    शब्द ढूंढना हमारे लिए भारी ....आभार!

    दीपावली की बीलेटेड बधाई स्वीकार हो

    वैसे पञ्च दिवसीय दिवाली का अंतिम दिवस

    भी है आज ......



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  21. बहुत सुन्दर भाव और उद्गार

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  22. अंधकार से संघर्ष करने वाले दीए सदैव आलोक बिखेरते रहें।
    देवोत्थानी एकादशी और कार्तिक पूर्णिमा की शुभकामनाएं।

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