मुझको हे वीणावादिनी वर दे
कल्पनाओं को तू नए पर दे |
अपनी गज़लों में आरती गाऊँ
कंठ को मेरे तू मधुर स्वर दे |
झिनी झीनी चदरिया ओढ़ सकूँ
मेरी झोली में ढाई आखर दे |
विष का प्याला पीऊँ तो नाच उठूँ
मेरे पाँवों को ऐसी झाँझर दे |
सुनके अंतस् को मेरे ठेस लगे
मेरी रत्ना को ऐसे तेवर दे |
सूर बन कर चढ़ाऊँ नैन तुझे
इन चिरागों में रोशनी भर दे |
(रत्ना = रत्नावली)
(ओबीओ लाइव तरही मुशायरा अंक-29 में शामिल मेरी प्रस्तुति)
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
ओबीओ लाइव तरही मुशायरा अंक-29 में मेरी द्वितीय प्रस्तुति थी-
तू मुझे पिज्जा दे न बर्गर दे
इक कटोरी में थोड़ा चोकर दे |1|
ठंडे रिश्तों में गर्मी आयेगी
अपने हाथों से बुनके स्वेटर दे |2|
वो है जन्मा सियासी कुन्बे में
उसके हाथों अभी से चौसर दे |3|
सिर्फ फिरकी से क्या भला होगा
कम से कम एक पेस बॉलर दे |4|
सर्प को भी गले लगा के रखूँ
ऐसा वरदान , भोले शंकर दे |5|
मेरी बस्ती के लोग हँसते रहें
मेरी हस्ती में एक जोकर दे |6|
मीन की आँख का ही अक्स दिखे
इस जमाने में वो स्वयम्वर दे |7|
कोई अर्जुन बुझाए प्यास मेरी
शर की नोकों का मुझे बिस्तर दे |8|
कब से धूँए में सिमटे बैठे हैं
इन चिरागों में रोशनी भर दे |9|
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उपरोक्त तरही मुशायरे के अन्य शायरों की गज़लों पर मेरी टिप्पणियाँ
गम की मैं धूप सारी मांग रहा
उनके सर पे खुशी की चूनर दे ||
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हौसलों से उड़ान होती है
मर्जी तेरी तू रेशमी पर दे ||
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रूह की शक्ल क्या औ' सूरत क्या
मांग सिंदूर से मगर भर दे ||
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साकिया रिंद का भला कर दे
नैन मदिरा से जाम को भर दे ||
जेब में नोट हैं हजारी सब
फिर न कहना शराबी चिल्हर दे ||
करके उपवास देती उम्र बढ़ा
बदले में मांगती है-लॉकर दे ||
चूहे बिल्ली का किस्सा खत्म न हो
जीते जी मुझको अधमरा कर दे ||
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छलके इतना कि तरबतर कर दे
वर मेरे यार को हे ईश्वर
दे ||
आँखें मूंदूँ सदा
सुनूँ गज़लें
कंठ अम्बर के तू मधुर स्वर दे ||
सच ही खाता है सच ही पीता है
इसकी राहों को फूलों से भर दे ||
खुद को पाने की जब तमन्ना है
उसको भी सोचने का अवसर दे ||
कुछ तो मीठा कहेंगे खा के कभी
इन बताशों में चाशनी भर दे ||
अवनि अम्बर तुझे मिलेंगे 'अरुण'
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किंतु बचने का भी तो मंतर दे ||
उसकी आँखों में झाँक कर पढ़ ले
उनमें कुछ प्रश्न हैं,तू उत्तर दे ||
थक गई उम्र कब,पता न चला
यूँ तरस खा के अब न झांझर दे ||
ज़िंदगी बेहया हुई है अरुण
आड़ परदे की अब निरंतर दे ||
अब भरोसा रहा है दीये का
क्या पता जिंदगी का तम हर दे ||
आजा तितली तू चूम ले सौरभ
इस चमन में हजार रंग भर दे ||
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मुझको फिर से कोई जवाँ कर दे
अब भी उम्मीद है वो हाँ भर दे ||
कितना चलना मुझे अभी बाकी
तू दिखा मील का वो पत्थर दे ||
कितने फ्लॉवर की महक वीनस में
काश मुझको भी सिखा तेवर दे ||
जिसमें सीरत भी अपनी देख सकूँ
आइना ऐसा कोई लाकर दे ||
कहकशाँ आसमाँ की दौलत है
मेरे बिस्तर में थोड़े कंकर दे ||
जिस्म है रूह है मगर ढुलमुल
मेरी गज़लों को अस्थिपंजर दे ||
भँवरे तितली चमकते वो जुगनू
फिर से बस्ता मुझे सजा कर दे ||
फिर खड़ा हो न सके प्रश्न नया
इस जमाने को ऐसा उत्तर दे ||
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ओबीओ से साभार
जय माता दी बेहद उम्दा रचना
ReplyDeleteअरुन शर्मा
www.arunsblog.in
तरुण अरुण पहुँचे जहाँ, वहाँ प्रखर आलोक
Deleteएक शब्द भी आपका, हमको लगता श्लोक ||
झिनी झीनी चदरिया ओढ़ सकूँ
Deleteमेरी झोली में ढाई आखर दे |.....वाह जय हो ....कबीर दास
विष का प्याला पीऊँ तो नाच उठूँ
मेरे पाँवों को ऐसी झाँझर दे |.........मीरा बाई
सुनके अंतस् को मेरे ठेस लगे
मेरी रत्ना को ऐसे तेवर दे |......तुलसीदास
आदरणीय अरुण भाई हर शेर उम्दा है परन्तु बेहतरनी अंदाज के साथ आपने सुरदास मीरा और तुलसी दास को समाहित किया है
तारीफे काबिल है
हार्दिक बधाई
तू मुझे पिज्जा दे न बर्गर दे...........हिंदुस्तान की मानवीय पीड़ा
Deleteइक कटोरी में थोड़ा चोकर दे |1|........जहाँ माताएं अपने जिगर के टुकड़े को ज़िंदा रखने के लिए चावल का माड़(पसिया)पिलाती है अत्यंत मार्मिक शेर है
ठंडे रिश्तों में गर्मी आयेगी
Deleteअपने हाथों से बुनके स्वेटर दे |2|इस हाई टेक के ज़माने में पति पत्नी के बीच रिश्तों में दरार आ रही है भाई स्वेटर वाला प्रेम भी ये मुवा रेडीमेंट कंपनियों ने छीन लिया बहुत सुन्दर शेर है
वो है जन्मा सियासी कुन्बे में
Deleteउसके हाथों अभी से चौसर दे |3|हा हा हा सियासिती बच्चा है सियासत तो करेगा ही
सिर्फ फिरकी से क्या भला होगा
कम से कम एक पेस बॉलर दे |4|धोनी से कहना होगा ...भाई समझ?
सर्प को भी गले लगा के रखूँ
ऐसा वरदान , भोले शंकर दे |5|बेहद उम्दा शेर है उम्दा खयालात
मेरी बस्ती के लोग हँसते रहें
मेरी हस्ती में एक जोकर दे |6| यहाँ भी खूब रही दुनिया को हंसाता रहूँ मेरी हस्ती को जोकर कर दे बेहेतरिन शेर
सुन्दर-शारद-वन्दना, मन का सुन्दर भाव ।
ReplyDeleteढाई आखर से हुआ, रविकर हृदय अघाव ।
रविकर हृदय अघाव, पाव रत्ना की झिड़की ।
मिले सूर को नयन, भक्ति की खोले खिड़की ।
कथ्य-शिल्प समभाव, गेयता निर्मल अंतर ।
मीरा तुलसी सूर, कबीरा गूँथे सुन्दर ।।
ढाई आखर से हुआ , सुंदर मधुर मिलाप
Deleteकथ्य शिल्प समभाव से,सफल हो गया जाप
सफल हो गया जाप ,मिला है फल श्रेयस्कर
देती हैं वरदान , शारदा मैया हँसकर
छंद बिखरते जहाँ पहुँचते रविकर भाई
सिर्फ हृदय में लिये घूमते अक्षर ढाई ||
मीन की आँख का ही अक्स दिखे
Deleteइस जमाने में वो स्वयम्वर दे |7|दुनिया को लक्ष्य ...तक पहुंचने की बढ़िया कामना पौराणिक संदर्भ का सुन्दर प्रयोग
कोई अर्जुन बुझाए प्यास मेरी
शर की नोकों का मुझे बिस्तर दे |8|वाह वाह क्या बात है लूट लिया आपने
कब से धूँए में सिमटे बैठे हैं
इन चिरागों में रोशनी भर दे |9|
कई संदर्भो में सटीक बैठता शेर है यहाँ धुँवा बुरे से जुड़े अनेक अर्थ दे रहा है
देशकाल के लिए उपर्युक्त है
आदरणीय अरुण भाई मैंने भी आपकी तरह गजल लिखने का प्रयास किया था परन्तु इसको लिखते समय तरन्नुम कव्वालिए अंदाज में बह गई आपकी इस पोस्ट पर सदर समर्पित कर रहा हूँ
Deleteतपते हुवे जून को नवंबर दे
मौसम बदल जाये वो मंजर दे
उनकी बकरी ने लूट ली महफ़िल
शेर गुस्से में है जरा खंजर दे
नपाक जमीं पर कसाब बोते हैं
कोख सूनी या फिर बंजर कर दे
मंजर दिखा रहे हैं बारूदों का
लग जाये गले ऐसा मंतर दे
भ्रष्टआचार है या ये है दीमक
इनको चट कर जाऊं वो जहर दे
आदमी है यहाँ जमूरे की तरह
हाथ जनाब के कोई बन्दर दे
बेख़ौफ़ संसद में वो बैठे हैं
बंद आँख की तौल उन्हें अंदर दे
लबालब तेल फिर भी बुझा हुवा
इन चिरागों को रोशनी भर दे
लड़ रहे है लगा के मुँह से मुँह
मसुर की दाल मुँह में मुगदर दे
हर मोड़ लैला मजनूं दिखते हैं
उदास भीड़ के हाथ कोई पत्थर दे
देख दिल्ली का ना सिर फिर जाये
अम्मा असरदार को असर कर दे
ये जुबाँ बेजुबाँ हो जाती है
इन तल्ख़ जुबाँ को कोई लंगर दे
दौलते पंख लिए वो उड़ते हैं
हवाओं इन गुरुरों के पर क़तर दे
आप की मांगी मुरादें पूरी हों ....बहुत सुंदर
ReplyDeleteशुभकामनायें !
जन वरिष्ठ देते जहाँ,दिल से आशीर्वाद
Deleteईश्वर भी करते वहाँ , पूरी सभी मुराद ||
आपकी शुभकामनाओं के लिए हृदय से आभार........
अनुपम भावों का संगम ... यह प्रस्तुति
ReplyDeleteसदा स्नेह मिलता रहे, बस इतनी सी चाह
Deleteप्रोत्साहन की ज्योत से , मिलती जायें राह ||
आभार ...
आपकी प्रार्थना कबूल हो .... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबस यूँ ही सद्भावना,बनी रहे चिरकाल
Deleteरखे विश्व को जोड़कर,अपना अंतर्जाल ||
सादर............
बहुत ही सुन्दर एवं मार्मिक रचना
ReplyDeleteमाँ वीणावादिनी से मेरी भी विनती है;
मेरे भी दिमाग में ज्ञान प्रवाह कर दे .....
प्रिय सूर्यकांत जी, ज्ञान का प्रवाह हो चुका है, भाई ब्रेक आप ही लगा रहे हैं. सुंदर चौपाइयाँ शुरु की थी, कम से कम अपना चालीसा तो पूरा करो, हम तो शतक की आस लगाये बैठे हैं.
Deleteबहुत सुन्दर व शुभ कमाना है अरुण जी ... जब मैंने अपनी डायरी में कविताएँ लिखना शुरू की थी तो कु ऐसी ही कामना के साथ कि थी...अगर इजाजत हो आपके साथ शेयर करना चाहूंगी..
ReplyDeleteहे प्रभु
सृजन का दो वरदान
युग युग के गहन तिमिर को तोड़
हो आलोकित मेरे प्राण
वाणी में शक्ति
अर्थ में मुक्ति
भावों में गहन सागर अपार
प्रभु , सृजन का दो वरदान
कल्पना को मेरी पंख प्रदान कर
दो अनंत विस्तृत उड़ान
शब्दों के कल्प तरु से
मैं पाऊं इच्छित वरदान
प्रभु , सृजन का दो वरदान
निश्छल भावों की मणियों से
भर दो आज ये झोली खाली
लौटे फिर वही भोला बचपन
फिर अधरों पर मृदुल मुस्कान
प्रभु , सृजन का दो वरदान
आदरेया, स्वागत है.
Deleteवाणी में शक्ति,
अर्थ में मुक्ति ....वाह !!!!!!!!!!!!क्या बात है
शब्दों के कल्प तरु से
मैं पाऊँ इच्छित वरदान
आभार आपका , ऐसी श्रेष्ठ रचना को शेयर करने के लिये....
सुनके अंतस् को मेरे ठेस लगे
ReplyDeleteमेरी रत्ना को ऐसे तेवर दे,,,,,भावों से परिपूर्ण सुंदर गजल,,बधाई अरुण जी,,,
recent post : तड़प,,,
मिली बधाई आपकी, बहुत बहुत आभार
Deleteईश्वर से विनती करूँ,बना रहे यह प्यार ||
जिसे उठाया आपने , वो बन गया पहाड़
ReplyDeleteरविकर जी फूले फले, सदा लिंक लिक्खाड़ ||
वाह...सुन्दर गज़ल....वो भी भक्तिरस में.
ReplyDeleteसादर
अनु
आपकी सराहना पाकर प्रयोग सफल हुआ. आभार |
Deleteआदरणीय, दीपावली के बाद भांजे का विवाह करनाल(हरियाणा) में सम्पन्न हुआ. लम्बी छुट्टी पर रहा, अत: काफी दिनों से नेट से दूर रहना पड़ा.अब मेरी ओर से भी शिकायत नहीं रहेगी.
ReplyDeleteवाह सर जी, बहुत बढियां भक्ति रस में गजल लिखें है...
ReplyDeleteजवाबी टिप्पणियाँ भी कमाल की है...
शुभकामनाएँ...
:-)
क्या भक्ति है ! वो भी इतने खूबसूरत रूप में... :)
ReplyDeleteप्रार्थना है....ईश्वर आपकी सारी इच्छाओं को पूरा कर दे...
~सादर!!!
झिनी झीनी चदरिया ओढ़ सकूँ
ReplyDeleteमेरी झोली में ढाई आखर दे |
भाई साहब झीनी (झीनि तो हो सकता है झिनी नहीं ,कृपया उच्चारण कर देखें मीटर में भी व्यवधान आयेगा ).
बहुत बढ़िया तंज है .
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साकिया रिंद का भला कर दे
नैन मदिरा से जाम को भर दे ||
क्या बात है पीने वाले डूब जायेंगे नैनों में ....
नैन कटोरे काल काजल तोरे (गोरे )
मैं तो तन मन हार गया ,तेरे रूप का जादू गोरी बंजारे ने मार गया .
महफ़िल जमा दिया |
ReplyDeleteसो'हबत असर किया ||
आभार ओ बि ओ
बढ़िया मजा दिया ||
प्रार्थना बहुत सुन्दर है और नीचे भी टिप्पणी में कुछ शेर बहुत बढ़िया लगे
ReplyDeletesunder bhaav, lay taal se bhari rachnayen.
ReplyDeleteshubhkamnayen