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Saturday, September 22, 2012

दोहे – कालजयी साहित्य


[दोहा – प्रथम और तृतीय (विषम) चरणों में 13 मात्राएँ. द्वितीय और चतुर्थ (सम) चरणों में  11 मात्राएँ . प्रत्येक दल में 24 मात्राएँ. अंत में एक गुरु ,एक लघु.]

मान और सम्मान की,नहीं कलम को भूख
महक  मिटे  ना  पुष्प  की , चाहे  जाये सूख |

अक्षर -अक्षर चुन सदा  , शब्द गठरिया बाँध
राह दिखाये व्याकरण ,भाव लकुठिया काँध |

अलंकार  रस छंद  के ,  बिना  कहाँ रस-धार
बिन  प्रवाह  कविता कहाँ  गीत बिना गुंजार |

खानपान  जीवित  रखे  , अधर  रचाये पान
जहाँ  डूब  कान्हा  मिले , ढूँढू वह रस खान |

दीपक पलभर जल बुझे,नित्य जले आदित्य
ज्योतिर्मय जग को करे,कालजयी साहित्य |


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (म.प्र.)

20 comments:

  1. बहुत बढ़िया अरुण भाई जी ||
    शुभ कामनाएं ||

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    1. सभी दोहे उत्कृष्ट -

      पहले दोहे को आज के सन्दर्भ में यूँ संशोधित करना चाहूँगा ।



      माल मान-सम्मान पद, "कलमकार" की चाह ।

      देते "कल-मक्कार" को, सुन प्रशस्ति नरनाह ।1।



      आभार ।।

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  2. अच्छे और सुन्दर भाव लिए दोहे

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  3. बहुत बढ़िया अरुण जी ...आभार

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  4. बहुत सुन्दर और सार्थक दोहे...

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  5. अलंकार रस छंद के , बिना कहाँ रस-धार
    बिन प्रवाह कविता कहाँ गीत बिना गुंजार |
    bahut hi badhiyaa

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  6. दीपक पलभर जल बुझे,नित्य जले आदित्य
    ज्योतिर्मय जग को करे,कालजयी साहित्य |

    Awesome !

    .

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  7. badhiya dohe ...bina bhav aur pravaah ke to sab soona hi lagta hai...vyakaran char chand laga deta hai...

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  8. वाह!
    आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 24-09-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1012 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

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  9. कल 24/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  10. वाह वाह अरुण भाई
    आपने काव्य के सृजन पर बहुत सही बात कही है
    कुछ भी कह देना या लिख देना कविता नहीं हो सकती केवल आभास दे सकती है
    पान अधरों को कुछ समय के लिए रच सकता है परन्तु पान की लाली छणिक है
    क्या बात है मित्र मन गद गद हुवा साथ ही आपके द्वारा रचित दोहे और उनकी
    जानकारी तारीफे काबिल है

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  11. अलंकार रस छंद के , बिना कहाँ रस-धार
    बिन प्रवाह कविता कहाँ गीत बिना गुंजार |

    गेयता और प्रवाह और रसधार ,अर्थ बोध से लबरेज़ सार्थक दोहे कम और नपे तुले शब्दों में सब कह गए .पूरा भाव अभिव्यक्त हुआ

    ब्लॉग जगत के केशव दास हैं निगम साहब अरुण .

    सूर सूर तुलसी शशि ,उड़ीगन केशवदास ,

    अद्य कवि खद्योत सम जंह तंह करत प्रकाश ..

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  12. मान और सम्मान की,नहीं कलम को भूख
    महक मिटे ना पुष्प की , चाहे जाये सूख |...वाह

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  13. सच कहो तो अरुण जी यही साहित्य है जो कालजयी साहित्य होता है ...
    बहुत आनद आया ... लाजवाब बेहतरीन काव्य सृजन ...

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  14. कालजयी साहित्य..बहुत ही सुन्दर लगी.

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  15. वाह सर||
    बहुत बढ़िया दोहे...
    बेहतरीन...
    :-)

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  16. एक से बढ़कर एक सारगर्भित लाजबाब दोहे,,,,,वाह,,,

    RECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता,

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  17. धार तेज हो कलम की , खुद ही पाये मान
    सूखे फूल की महक को , तू कस्तूरी जान ।

    सभी दोहे एक से बढ़ कर एक .... बहुत सुंदर

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  18. मेरी टिप्पणी को स्पैम से आज़ाद कीजिये

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