मटर, भाव की हद को चूमें
मटरगश्ती कर मद में झूमे.
मटक-मटक कर है मदमाता
जेब को मेरी रोज चिढ़ाता.
मटर –फली के जलवे देखो
सिर्फ देख कर आँखें सेंको.
स्टेटस दिखलाना है तो
पर्स निकालो , पैसे फेंको.
दुनियाँ का दस्तूर रहा है
जो भी मद में चूर रहा है.
आज चढ़ा, कल नीचे आया
ताज हमेशा पहन न पाया.
नया-नया है, अभी अड़ा है
लेकिन यह स्वादिष्ट बड़ा है.
मिलनसार भी है यह भारी
गले लगाती हर तरकारी.
चाट, कोफ्ते या बिरयानी
मटर पराठे !! मुँह में पानी.
बैगन –मटर -मसाला भाये
मटर -पनीरी मन ललचाये.
भाँति-भाँति के इसके व्यंजन
इसका भी इतिहास पुरातन.
रूठे बीबी , खौफ न खाओ
महँगी मटर फली ले जाओ.
मुस्काएगी - प्यार जगेगा
सौदा सस्ता बहुत लगेगा.
फल्ली में दाने संग रहते
सुख-दुख साथ-साथ हैं सहते.
मटर दिलों में प्रेम बढ़ाता
मिलनसार बनना सिखलाता.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )
विजय नगर , जबलपुर ( मध्य प्रदेश )