(चित्र ओपन बुक्स ऑन लाइन से साभार)
आल्हा छंद (16 और 15 मात्राओं पर यति. अंत में गुरु-लघु)
बीते कल ने आने वाले , कल का थामा झुक कर हाथ
और कहा कानों में चुपके , चलना सदा समय के साथ ||
सत्-पथ पर पग नहीं धरा औ’ कदम चूम लेती है जीत
अधर प्रकम्पित हुये नहीं औ , बात समझ लेती है प्रीत ||
है स्पर्शों की भाषा न्यारी ,
जाने सिखलाता है कौन
बिन उच्चारण बिना शब्द के, मुखरित हो जाता है मौन ||
कहें झुर्रियाँ हमें पढ़ो तो , जानोगे अपना इतिहास
नहीं भटकना तुम पाने को , कस्तूरी
की मधुर सुवास ||
बड़े - बुजुर्गों के साये में , शैशव पाता है संस्कार
जो आया की गोद पला हो , वह क्या जाने लाड़-दुलार ||
बूढ़े पर हैं अनुभव
धारे, छू कर पा
लो उच्च उड़ान
छाँव इन्हीं की सारे
तीरथ , इनमें ही
सारे भगवान ||
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)