आम गज़ल .....
आम हूँ बौरा रहा हूँ
पीर में मुस्का रहा हूँ ।
मैं नहीं दिखता बजट में
हर गज़ट पलटा रहा हूँ ।
फल रसीले बाँट कर बस
चोट को सहला रहा हूँ ।
गुठलियाँ किसने गिनी हैं
रस मधुर बरसा रहा हूँ ।
होम में जल कर, सभी की
कामना पहुँचा रहा हूँ ।
द्वार पर तोरण बना मैं
घर में खुशियाँ ला रहा हूँ ।
कौन पानी सींचता है
जी रहा खुद गा रहा हूँ ।
मीत उनको “कल” मुबारक
“आज” मैं जीता रहा हूँ ।
“खास” का अस्तित्व रखने
“आम” मैं कहला रहा हूँ ।
- अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)