"यहाँ हमारा सिक्का खोटा"
निर्धन को खुशियाँ तब मिलतीं, जब होते दुर्लभ संयोग
हमको अपनी बासी प्यारी, उन्हें मुबारक छप्पन भोग।।
चन्द्र खिलौना लैहौं वाली, जिद कर बैठे थे कल रात
अपने छोटे हाथ देखकर, पता चली अपनी औकात।।
जो चलता है वह बिकता है, प्यारे ! यह दुनिया बाजार
यहाँ हमारा सिक्का खोटा, जिसको हम कहते हैं प्यार।।
लेन देन में घाटा सहते, गणित हमारा है कमजोर
ढाई आखर ही पढ़ पाए, ले दे के हम दाँत निपोर।।
हम कबीर के साथ चले हैं, लिए लुआठी अपने हाथ
जो अपना घर कुरिया फूँके, आये वही हमारे साथ।।
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग , छत्तीसगढ़
निर्धन को खुशियाँ तब मिलतीं, जब होते दुर्लभ संयोग
हमको अपनी बासी प्यारी, उन्हें मुबारक छप्पन भोग।।
चन्द्र खिलौना लैहौं वाली, जिद कर बैठे थे कल रात
अपने छोटे हाथ देखकर, पता चली अपनी औकात।।
जो चलता है वह बिकता है, प्यारे ! यह दुनिया बाजार
यहाँ हमारा सिक्का खोटा, जिसको हम कहते हैं प्यार।।
लेन देन में घाटा सहते, गणित हमारा है कमजोर
ढाई आखर ही पढ़ पाए, ले दे के हम दाँत निपोर।।
हम कबीर के साथ चले हैं, लिए लुआठी अपने हाथ
जो अपना घर कुरिया फूँके, आये वही हमारे साथ।।
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग , छत्तीसगढ़