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Wednesday, January 12, 2022

गजल : मुफ्त में बँटने लगी खैरात है

 *गजल 2122 2122 212*


जनवरी में हो रही बरसात है

रिन्द कहते हैं अहा! क्या बात है।


श्रीनगर जम्मू सरीखा हर नगर

दिन है कुल्लू-सा मनाली रात है।


गिर रहे ओले टपाटप चार सू

यह बुजुर्गों पर तो वज्राघात है।


वायरस ने भी परेशां कर दिया

त्रासदी की आ गई बारात है।


है चुनावों का समय तू लूट ले

मुफ्त में बँटने लगी खैरात है।


दोस्तों की महफिलें सजने लगीं 

मन थिरकता और पुलकित गात है।


चाय अदरक की 'अरुण' पीते हुए

कह रहे अपनी यही औकात है।


*अरुण कुमार निगम*

1 comment:

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